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Gaya News: अब काली हल्दी उपजा रहे गया के किसान.. इसमें है एंटी कैंसर गुण, कई बीमारियों का है रामबाण

गया में किसान काली हल्दी की खेती कर रहे हैं. यह ऐसी प्रजाति जिसमें भरपूर मेडिसिनल प्रॉपर्टीज है. इसके साथ ही यह एक लुप्तप्राय होती प्रजाति है. इस काली हल्दी का उपयोग खान-पान में तो ज्यादा नहीं, लेकिन औषधियों के निर्माण में बहुतायत मात्रा में होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें एंटी कैंसर गुण विद्यमान है. पढ़ें पूरी खबर..

काली हल्दी
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Published : May 31, 2023, 9:06 PM IST

गया में काली हल्दी की खेती

गया: बिहार के गया में काली हल्दी की खेती की जा रही है. काली हल्दी विविध गुणों के लिए जानी जाती है. एक और जहां इसमें कई सारे मेडिसिनल प्रॉपर्टी हैं. वहीं दूसरी ओर सरकार ने इसे विलुप्त प्राय प्रजाति की श्रेणी में रखा है. इस कारण भी यह काफी महत्वपूर्ण है. इसकी डिमांड मध्यप्रदेश में ज्यादा है. फिलहाल बिहार में काली हल्दी की खेती न के बराबर होती है, लेकिन गया के उन्नत किसान आशीष कुमार सिंह ने इसकी शुरुआत की है और पिछले 3 सालों से काली हल्दी की फसल लगा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: यू ट्यूब से सीखकर बिहार के आशीष उगा रहे अमेरिका का ₹400/किलो बिकने वाला 'काला आलू'

काला आलू और धान के बाद अब हल्दी की खेती: गया जिले के टिकारी के रहने वाले आशीष कुमार सिंह काला आलू, काला धान लगाकर प्रसिद्ध हो चुके हैं. अब उन्होंने काली हल्दी की फसल लगाई है, जो कि बिहार में नहीं होती है. गया में संभवत: पहली बार काली हल्दी की खेती की शुरुआत इन्होंने की है. पिछले 3 सालों से काली हल्दी की खेती इनके द्वारा की जा रही है.

लुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में है काली हल्दी: उन्नत किसान आशीष कुमार सिंह कृषि से संबंधित लेख काफी पढ़ते हैं. इसी क्रम में उन्होंने पढ़ा कि सरकार द्वारा 2016 में काली हल्दी को लुप्तप्राय प्रजाति की फसल में रखा गया है. इस लेख को पढ़ने के बाद उन्होंने इस लुप्तप्राय फसल को बचाने की मंशा से इसकी खेती शुरू कर दी. इससे पहले भी वे कई लुप्तप्राय फसलों की खेती की शुरुआत कर उसकी बीजों को बचाने का प्रयास करते रहे हैं. पिछले 3 सालों से यह काली हल्दी की खेती कर रहे हैं.

कई औषधीय गुण है विद्यमान: आशीष कुमार सिंह बताते हैं कि वे 3 साल से इसी खेती कर रहे हैं. यह विलुप्त होती प्रजाति है. इसमें औषधीय गुण है और दवा बनाने में यह काम आता है. आदिवासी शुभ कार्य में इसका उपयोग करते हैं. विशेष कर मध्य प्रदेश के इलाके में काली हल्दी की खेती कर उसकी डिमांड के अनुसार सप्लाई करते हैं. कुछ किसानों से उनके वहां संपर्क हैं. डिमांड आते ही वहां सप्लाई कर दी जाती है. मुख्य मकसद इस को विलुप्त होने से बचाना और बाजार में में इसकी बिक्री करवाना है.

