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इस 'गुरुकुल' में पढ़ाई की फीस है मात्र एक किलो चावल, कुकिंग और फार्मिंग की भी दी जाती है शिक्षा

दिल्ली से आकर पति-पत्नी ने ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को शिक्षित करने की ठानी है. पढ़ाई के साथ-साथ अपने आश्रम में वे खाना बनाने और खेती करने के बारे में भी बताते हैं. खास बात ये भी है कि बदले में छात्रों से मात्र एक किलो चावल बतौर फीस लिया जाता है. इस पहल से अभिभावक काफी खुश हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

CHILDREN ARE GIVEN EDUCATION BY TAKING ONLY ONE KG OF RICE IN GAYA
CHILDREN ARE GIVEN EDUCATION BY TAKING ONLY ONE KG OF RICE IN GAYA
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Published : Sep 5, 2021, 6:01 AM IST

गया: कहते हैं कि अगर एक शिक्षक (Teacher) अगर ठान लें तो पूरे समाज को बदल सकता है. बिहार के गया (Gaya) में एक ऐसे ही दंपती हैं, जो बीहड़ में घूमने वाले को बच्चों को अपने पास रखकर शिक्षित कर रहे हैं. ये पति-पत्नी बच्चों को पढ़ाने के एवज में अभिभावक से मात्र एक किलो चावल लेते हैं. इस गुरुकुल में बच्चों को बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ खाना बनाने और खेती करने के बारे में भी सिखाया जाता है.

यह भी पढ़ें - शिक्षक की अनोखी पहल, माइकिंग के जरिए स्कूल आने के लिए बच्चों को किया जागरुक

गया शहर से 60 किलोमीटर बाराचट्टी प्रखण्ड के काहुदाग पंचायत के कोहवरी गांव के बीच जंगल में पटना जिले के बिहटा के रहनेवाले पति-पत्नी यहां के बच्चों में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. ये दोनों पति-पत्नी दिल्ली में रहकर पढ़ाई करते थे. दोनों ने गांव और गांव के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए गया के बीहड़ में भूदान की जमीन पर सहोदय आश्रम बनाया. जहां कोहवरी गांव के 30 बच्चों को आवासीय शिक्षा दे रहे हैं.

देखें वीडियो

सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार बताते है कि मैं और मेरी पत्नी रेखा दिल्ली में रहते थे. पढ़ाई करने के साथ मैं जॉब भी करता था. हमदोनों को लगा कि सकारात्मक जिंदगी नहीं व्यतीत कर रहे है. हम दोनों गांव में जाकर काम करना चाहते थे. शिक्षा से जुड़े थे, इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे. बिहार आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता ने हमें भूदान की जमीन सहोदय आश्रम को शुरू करने के लिए दी.

अनिल बताते हैं कि जब काहूदाग पंचायत के इस जंगल में भूदान की जमीन पर आया तो पेड़-पौधे नहीं थे. सबसे पहले हमने वहां पेड़ लगाया, उस के बाद बच्चों को गांव से जाकर बुलाया. शुरुआत के दिनों में अभिभावक मेरे साथ अपने बच्चों को रहने नहीं देते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगो का मेरे प्रति विश्वास बढ़ा और फिर लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना शुरू किया.

अभी सहोदय आश्रम में 30 बच्चे रहते हैं. इन बच्चों को यहां घर जैसा माहौल मिलता है. बच्चों को जब मन करता है, जैसे मन करता है, वैसे पढ़ते हैं. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को खेतीबाड़ी के बारे में भी बताया जाता है.

संचालक अनिल कहते हैं कि मैं बच्चों के अभिभावकों से बस इस शिक्षा के लिए एक किलो चावल लेता हूं. 30 बच्चे हैं तो 30 किलो चावल आता है. मेरे और मेरी पत्नी का मानना है कि इस आश्रम को चलाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना है. हमलोग आत्मनिर्भर बनने के लिए चावल लेते हैं, साथ ही गौ पालन, मधुमक्खी पालन और खेती कर इन बच्चों और खुद के भोजन की व्यवस्था करते हैं.

