गयाः बिहार के गया में पहाड़ का सीना चीरकर सड़क बना देने वाले माउंटेन मैन दशरथ मांझी (Dasrath Manjhi Death Anniversary) की आज 17 अगस्त को पुण्यतिथि है. प्रेम और विकास के प्रतीक में पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने वाले बाबा दशरथ का परिवार आज मुफलिसी में जीवन गुजार रहा है. वहीं, बाबा के गांव गेहलौर घाटी (Village Gehlaur Ghati) में आज भी विकास की रोशनी पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई है. ये वही बाबा दशरथ मांझी हैं, जिनके पहाड़ तोड़कर रास्ता बना देने से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इतने खुश हुए थे, कि उन्होंने बाबा को अपनी कुर्सी पर बैठाकर सम्मान दिया था.
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1959 में पहाड़ पर चढ़ने के क्रम में पत्नी की हुई थी मौतः बिहार के गया के मोहड़ा प्रखंड में गेहलौर गांव है. वहां दशरथ मांझी मजदूर के रूप में काम करते थे. वर्ष 1959 में दशरथ मांझी की पत्नी फाल्गुनी देवी मजदूरी करने वाले बाबा दशरथ के लिए खाना-पानी लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थी. उसी वक्त उनका पैर फिसल गया था और गंभीर रूप से घायल हो गई थी. गेहलौर से नजदीकी अस्पताल वजीरगंज ले जाने के क्रम में फाल्गुनी देवी की मौत हो गई. उस गांव से वजीरगंज अस्पताल 55 किलोमीटर की दूरी पर था. अगर अस्पताल नजदीक होता तो शायद फाल्गुनी देवी की जान बचाई जा सकती थी. इस घटना से दशरथ मांझी काफी व्यथित हुए. पत्नी के प्रेम के संकल्प और समाज के हित में उन्होंने एक दृढ़ निश्चय लिया कि अपने गांव और समाज की मदद के लिए गेेहलौर घाटी के पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे और इस रास्ते को अस्पताल से जोड़ेंगें.
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22 साल तक लगातार चलाते रहे पहाड़ पर छेनी और हथौड़ेः इस संकल्प को पूरा करने के लिए वे लगातार 22 साल तक पहाड़ काटने के लिए अपने छेनी हथौड़ी अकेले ही चलाते रहे. उन्होंने 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट उंची रही गेहलौर घाटी के पहाड़ को सिर्फ छेनी और हथौड़े की मदद से काटकर रास्ता बना दिया. इससे वजीरगंज अस्पताल की दूरी घटकर सिर्फ 15 किलोमीटर ही रह गई. अपने संकल्प को पूरा करने में बाबा दशरथ मांझी को 22 साल लग गए. 1960 से लेकर 1982 तक बाबा दशरथ ने अपने संकल्प को पूरा करने में लगा दिया. उसी दशरथ मांझी के गांव गेहलौर घाटी के विकास के वादे सरकार द्वारा किए गए थे, जो कि आज भी पूरे नहीं हुए. बाबा दशरथ मांझी के परिवार को पक्का मकान के नाम पर इंदिरा आवास मिला, लेकिन आज इन्हें झोपड़े का ही सहारा है.
आज भी रखी है बाबा की छेनी और हथौड़ीः पहाड़ को चीरकर रास्ता बनाने वाले बाबा दशरथ की छेनी और हथौड़ी आज भी गहलौर में रखी हुई है. गहलौर में बाबा की प्रतिमा स्थापित है और वहीं पर छेनी और हथौड़े को भी सुरक्षित रखा गया है. बाबा की प्रतिमा और उनके छेनी हथौड़े को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. दशरथ मांझी की सच्ची प्रेम कहानी पर 2015 में फिल्म डायरेक्टर केतन मेहता ने 'मांझी द माउंटेन मैन' के नाम से फिल्म भी बनाई थी. दशरथ मांझी के इस काम को देख बॉलीवुड डायरेक्टर केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया था. गेहलौर घाटी उनकी मेहनत, त्याग और प्यार की पराकाष्ठा की गवाही देती है. इस घाटी को लोग अब प्रेम पथ के नाम से भी जानते हैं.
गांव और समाज के मुद्दों को लेकर की दिल्ली यात्राः पर्वत पुरुष दशरथ मांझी ने अपने गांव और समाज के मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने लिए नई दिल्ली तक की पैदल यात्रा की. इसके बाद वे सुर्खियों में आ गए. 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे, जो कि बाबा दशरथ मांझी के काम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को सम्मान देते हुए अपनी कुर्सी पर बैठाया. इसके बाद गया के गहलौर गांव की चर्चा पूरे देश में होने लगी. बाबा दशरथ के इस कारनामे को सुनकर कई बड़े नेता, फिल्मी हस्तियों के गेहलौर घाटी पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था. 17 अगस्त 2007 में बाबा दशरथ मांझी के निधन के बाद आमिर खान से लेकर कई बड़े कलाकार आए. साथ ही बड़े राजनीतिक हस्ती भी गहलौर पहुंचे थे. 17 अगस्त 2007 को नई दिल्ली एम्स में बाबा दशरथ मांझी ने अंतिम सांस ली.