काली हल्दी की खासियत
काली हल्दी की खासियत

" 3 साल से इसी खेती कर रहे हैं. यह विलुप्त होती प्रजाति है. इसमें औषधीय गुण है और दवा बनाने में यह काम आता है. काली हल्दी का स्वाद कुछ ऐसा होता है, कि लोग इसे खाना नहीं चाहते हैं, लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर है. एक कट्ठा में 1 क्विंटल फसल आती है और इसमें करीब 10 किलो बीज लगता है. मुख्य मकसद इस को विलुप्त होने से बचाना और बाजार में में इसकी बिक्री करवाना है"- आशीष कुमार सिंह, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान

किसानों को दे रहे बीज: बताते हैं कि काली हल्दी का स्वाद कुछ ऐसा होता है, कि लोग इसे खाना नहीं चाहते हैं, लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर है. इनके अनुसार हर बार डेढ कट्ठे में काली हल्दी लगाते हैं. एक कट्ठा में 1 क्विंटल फसल आती है और इसमें करीब 10 किलो बीज लगता है. हालांकि इसका उत्पादन ज्यादा होता है, लेकिन कम जानकारी के कारण कम हुई है. पूरी संभावना है, कि आने वाले दिनों में यह ज्यादा उपजेगी. यह बताते हैं कि इस के कंद बड़े-बड़े होते हैं. किसानों को भी इसके बीज दे रहे हैं.

आदिवासी समाज शुभ कार्यों में करते हैं उपयोग: किसान आशीष बताते हैं कि काली हल्दी की खेती एकदम से आसान है. पहले हम बीज लगाते हैं. उसके बाद वह पौधा बनता है. मैच्योर होने पर पौधा सूख जाता है, लेकिन उसकी जड़ से हमें फसल मिलती है, जो कि काली हल्दी के रूप में होती है. गमले में भी इसकी फसल लगाई जा सकती है. इसमें पानी भी कम लगता है. काली हल्दी का उपयोग मध्य प्रदेश के कुछ आदिवासी शुभ कार्य में करते हैं. यही आदिवासी समाज इस काली हल्दी की खेती भी करते हैं. इसे उपजाने की विधि की जानकारी कुछ आदिवासी किसानों से भी ली है.
काली हल्दी में 100% मेडिसिनल प्रॉपर्टी: कृषि विज्ञान केंद्र गया के कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल बताते हैं, कि गया जिले में कम पैमाने पर काली हल्दी की खेती होती है, लेकिन टिकारी में काली हल्दी की खेती की शुरुआत किसान आशीष कुमार सिंह ने की है. हल्दी पीली हो या काली उसमें कुरकुमीन पाया जाता है, जो कि बहुत ही लाभकारी होता है, लेकिन खासकर काली हल्दी में कुरकुमीन पीली हल्दी की अपेक्षा काफी ज्यादा पाया जाता है और यह काली हल्दी 100% मेडिसिनल प्रॉपर्टी है. इससे कई तरह की बीमारियों में बचाव होता है.

मेडिसनल इंडस्ट्री में डिमांड ज्यादा: देवेंद्र मंडल बताया कि इसकी खेती का रकवा बढ़ रहा है. अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं. मेडिसिनल प्रॉपर्टी होने के कारण इससे खुजली, गैस, चर्म रोग समेत कई बीमारियां इससे दूर होती है. इम्यून सिस्टम को काली हल्दी का पाउडर का उपयोग करने से मजबूती मिलती है. वहीं, एंटी कैंसर होने के कारण इसकी लोकप्रियता काफी है और उत्पादन बढ़ रहा है. मेडिसिनल इंडस्ट्री में डिमांड इसकी ज्यादा है. काली हल्दी की कीमत प्रति किलो 1000 से 5000 किलो तक के बीच होती है. इस तरह काली हल्दी का काफी उपयोग है और इसकी खेती एक अच्छी पहल है, जो कि गया जिले में शुरू की गई है.

