गयाः प्रकृति के प्रेम करने वाले लोगों ने अपनी समझ और जुनून के बल पर दुनिया को कई अजूबा चीजें दी हैं. पेशे से वकील जावेद यूसुफ भी उन्हीं कुछ लोगों में शामिल हैं. जिनकी निगाहों ने एक नायाब कला को प्रदर्शित किया है. ना हाथों का कमाल, ना ही रंगों की जरूरत. इन्होंने पेड़ों की टहनियों से मानव और पशु-पक्षियों की आकृति को पहचानकर उन्हें प्राकृतिक रूप में संजोकर रखा है. जावेद यूसुफ ड्रिफ्ट वुड कला के कलाकार हैं. देश के कई राज्यों में इनकी आकृतियों को प्रदर्शित किया गया है.
कई जंगलों में जाकर इकट्ठा की 600 आकृतियां
आपने पेड़ों में भगवान की आकृति शायद देखी होगी. उस आकृति की लोग आस्था के हिसाब से पूजा करते हैं. हम आपको ऐसी ही कुछ आकृतियों को दिखाएंगे, जिसे गया के सयैद शाह जावेद यूसुफ ने भारत के कई जंगलों में जाकर इकट्ठा किया है. उन्होंने पेड़ों के तनों और टहनियों से मानव आकृति को पहचान कर उसे बिना छेड़छाड़ किये प्राकृतिक आकर में ही संजोकर रखा है. युसुफ अब तक 600 आकृतियां जमा कर चुके हैं. गया शहर के बारी रोड के रहने वाले जावेद यूसुफ पेशे से वकील हैं. गया के सिविल कोर्ट में वकालत करते हैं.
पेड़ों की टहनियों से मानव आकृति की पहचान
जावेद यूसुफ को अपनी कला को प्रदर्शित करने के लिए ना ही हाथ की जरूरत पड़ती है ना ही रंगों की. वो अपनी निगाहों से पेड़ को देखकर उसमें से मानव आकृति को पहचान लेते हैं. ये निगाहों की पहचान उनका शौक बन गई. फुर्सत के पल में जावेद जंगलों की ओर रुख कर लेते हैं. जंगलों में पेड़ों की टहनियों से मानव आकृति की पहचान करते हैं. जावेद यूसुफ के एकत्रित की गई आकृति संदेश देती है, उन्होंने हर आकृति का कैप्शन दिया है. ये कैप्शन वो कवि किट्स, शेक्सपियर, ग़ालिब के शेरों के माध्यम से देते हैं. मानव आकृति में उन्होंने कई कैप्शन दिया. जैसे खड़ी लड़की को फैशन से जोड़ा है. आदिवासी लड़की को भूख से जोड़ा है.
बचपन में ही पैदा हुआ शौक
जावेद यूसुफ ने बताया कि बचपन में उन्हें एक लकड़ी मिली थी. उन्होंने उसको साफ किया तो वो ढही हुई किले जैसी प्रतीत होती थी. जब उन्होंने अपने पिता को दिखाया तो उन्होंने ने बताया कि ये एक कला है और इस कला को ड्रिफ्ट वुड कला कहते हैं. तब से ये सिलसिला शुरू हो गया. जब कभी भी फुर्सत मिलती है वो भारत के जंगलों में आकृति को खोजने निकल जाते हैं. वो बताते हैं कि असम, बंगाल, बिहार के जंगलों में अक्सर जाया करता हूं. पेड़ों की टहनियों से जो आकृति मिलती है उसमें बिना छेड़छाड़ किये उसी शेप में उसको संजोकर रखता हूं. पेड़ों की टहनियों से मानव आकृतियों को पहचानने का जुनून उनके अकेलेपन को भी दूर करता है.
बोधगया की प्रदर्शनी में नहीं मिली जगह
जावेद यूसुफ की कोई संतान नहीं है. उस कमी को वह इस कला से पूरा करते हैं. कचहरी से फुर्सत मिलते ही जंगलों में निकल जाते हैं और कई रातों तक जंगलों में रहते हैं. शाह जावेद की जमा की गई आकृतियों की प्रदर्शनी भारत के कई राज्यों में लग चुकी है. हाल में दिल्ली में भी लगी थी, जहां लोगों ने इस कला और आकृति को खूब सराहा था. जावेद साहब को भी खूब शोहरत मिली. हालांकि उन्हें कसक है कि बिहार सरकार और जिला प्रशासन ने आज तक मेरी आकृतियों को बोधगया की प्रदर्शनी में जगह नहीं दी. मैं कई बार तत्कालीन जिलाधिकारी से मिला हूं. दो बार केंद्र और राज्य सरकार के अनुरोध पर वृहद रूप से प्रदर्शनी लगाई थी.