गया: बिहार के गया शहर (Gaya) में एक ऐसी पाठशाला है जहां बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को कर्मकांड की शिक्षा दी जाती है. इस पाठशाला में कर्मकांड के साथ-साथ ज्योतिषाचार्य और अन्य पूजा की विधि सिखाई जाती हैं. यहां हर जाति, पंथ के लोगों को निशुल्क कर्मकांड और वैदिक ज्ञान दिया जाता है. विदेशी भी वेद की शिक्षा लेने आते हैं.
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विष्णुपद मंदिर स्थित 'मंत्रालय वैदिक पाठशाला' में ज्यादातर बच्चे कर्मकांड की शिक्षा लेते हैं. इस पाठशाला में बच्चे स्कूल की पढ़ाई के बाद शाम होते ही कर्मकांड की शिक्षा लेने आते हैं. यहां अध्ययनरत 6 साल के बच्चों को भारी भरकम श्लोक कंठस्थ हैं. बच्चों का एक साथ लय में मंत्रोच्चारण हर किसी को चौंका देता है.
गया के मोक्षदायिनी तट पर 'मंत्रालय वैदिक पाठशाला' पंडित रामाचार्य के आवास पर संचालित है. यहां पिछले 45 सालों से पंडित रामा आचार्य कर्मकांड का शिक्षा दे रहे हैं. उनके अनुपस्थिति में उनके पुत्र पंडित राजाचार्य पाठशाला को संचालित करते हैं.
पाठशाला के छात्र पार्थव पाठक ने बताया कि पिछले एक साल से यहां कर्मकांड की शिक्षा ले रहे हैं. सुबह-सुबह स्कूल में बुनियादी शिक्षा लेने के बाद शाम को इस पाठशाला में आकर कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण करते हैं. उन्हें दर्जनों मंत्र कंठस्थ हैं.
इसी पाठशाला के छात्र प्रत्यक्ष ने बताया कि वो पिछले छः साल से इस पाठशाला में कर्मकांड का शिक्षा ले रहे हैं. पाठशाला से कर्मकांड की पूरी शिक्षा प्राप्त कर ली है. वो अब सही उच्चारण और सही विधि से पिंडदान करवा लेते हैं. आगे कहते हैं कि वो स्टाइलिश भी हैं, साथ ही शाम में वैदिक पाठशाला में आने के लिए धोती-कुर्ता और चंदन लगाकर आते हैं.
पंडित राजाचार्य ने बताया कि मेरे पिताजी गयाजी में पिंडदान करने आये थे. वो कुछ दिन विष्णुपद क्षेत्र में बिताने के बाद विष्णुपद मंदिर के मुख्य पुजारी बन गए. उन्होंने गयाजी में एक ऐसी पाठशाला खोली जहां से किसी भी उम्र के लोग कर्मकांड की शिक्षा लेकर सही विधि से पिंडदान करवा सकें. हजारों किलोमीटर दूर से आये पिंडदानी को संतुष्टि मिले और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो यही उनका उद्देश्य था. पिछले 45 सालों से सैकड़ों लोगों ने यहां से कर्मकांड की शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न धार्मिक स्थलों में पुजारी बने हैं.
मंत्रालय वैदिक पाठशाला में किसी तरह का बंधन नहीं है. अगर आप ब्राह्मण हैं तो यज्ञोपवीत होना चाहिए. उसके बाद यहां आकर शिक्षा ले सकते हैं. अगर कोई किस अन्य जाति और अन्य धर्म से है तो उसे भी शिक्षा दी जाएगी. यहां पढ़ने वाले अनेकों लोग हैं जो दूसरे धर्मों को मानते हैं और यहां आकर शिक्षा ले चुके हैं. आज के दौर में सभी को नौकरी नहीं मिल रही है लेकिन कर्मकांड, सनातन धर्म की पूजा विधि सीखने से जीवनयापन हो सकता है. एक छात्र को कर्मकांड और अन्य पूजा विधि सीखने के लिए कम से कम तीन साल लगता है.
'ज्यादातर हमारे यहां छोटे बच्चे आते हैं. जिन्हें अक्षरज्ञान हो जाता है उन्हें शिक्षा देते हैं. छोटे बच्चे बहुत जल्दी सीख जाते हैं. बचपन से एक ऐसी विधा सीख लेते हैं जो वयस्क होने पर जीविका के लिए दो रोटी देने की गारंटी जरूर देता है'- पंडित राजाचार्य, आचार्य
बता दें कि बीते 4 दशकों से 'मंत्रालय वैदिक पाठशाला' चल रही है. यहां से अब तक एक हजार से अधिक लोगों ने शिक्षा ग्रहण किया है, जिसमें विदेशी मूल के लोग भी शामिल हैं. गयाजी में अभी जितने पंडा और ब्राह्मण पिंडदान करवा रहे हैं उसमें से 40 से 50 फीसदी यहीं के छात्र हैं.