इस सहोदय आश्रम को संचालित करने में अनिल की पत्नी रेखा का भी बहुत अहम योगदान है. अनिल कहते हैं कि वास्तव में यह आइडिया रेखा का ही था. मैं बच्चों को बुनियादी शिक्षा और खेती करने के बारे में सिखाता हूं, जबकि मेरी पत्नी सभी बच्चों को खाना बनाना, घर का काम और गौ पालन का शिक्षा देती हैं.

सहोदय आश्रम का छात्र अनिल कहता है कि आश्रम में आने से काफी कुछ सीख गया हूं. हिंदी, अंग्रेजी और गणित के अलावे खेती किसानी के बारे में भी बहुत कुछ जानने लगा हूं. वह कहता है कि खेत से बाजार तक सब्जी को पहुंचाने के लिए सिखाया जाता है. संगीत और नाटक की भी शिक्षा दी जाती है. यहां 30 बच्चों में तीन ग्रुप है. हर ग्रुप का अलग-अलग काम बांटा हुआ है. गाय के लिए गाय ग्रुप, खेती के लिए किसान ग्रुप और खाना बनाने के लिए अन्न ग्रुप को जिम्मेदारी दी गई है.

सहोदय आश्रम का अन्य छात्र पिंकू कुमार बताता है कि मैं पहले तीन किलोमीटर दूर जाकर सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता था. वहां पढ़ाई भी नहीं होती थी. यहां जब से आया हूं, इंग्लिश भी बोलना जान गया हूं. यहां पढ़ाई के लिए कोई बंधन नहीं है. हमलोग छह महीने पर घर जाते हैं. बीच बीच में मम्मी-पापा मिलने आते रहते हैं.

वहीं, एक अभिभावक बताती हैं कि इस आश्रम में बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाई करवाई जाती है. बच्चों को शिक्षा के साथ ही खेती करना भी सिखाया जाता है. हमलोग खेती करने वाले लोग हैं, अगर बच्चा खेती में निपुण हो जाएगा तो हमारे लिए बड़ी बात है. वे कहती हैं कि यहां शिक्षा के बदले पैसे नहीं लिए जाते हैं, बल्कि अनाज लिया जाता है. मेरे तीन बच्चे यहां पढ़ते हैं, तीनों बच्चों को मैं हर माह तीन किलो चावल देती हूं.

यह भी पढ़ें - अब NH-30 पर लगेगी पाठशाला... ढाई साल पहले तोड़े गए स्कूल को पाने के लिए छात्रों का अनोखा आंदोलन

गया: कहते हैं कि अगर एक शिक्षक (Teacher) अगर ठान लें तो पूरे समाज को बदल सकता है. बिहार के गया (Gaya) में एक ऐसे ही दंपती हैं, जो बीहड़ में घूमने वाले को बच्चों को अपने पास रखकर शिक्षित कर रहे हैं. ये पति-पत्नी बच्चों को पढ़ाने के एवज में अभिभावक से मात्र एक किलो चावल लेते हैं. इस गुरुकुल में बच्चों को बुनियादी शिक्षा के साथ-साथ खाना बनाने और खेती करने के बारे में भी सिखाया जाता है.

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गया शहर से 60 किलोमीटर बाराचट्टी प्रखण्ड के काहुदाग पंचायत के कोहवरी गांव के बीच जंगल में पटना जिले के बिहटा के रहनेवाले पति-पत्नी यहां के बच्चों में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. ये दोनों पति-पत्नी दिल्ली में रहकर पढ़ाई करते थे. दोनों ने गांव और गांव के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ करना चाहते थे, इसलिए गया के बीहड़ में भूदान की जमीन पर सहोदय आश्रम बनाया. जहां कोहवरी गांव के 30 बच्चों को आवासीय शिक्षा दे रहे हैं.

