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गया: लोगों को मौत के मुंह में धकेल रही है सिस्टम की यह लापरवाही - PRO wrote the post

गया में प्रशासन का उदासीन रवैया सामने आया है. गया प्रशासन की रफ्तार इतनी धीमी है कि मरीज के घर दवाई पहुंचाने में उसे 20 दिन लग गए. तब तक मरीज निगेटिव हो चुका था. पढ़ें पूरी खबर..

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Published : May 11, 2021, 9:10 AM IST

Updated : May 11, 2021, 9:26 AM IST

गया: सिस्टम पूरा फेल हो चुका है. जीने और मरने वालों को उसने उनके हाल पर छोड़ दिया है. प्रशासन मरीजों के कोरोना निगेटिव होने के बाद दवा मुहैया करा रहा है. सिस्टम की यह लापरवाही लोगों को मौत के मुंह में धकेल रही है.

दरअसल, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण के पीआरओ मो. मुदस्सिर आलम ने कोरोना के लक्षण दिखने पर 15 अप्रैल को एएनएमसीएच में टेस्ट कराया था. जांच में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी. जिसके बाद वे खुद होम आइसोलेट हो गये. लेकिन उन्हें स्वास्थ्य विभाग से कोरोना किट नहीं मिली.

उन्होंने बताया कि संक्रमित होने के 20 दिन बाद 8 मई को नगर निगम के कर्मचारी द्वारा कोरोना किट दिया गया. तब तक वे निगेटिव हो चुके थे. उन्होंने कहा कि इस बाबत उन्होंने निगम कर्मचारी को कहा भी कि वे निगेटिव हो चुके हैं. उन्हें दवा की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन कर्मचारी ने दफ्तर में जबाव देने की बात कह कर दवाई का लिफाफा थमा दिया. इस पर उन्होंने कहा कि गया प्रशासन का यह उदासीन रवैया आपत्तिजनक है.

यह भी पढ़ें: बिहार में कोरोना के 10,174 नए मरीज, 75 संक्रमितों की मौत

फेसबुक पर लिखी पोस्ट
साथ ही इसे लेकर उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट लिखकर सिस्टम को लताड़ा भी है. उन्होंने लिखा, 'वाह रे सिस्टम. बीमारी के 20 दिन बाद दवाई आयी. 15 अप्रैल को आरटीपीसीआर टेस्ट में मैं कोरोना पॉजिटिव आया था. यूनिवर्सिटी के डॉक्टर की सलाह लेकर मैं ठीक भी हो गया था.

दवाई ले लीजिए, ऑफिस में जवाब देना पड़ता है
कल यानी 8 मई को गया नगर निगम से फोन आया कि आपके लिए कोरोना की दवाई आयी है. मैंने कहा मैं ठीक हो चुका हूं. दवाई नहीं चाहिए. मेरे मना करने पर भी एक कर्मचारी घर तक आ गया. कहा दवाई ले लीजिए, ऑफिस में जवाब देना पड़ता है. अंत में मैंने कर्मचारी से दवाई का लिफाफा ले लिया. लेकिन देखिए इस महामारी में सिस्टम खानापूर्ति कर रहा है. जब कोरोना से जूझ रहा था. तब खुद बाजार जाकर दवा लाया. सही समय पर दवाई नहीं मिलने से लोगों की जान जा रही है. लेकिन सिस्टम को क्या फर्क पड़ता है'.

यह भी पढ़ें: लालू यादव पर सुशील मोदी का पलटवार, कहा- हंसुआ के विवाह में गा रहे खुरपी का गीत

15 अप्रैल की कोरोना जांच को 28 अप्रैल का बता रहे पदाधिकारी
सरकारी सिस्टम का आलम यह है कि जिस जांच को कोरोना संक्रमित 15 अप्रैल को कराए जाने की बात कह रहे हैं. उसे जिला आपदा शाखा पदाधिकारी 28 अप्रैल का बता रहे हैं. पदाधिकारी ने कहा कि 30 अप्रैल को आरटीपीसीआर जांच में पॉजिटिव लोगों की सूची स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई.

जांच रिपोर्ट उपलब्ध होने के पश्चात सभी पॉजिटिव लोगों को फोन के द्वारा उनका हालचाल लिया गया. 8 मई को उन्हें कोरोना किट उपलब्ध कराया गया. उन्होंने कहा कि इस विलंब के लिए कौन जिम्मेदार है. इसकी जांच अपर समाहर्ता स्तर से की जा रही है.

