गया: बिहार के गया शहर के चाणक्यपुरी कॉलोनी में एक पीढ़ी बौने वृक्ष तैयार करती है. यहां जनार्दन कुमार अपने घर पर ही बोनसाई वृक्षों का बागान तैयार करते हैं. इनके पास 25 साल पुराना पीपल, बरगद, अर्जुन समेत अन्य वृक्ष हैं, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसकी लंबाई सिर्फ 14 इंच और चौड़ाई सिर्फ 8 इंच है. इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि इस 25 साल पुराने 14 इंच वाले पीपल और बरगद की कीमत 25 हजार रुपए है. यानि कि जैसे-जैसे यह बोनसाई वृक्ष पुराने होते हैं, इसकी कीमत उतनी ही ज्यादा बढ़ती चली जाती है.
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पूरे भारत से आती है डिमांड: चाणक्यपुरी कॉलोनी के रहने वाले जनार्दन कुमार बताते हैं कि पहले उनके पूर्वज भी बोनसाई वृक्ष तैयार करने का काम करते थे. अब वो पीढियों की इस विरासत को संभाल रहे है. इस तरह के बोनसाई यानि कि बौने वृक्ष की डिमांड पूरे भारत में है. हालांकि इसे लेकर उतनी जागरूकता नहीं फैली है, जितनी होनी चाहिए थी. बड़े शहरों में इसकी डिमांड बढ़ने लगी है. पूरे भारत से उनके पास बौने वृक्ष की डिमांड के लिए आर्डर आते हैं. गोवा और राजस्थान से ज्यादा ऑर्डर आते हैं और सप्लाई भी ज्यादातर वहीं की जाती है. यह बताते हैं कि बिहार में अपवाद स्वरूप ही बोनसाई वृक्ष तैयार किए जाते हैं. इसमें काफी परिश्रम और कला दिखानी पड़ती है.
"पहले उनके पूर्वज भी बोनसाई वृक्ष तैयार करने का काम करते थे. अब वो पीढियों की इस विरासत को संभाल रहे है. इस तरह के बोनसाई यानि कि बौने वृक्ष की डिमांड पूरे भारत में है. हालांकि इसे लेकर उतनी जागरूकता नहीं फैली है, जितनी होनी चाहिए थी. बड़े शहरों में इसकी डिमांड बढ़ने लगी है. पूरे भारत से उनके पास बौने वृक्ष की डिमांड के लिए आर्डर आते हैं."- जनार्दन कुमार, बिहार बोनसाई आर्ट
बौने पेड़ों का बागान, सैकड़ों वृक्षों की विभिन्न प्रजातियां: जनार्दन कुमार के पास बौने पेड़ों का बागान है. सैकड़ों वृक्षों की विभिन्न प्रजातियां इनके पास मौजूद है. सुबह से ही वो इस विरासत को संभालने के लिए जुड़ जाते हैं. वहीं एक तरह से पूर्णता तो नहीं लेकिन यह आंशिक व्यवसाय का एक माध्यम बन गया है. यह पर्यावरण संरक्षण और संतुलन की दिशा में मील का पत्थर बनके समाने आ रहा है, क्योंकि लोग इसे अपने घरों में कम स्पेस में लगा सकते हैं.
प्राकृतिक तरीके से होता है तैयार: जनार्दन कुमार बताते हैं कि यह बोनसाई कला है, जिसमें पौधों को ऐसे विकसित किया जाता है कि उसका आकार छोटा रहता है. हालांकि दिखने में वह बड़े पौधे के जैसे होते हैं. वह चाहते हैं कि लोग इस कला को आगे बढ़ाएं. जगह की कमी है तो इस तरह के बौने वृक्ष को घर में रखकर पर्यावरण को बचाया जा सकता है. 25 साल से वह इस पेशे में हैं. पहले मां ने लगाया था अब उसे मेरे द्वारा बचा कर रखा गया है. राष्ट्रीय स्तर पर लोग उनसे जुड़े हुए हैं. देश की मेन वेरायटी पीपल, बरगद, इमली, नीम, शम्मी, अर्जुन उनके पास बोनसाई में हैं. वो फलदार पौधों को छोड़कर काम करते हैं.
जैपनीज आर्ट है बोनसाई: जनार्दन कुमार बताते हैं कि उनके पास वृक्ष बोनसाई शेप में हैं. देश के विभिन्न वृक्षों की मेन वेरायटी उनके पास है. बेचने का काम बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन ऑर्डर आने पर उसकी बिक्री की जाती है. उनका मकसद है कि लोग इसे देखें और सीखें और इस बोनसाई आर्ट को बढ़ावा दें. इससे पर्यावरण संतुलन बनाए रखा जा सकता है, क्योंकि एक बड़ा वृक्ष जितना महत्वपूर्ण होता है. इसे बनाने की विधि को लेकर बताते हैं कि इसके बेसिक रूल्स है. बोनसाई आर्ट के उसी रूल्स को फॉलो करते हैं. मुख्य रूप से जैपनीज आर्ट के तहत जो टेक्निक अपनाई जाती है, उसमें क्रोनिंग में जड़ को क्रोन किया जाता है और रि-पाॅटिंग बार-बार करनी होती है.