"मेडिसिनल प्रॉपर्टी होने के कारण इससे खुजली, गैस, चर्म रोग समेत कई बीमारियां इससे दूर होती है. इम्यून सिस्टम को काली हल्दी का पाउडर का उपयोग करने से मजबूती मिलती है. वहीं, एंटी कैंसर होने के कारण इसकी लोकप्रियता काफी है और उत्पादन बढ़ रहा है. मेडिसिनल इंडस्ट्री में डिमांड इसकी ज्यादा है"- देवेंद्र मंडल, कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर

गया में काली हल्दी की खेती

गया: बिहार के गया में काली हल्दी की खेती की जा रही है. काली हल्दी विविध गुणों के लिए जानी जाती है. एक और जहां इसमें कई सारे मेडिसिनल प्रॉपर्टी हैं. वहीं दूसरी ओर सरकार ने इसे विलुप्त प्राय प्रजाति की श्रेणी में रखा है. इस कारण भी यह काफी महत्वपूर्ण है. इसकी डिमांड मध्यप्रदेश में ज्यादा है. फिलहाल बिहार में काली हल्दी की खेती न के बराबर होती है, लेकिन गया के उन्नत किसान आशीष कुमार सिंह ने इसकी शुरुआत की है और पिछले 3 सालों से काली हल्दी की फसल लगा रहे हैं.

ये भी पढ़ें: यू ट्यूब से सीखकर बिहार के आशीष उगा रहे अमेरिका का ₹400/किलो बिकने वाला 'काला आलू'

काला आलू और धान के बाद अब हल्दी की खेती: गया जिले के टिकारी के रहने वाले आशीष कुमार सिंह काला आलू, काला धान लगाकर प्रसिद्ध हो चुके हैं. अब उन्होंने काली हल्दी की फसल लगाई है, जो कि बिहार में नहीं होती है. गया में संभवत: पहली बार काली हल्दी की खेती की शुरुआत इन्होंने की है. पिछले 3 सालों से काली हल्दी की खेती इनके द्वारा की जा रही है.

लुप्तप्राय प्रजाति की श्रेणी में है काली हल्दी: उन्नत किसान आशीष कुमार सिंह कृषि से संबंधित लेख काफी पढ़ते हैं. इसी क्रम में उन्होंने पढ़ा कि सरकार द्वारा 2016 में काली हल्दी को लुप्तप्राय प्रजाति की फसल में रखा गया है. इस लेख को पढ़ने के बाद उन्होंने इस लुप्तप्राय फसल को बचाने की मंशा से इसकी खेती शुरू कर दी. इससे पहले भी वे कई लुप्तप्राय फसलों की खेती की शुरुआत कर उसकी बीजों को बचाने का प्रयास करते रहे हैं. पिछले 3 सालों से यह काली हल्दी की खेती कर रहे हैं.

कई औषधीय गुण है विद्यमान: आशीष कुमार सिंह बताते हैं कि वे 3 साल से इसी खेती कर रहे हैं. यह विलुप्त होती प्रजाति है. इसमें औषधीय गुण है और दवा बनाने में यह काम आता है. आदिवासी शुभ कार्य में इसका उपयोग करते हैं. विशेष कर मध्य प्रदेश के इलाके में काली हल्दी की खेती कर उसकी डिमांड के अनुसार सप्लाई करते हैं. कुछ किसानों से उनके वहां संपर्क हैं. डिमांड आते ही वहां सप्लाई कर दी जाती है. मुख्य मकसद इस को विलुप्त होने से बचाना और बाजार में में इसकी बिक्री करवाना है.

काली हल्दी की खासियत
काली हल्दी की खासियत

" 3 साल से इसी खेती कर रहे हैं. यह विलुप्त होती प्रजाति है. इसमें औषधीय गुण है और दवा बनाने में यह काम आता है. काली हल्दी का स्वाद कुछ ऐसा होता है, कि लोग इसे खाना नहीं चाहते हैं, लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर है. एक कट्ठा में 1 क्विंटल फसल आती है और इसमें करीब 10 किलो बीज लगता है. मुख्य मकसद इस को विलुप्त होने से बचाना और बाजार में में इसकी बिक्री करवाना है"- आशीष कुमार सिंह, काली हल्दी की खेती करने वाले किसान

