गया: नक्सल प्रभावित गया (Naxal Affected Areas In Gaya) के कई प्रखंडों में अफीम की खेती ( Opium Cultivation In Gaya) का सिलसिला पिछले दो दशकों से जारी है. इन 2 दशकों से अधिक के समय में भी पुलिस प्रशासन इस अवैध खेती पर पूरी तरह से अंकुश लगा पाने में विफल साबित हुआ है. इसका मुख्य हॉटस्पॉट बाराचट्टी का इलाका है. वहीं नक्सल प्रभावित इलाकों में छिटपुट तौर पर इस तरह की अवैध खेती की जाती है. आखिरकार प्रशासन ने अब इसके तोड़ के रूप में लेमन ग्रास की खेती को बढ़ावा देने की रणनीति तैयार की है.
पढ़ें- 12.58 एकड़ में लगी अफीम की खेती पर चला बुल्डोजर , मौके से 40 किलो कत्था भी बरामद
100 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती: फिलहाल गया के नक्सल प्रभावित इलाकों में करीब एक सौ एकड़ की भूमि में लेमन ग्रास की खेती शुरू की गई है. गौरतलब है कि जिले के नक्सल इलाकों में करीब 1000 एकड़ में अफीम गांजे की खेती होती रही है. वर्ष 2022 में भी इस पर पूरी तरह से नकेल नहीं कसा जा सका है. ठंड के मौसम में शुरू होकर फरवरी महीने के अंत तक यह अवैध फसल उगाई जाती है.
इन 5 प्रखंडों में हो रही लेमन ग्रास की खेती: गया जिले के नक्सल प्रभावित 5 प्रखंडों में लेमन ग्रास की खेती कराने का कदम उठाया गया है. विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत यह शुरू किया गया है. जिला प्रशासन की देखरेख में करीब एक सौ एकड़ का कलस्टर बनाया गया है, जो कि नक्सल प्रभावित 5 प्रखंडों में 20-20 एकड़ के रूप में बांटी गई है. इन नक्सल प्रभावित इलाकों में बाराचट्टी, इमामगंज, बांकेबाजार, कोंंच और गुरुआ शामिल है. फिलहाल कलस्टर में बांटे गए प्रखंडों में एक ही स्थान पर 20-20 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती कराई जा रही है.
लाल इलाके में प्रशासन की बड़ी रणनीति: गया जिले के लाल इलाके (नक्सल प्रभावित) क्षेत्र में लेमन ग्रास की खेती प्रशासन की बड़ी रणनीति मानी जा रही है. हालांकि अभी इसकी बस शुरुआत भर हुई है. यह योजना कितना रंग लाएगी, यह आने वाला समय बता पाएगा. जिले में बाराचट्टी के इलाके में सबसे ज्यादा अफीम और गांजे की फसल उगाई जाती है. बाराचट्टी और बांकेबाजार जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों के किसान इसके फायदे से बेहद खुश हैं. लेमन ग्रास की हरी फसल एक बार लगाकर इसे चार बार काटा जा सकता है.
लेमन ग्रास से तेल निकालने का काम भी शुरू: गया में लेमनग्रास की फसल पांच प्रखंडों में लहलहा रही है. यहां के किसानों ने एक समूह बनाकर नई शुरुआत की है. स्वयंसेवी संस्था और सरकार की मदद से 20-20 एकड़ भूमि में लेमन ग्रास की खेती की जा रही है. कुछ महीने पहले इसकी शुरुआत की गई है. लेमन ग्रास से तेल निकालने का भी काम शुरू हो गया है. सरकारी मदद से यहां पर बोरिंग की व्यवस्था की गई है. साथ ही लेमन ग्रास से तेल निकालने के लिए प्लांट भी लगाया गया है. यहां अब लेमन ग्रास से प्रति एकड़ हरेक साल लगभग एक लाख की कमाई का लक्ष्य रखा गया है. वहीं बंजर और वीरान इलाकों में भी लेमन ग्रास की खेती कराई जा रही है. साथ ही बंजर और वीरान दिखने वाला यह जगह अब हरा-भरा हो रहा है. लेमन ग्रास की खेती की नई पहल को किसान बड़े विकल्प के रूप में देख रहे हैं.
ऐसे तैयार होती है लेमन ग्रास की फसल: किसान उदय शंकर बताते हैं कि लेमन ग्रास की कटाई कर लगे प्लांट में हरा घास के रूप में ही डाल दिया जाता है, जिसके बाद टैंक के नीचे से आग देकर वाष्प के रूप में लाल तेल निकाला जाता है. तेल की बिक्री लगभग 1500 रुपए प्रति लीटर की जाती है, जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है.