देखें वीडियो

सहोदय आश्रम के संचालक अनिल कुमार बताते है कि मैं और मेरी पत्नी रेखा दिल्ली में रहते थे. पढ़ाई करने के साथ मैं जॉब भी करता था. हमदोनों को लगा कि सकारात्मक जिंदगी नहीं व्यतीत कर रहे है. हम दोनों गांव में जाकर काम करना चाहते थे. शिक्षा से जुड़े थे, इसलिए शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना चाहते थे. बिहार आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता ने हमें भूदान की जमीन सहोदय आश्रम को शुरू करने के लिए दी.

अनिल बताते हैं कि जब काहूदाग पंचायत के इस जंगल में भूदान की जमीन पर आया तो पेड़-पौधे नहीं थे. सबसे पहले हमने वहां पेड़ लगाया, उस के बाद बच्चों को गांव से जाकर बुलाया. शुरुआत के दिनों में अभिभावक मेरे साथ अपने बच्चों को रहने नहीं देते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगो का मेरे प्रति विश्वास बढ़ा और फिर लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना शुरू किया.

अभी सहोदय आश्रम में 30 बच्चे रहते हैं. इन बच्चों को यहां घर जैसा माहौल मिलता है. बच्चों को जब मन करता है, जैसे मन करता है, वैसे पढ़ते हैं. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को खेतीबाड़ी के बारे में भी बताया जाता है.

संचालक अनिल कहते हैं कि मैं बच्चों के अभिभावकों से बस इस शिक्षा के लिए एक किलो चावल लेता हूं. 30 बच्चे हैं तो 30 किलो चावल आता है. मेरे और मेरी पत्नी का मानना है कि इस आश्रम को चलाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना है. हमलोग आत्मनिर्भर बनने के लिए चावल लेते हैं, साथ ही गौ पालन, मधुमक्खी पालन और खेती कर इन बच्चों और खुद के भोजन की व्यवस्था करते हैं.

इस सहोदय आश्रम को संचालित करने में अनिल की पत्नी रेखा का भी बहुत अहम योगदान है. अनिल कहते हैं कि वास्तव में यह आइडिया रेखा का ही था. मैं बच्चों को बुनियादी शिक्षा और खेती करने के बारे में सिखाता हूं, जबकि मेरी पत्नी सभी बच्चों को खाना बनाना, घर का काम और गौ पालन का शिक्षा देती हैं.

सहोदय आश्रम का छात्र अनिल कहता है कि आश्रम में आने से काफी कुछ सीख गया हूं. हिंदी, अंग्रेजी और गणित के अलावे खेती किसानी के बारे में भी बहुत कुछ जानने लगा हूं. वह कहता है कि खेत से बाजार तक सब्जी को पहुंचाने के लिए सिखाया जाता है. संगीत और नाटक की भी शिक्षा दी जाती है. यहां 30 बच्चों में तीन ग्रुप है. हर ग्रुप का अलग-अलग काम बांटा हुआ है. गाय के लिए गाय ग्रुप, खेती के लिए किसान ग्रुप और खाना बनाने के लिए अन्न ग्रुप को जिम्मेदारी दी गई है.

सहोदय आश्रम का अन्य छात्र पिंकू कुमार बताता है कि मैं पहले तीन किलोमीटर दूर जाकर सरकारी स्कूल में पढ़ाई करता था. वहां पढ़ाई भी नहीं होती थी. यहां जब से आया हूं, इंग्लिश भी बोलना जान गया हूं. यहां पढ़ाई के लिए कोई बंधन नहीं है. हमलोग छह महीने पर घर जाते हैं. बीच बीच में मम्मी-पापा मिलने आते रहते हैं.

वहीं, एक अभिभावक बताती हैं कि इस आश्रम में बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाई करवाई जाती है. बच्चों को शिक्षा के साथ ही खेती करना भी सिखाया जाता है. हमलोग खेती करने वाले लोग हैं, अगर बच्चा खेती में निपुण हो जाएगा तो हमारे लिए बड़ी बात है. वे कहती हैं कि यहां शिक्षा के बदले पैसे नहीं लिए जाते हैं, बल्कि अनाज लिया जाता है. मेरे तीन बच्चे यहां पढ़ते हैं, तीनों बच्चों को मैं हर माह तीन किलो चावल देती हूं.

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