किसानों को दे रहे बीज: बताते हैं कि काली हल्दी का स्वाद कुछ ऐसा होता है, कि लोग इसे खाना नहीं चाहते हैं, लेकिन यह औषधीय गुणों से भरपूर है. इनके अनुसार हर बार डेढ कट्ठे में काली हल्दी लगाते हैं. एक कट्ठा में 1 क्विंटल फसल आती है और इसमें करीब 10 किलो बीज लगता है. हालांकि इसका उत्पादन ज्यादा होता है, लेकिन कम जानकारी के कारण कम हुई है. पूरी संभावना है, कि आने वाले दिनों में यह ज्यादा उपजेगी. यह बताते हैं कि इस के कंद बड़े-बड़े होते हैं. किसानों को भी इसके बीज दे रहे हैं.

आदिवासी समाज शुभ कार्यों में करते हैं उपयोग: किसान आशीष बताते हैं कि काली हल्दी की खेती एकदम से आसान है. पहले हम बीज लगाते हैं. उसके बाद वह पौधा बनता है. मैच्योर होने पर पौधा सूख जाता है, लेकिन उसकी जड़ से हमें फसल मिलती है, जो कि काली हल्दी के रूप में होती है. गमले में भी इसकी फसल लगाई जा सकती है. इसमें पानी भी कम लगता है. काली हल्दी का उपयोग मध्य प्रदेश के कुछ आदिवासी शुभ कार्य में करते हैं. यही आदिवासी समाज इस काली हल्दी की खेती भी करते हैं. इसे उपजाने की विधि की जानकारी कुछ आदिवासी किसानों से भी ली है.
काली हल्दी में 100% मेडिसिनल प्रॉपर्टी: कृषि विज्ञान केंद्र गया के कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल बताते हैं, कि गया जिले में कम पैमाने पर काली हल्दी की खेती होती है, लेकिन टिकारी में काली हल्दी की खेती की शुरुआत किसान आशीष कुमार सिंह ने की है. हल्दी पीली हो या काली उसमें कुरकुमीन पाया जाता है, जो कि बहुत ही लाभकारी होता है, लेकिन खासकर काली हल्दी में कुरकुमीन पीली हल्दी की अपेक्षा काफी ज्यादा पाया जाता है और यह काली हल्दी 100% मेडिसिनल प्रॉपर्टी है. इससे कई तरह की बीमारियों में बचाव होता है.

मेडिसनल इंडस्ट्री में डिमांड ज्यादा: देवेंद्र मंडल बताया कि इसकी खेती का रकवा बढ़ रहा है. अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं. मेडिसिनल प्रॉपर्टी होने के कारण इससे खुजली, गैस, चर्म रोग समेत कई बीमारियां इससे दूर होती है. इम्यून सिस्टम को काली हल्दी का पाउडर का उपयोग करने से मजबूती मिलती है. वहीं, एंटी कैंसर होने के कारण इसकी लोकप्रियता काफी है और उत्पादन बढ़ रहा है. मेडिसिनल इंडस्ट्री में डिमांड इसकी ज्यादा है. काली हल्दी की कीमत प्रति किलो 1000 से 5000 किलो तक के बीच होती है. इस तरह काली हल्दी का काफी उपयोग है और इसकी खेती एक अच्छी पहल है, जो कि गया जिले में शुरू की गई है.

"मेडिसिनल प्रॉपर्टी होने के कारण इससे खुजली, गैस, चर्म रोग समेत कई बीमारियां इससे दूर होती है. इम्यून सिस्टम को काली हल्दी का पाउडर का उपयोग करने से मजबूती मिलती है. वहीं, एंटी कैंसर होने के कारण इसकी लोकप्रियता काफी है और उत्पादन बढ़ रहा है. मेडिसिनल इंडस्ट्री में डिमांड इसकी ज्यादा है"- देवेंद्र मंडल, कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर

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