"लगभग बीस एकड़ में लेमन ग्रास की खेती हमारे इलाके में हो रही है. जिला प्रशासन द्वारा भरपूर सहयोग किया गया है. इस पहाड़ी क्षेत्र में लेमन ग्रास की खेती की शुरुआत की गई है."- उदय शंकर, किसान
1000 एकड़ में हर साल लगाई जाती है मौत की फसल: प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार 600 एकड़ भू-भाग में जिले भर में नक्सली अफीम की फसल उगाते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जिले में अफीम की फसल 1000 एकड़ से अधिक भूमि में की जाती रही है. इसमें सरकारी जमीन और किसानों की जमीन भी शामिल है. अफीम गांजे की खेती का सबसे बड़ा क्षेत्र बाराचट्टी प्रखंड का इलाका ही है. नक्सलियों के संरक्षण में माफिया व स्थानीय आपराधिक प्रवृत्ति के लोग अफीम गांजे की फसल को बढ़ावा देने का काम करते हैं. वहीं इसके लिए मजदूर भी बाहर से लाए जाते हैं. 1990 के दशक से ही अफीम गांजा की खेती का सिलसिला शुरू हुआ था, जिसने धीरे-धीरे वृहत रूप ले लिया. माना जाता है कि जंगल वाले क्षेत्रों में इस खेती से नक्सली अपना आर्थिक स्त्रोत मजबूत करते हैं. फिलहाल प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के संरक्षण में अफीम गांजा की खेती कराई जाती है.
अफीम गांजा की खेती नष्ट करने को महीनों चलता है अभियान: वहीं अफीम गांजा की खेती को नष्ट करने के लिए हर साल पुलिस प्रशासन को पसीने बहाने पड़ते हैं. महीने भर अफीम गांजा की फसल को नष्ट करने का अभियान चलाया जाता है. हालांकि इसके बावजूद भी अफीम गांजा की खेती को पूरी तरह से नष्ट करने में सफलता नहीं ही मिल पाती है. नतीजतन नक्सलियों को आर्थिक मजबूती का स्त्रोत मिल जाता है.
लेमन ग्रास तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में है डिमांड: इस संबंध में उप परियोजना निदेशक आत्मा गया के नीरज कुमार बताते हैं कि लेमन ग्रास की खेती जिले के नक्सल प्रभावित 5 प्रखंडों में कराई जा रही है. नक्सल प्रभावित इलाकों में अफीम गांजे की खेती को रोकने के लिए इसे विकल्प के तौर पर रणनीति के रूप में तैयार की गई है. यह अच्छी आमदनी वाली भी फसल है. अभी एक सौ एकड़ में जिले के 5 प्रखंडों में इसकी शुरुआत की गई है. लेमन ग्रास की खेती से निकलने वाला तेल 1500 से 2000 रुपए प्रति लीटर की दर से बेचा जाता है.
"इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी डिमांड है. हम इसे लघु उद्योग के रूप में विकसित करने के प्रयास में भी जुटे हैं. छत्तीसगढ़ के एजेंसी के माध्यम से इसकी फिलहाल बिक्री करवाई जा रही है."- सुदामा महतो, जिला कृषि पदाधिकारी, गया
क्या है लेमन ग्रास?: लेमन ग्रास एक पौधा है जिसका उपयोग खासतौर पर दवा के रूप में किया जाता है लेकिन लेमान ग्रास की चाय खासकर दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाया जाता है. घास जैसे दिखने वाले इस पौधे की लम्बाई घास से ज्यादा होती है. इसकी महक नींबू जैसी होती है ,इसका ज्यादातर उपयोग चाय में अदरक की तरह किया जाता है. लेमन ग्रास के औषधीय गुण जैसे एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इन्फ्लेमेटरी व एंटी-फंगल कई तरह की बीमारियों और संक्रमण से बचने के लिए जाने जाते है. लेमन ग्रास को एक दवा की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं. इसका तेल बनाया जाता है. तेल भी उपयोग किया जाता है. इसमें लगभग 75 प्रतिशत सिट्रल पाया जाता है, जिसकी वजह से इसकी खुशबू भी नींबू जैसी होती है.
लेमन ग्रास के होते हैं बड़े फायदे: लेमन टी का उपयोग करके हम अपनी एनर्जी को भगा सकते हैं. इससे इम्युनिटी लेवल भी बढ़ता है. अगर आप बहुत जल्दी-जल्दी बीमार हो जाते हैं तो लेमन ग्रास की कुछ पत्तियां चाय में दाल कर पीने से आपको विशेष लाभ होगा और आप जल्दी बीमार भी नहीं होंगे. अगर किसी को ब्रेस्ट कैंसर और स्किन कैंसर की शिकायत रहती है तो उसे रोज एक निश्चित मात्रा में लेमन ग्रास का सेवन करना चाहिए इसका सेवन करने से विशेष लाभ होता है. इसके सेवन से ब्रेस्ट कैंसर और स्किन कैंसर की सम्भावनायें काफी हद तक कम की जा सकती हैं. इससे दिमाग भी तेज होता है.