मो. मुदस्सिर आलम की यह फेसबुक पोस्ट जिले में जमकर वायरल हो रही है. लोग इसे खूब शेयर कर रहे हैं. साथ ही सरकार से सवाल भी कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें; PMCH पहुंचे तेजप्रताप, कहा- पैरवी से हो रहा इलाज, कोरोना से लड़ाई में नीतीश सरकार फेल

गया: सिस्टम पूरा फेल हो चुका है. जीने और मरने वालों को उसने उनके हाल पर छोड़ दिया है. प्रशासन मरीजों के कोरोना निगेटिव होने के बाद दवा मुहैया करा रहा है. सिस्टम की यह लापरवाही लोगों को मौत के मुंह में धकेल रही है.

दरअसल, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण के पीआरओ मो. मुदस्सिर आलम ने कोरोना के लक्षण दिखने पर 15 अप्रैल को एएनएमसीएच में टेस्ट कराया था. जांच में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी. जिसके बाद वे खुद होम आइसोलेट हो गये. लेकिन उन्हें स्वास्थ्य विभाग से कोरोना किट नहीं मिली.

उन्होंने बताया कि संक्रमित होने के 20 दिन बाद 8 मई को नगर निगम के कर्मचारी द्वारा कोरोना किट दिया गया. तब तक वे निगेटिव हो चुके थे. उन्होंने कहा कि इस बाबत उन्होंने निगम कर्मचारी को कहा भी कि वे निगेटिव हो चुके हैं. उन्हें दवा की कोई जरूरत नहीं है. लेकिन कर्मचारी ने दफ्तर में जबाव देने की बात कह कर दवाई का लिफाफा थमा दिया. इस पर उन्होंने कहा कि गया प्रशासन का यह उदासीन रवैया आपत्तिजनक है.

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फेसबुक पर लिखी पोस्ट
साथ ही इसे लेकर उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर एक पोस्ट लिखकर सिस्टम को लताड़ा भी है. उन्होंने लिखा, 'वाह रे सिस्टम. बीमारी के 20 दिन बाद दवाई आयी. 15 अप्रैल को आरटीपीसीआर टेस्ट में मैं कोरोना पॉजिटिव आया था. यूनिवर्सिटी के डॉक्टर की सलाह लेकर मैं ठीक भी हो गया था.

दवाई ले लीजिए, ऑफिस में जवाब देना पड़ता है
कल यानी 8 मई को गया नगर निगम से फोन आया कि आपके लिए कोरोना की दवाई आयी है. मैंने कहा मैं ठीक हो चुका हूं. दवाई नहीं चाहिए. मेरे मना करने पर भी एक कर्मचारी घर तक आ गया. कहा दवाई ले लीजिए, ऑफिस में जवाब देना पड़ता है. अंत में मैंने कर्मचारी से दवाई का लिफाफा ले लिया. लेकिन देखिए इस महामारी में सिस्टम खानापूर्ति कर रहा है. जब कोरोना से जूझ रहा था. तब खुद बाजार जाकर दवा लाया. सही समय पर दवाई नहीं मिलने से लोगों की जान जा रही है. लेकिन सिस्टम को क्या फर्क पड़ता है'.

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15 अप्रैल की कोरोना जांच को 28 अप्रैल का बता रहे पदाधिकारी
सरकारी सिस्टम का आलम यह है कि जिस जांच को कोरोना संक्रमित 15 अप्रैल को कराए जाने की बात कह रहे हैं. उसे जिला आपदा शाखा पदाधिकारी 28 अप्रैल का बता रहे हैं. पदाधिकारी ने कहा कि 30 अप्रैल को आरटीपीसीआर जांच में पॉजिटिव लोगों की सूची स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई.

जांच रिपोर्ट उपलब्ध होने के पश्चात सभी पॉजिटिव लोगों को फोन के द्वारा उनका हालचाल लिया गया. 8 मई को उन्हें कोरोना किट उपलब्ध कराया गया. उन्होंने कहा कि इस विलंब के लिए कौन जिम्मेदार है. इसकी जांच अपर समाहर्ता स्तर से की जा रही है.

मो. मुदस्सिर आलम की यह फेसबुक पोस्ट जिले में जमकर वायरल हो रही है. लोग इसे खूब शेयर कर रहे हैं. साथ ही सरकार से सवाल भी कर रहे हैं.

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Last Updated : May 11, 2021, 9:26 AM IST
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