गयाः बिहार के गया में शहरी क्षेत्रों में कई सरकारी विद्यालय ऐसे हैं, जिनकी स्थिति बद से बदतर (Bad condition Of Imliachak Primary School In Gaya) है. शहर के इमलियाचक प्राथमिक विद्यालय (Imliachak Primary School) में छात्रों के शिक्षा के अधिकारों का हनन किस कदर हो रहा है, ये अंदाजा इस स्कूल की स्थिति से लगाया जाता सकता है. ये विद्यालय भवनहीन ही नहीं, भूमिहीन भी है. यहां के बच्चों को टेबल-कुर्सी, ब्लैक बोर्ड, बेंच टॉयलेट और हैंडपंप जैसी बुनयादी सुविधाओं से कोई वास्ता नहीं है. अपना भविष्य संवारने के लिए ये मासूम सालों भर इसी झोपड़ी में पढ़कर अपना बचपन गुजार रहे हैं.
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बच्चों को एक ब्लैक बोर्ड भी नसीब नहींः प्राथमिक विद्यालय इमलियाचक गया शहर में उस स्थान पर स्थित है, जहां से सरकारी रहनुमाओं के दफ्तर नजदीक हैं. इसके बावजूद ताज्जुब की बात यह है, कि इस विद्यालय को आज तक जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी. कई दशकों से यह विद्यालय खुले में चल रहा है. इस विद्यालय को सिर्फ एक यज्ञ नुमा झोपड़ी का सहारा है. इन बच्चों को एक अदद ब्लैकबोर्ड भी नसीब नहीं है. पानी के लिए हैंडपंप और शौचालय की बात ही दूर है.
मौसम के मुताबिक चलता है स्कूलः मध्यान भोजन भी खुले में बनता है. खुले में बने भोजन कितने शुद्ध और गंदगीरहित होते होंगे ये आप भी सोच सकते हैं. आगर बारिश हो गई तो उस दिन की पढ़ाई खत्म कर दी जाती है. गर्मी ज्यादा पड़ी तो विद्यालय बंद कर दिया जाता है. ठंड के मौसम में छात्र यहां आना नहीं चाहते, क्योंकि यह पूरी तरह से चारों ओर से खुला हुआ है. इस विद्यालय के पास एक मंदिर है, लेकिन मंदिर का सहारा भी इन बच्चों को नसीब नहीं हो पाता. यही वजह है कि बरसात में बारिश, गर्मी में धूप और सर्दी के मौसम में ठंड से ये बच्चे परेशान रहते हैं.
कागजों पर चलता है ये स्कूलः बरसों से ये विद्यालय कागजों पर संचालित किया जा रहा है. यही वजह है कि विद्यालय अपनी सभी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. बुनियादी सुविधाओं का अभाव देखें, तो इसे छात्रों के शिक्षा अधिकार का हनन ही कहा जा सकता है, क्योंकि छात्रों को पूरा अधिकार है कि सरकारी विद्यालय में हर सुविधा मिले. वह भी तब जब सरकार दावे करती है, कि सरकारी विद्यालयों की पढ़ाई अनुकूल है और हर व्यवस्थाएं इसमें की गई है. यहां तो एक टॉयलेट का भी अभाव है.
"यहां जितने छात्रों का नामांकन है, उसमें से आधे बच्चे ही आते हैं. वैसे देखें तो, यह स्कूल मौसम पर निर्भर है, कब चलेगा और कब नहीं चलेगा कुछ नहीं कहा जा सकता. क्योंकि यहां कोई सुविधा ही नहीं है. बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं. कई दफा विभागीय अधिकारियों से इस संबंध में कदम उठाने की मांग की गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ"- फैसल नजमी, प्रधानाध्यापक
"इसमें अभी हमलोगों ने बात की है, हेडमास्टर से और बीईओ से भी कोई सुरक्षित जगह देखर वहां बच्चों को शिफ्ट कराएंगे. जहां से आने-जाने में उनको सुविधा हो. जमीन के लिए भी सीओ से बात हुई, जल्द ही स्कूल की अपनी जमीन हो इसका प्रयास चल रहा है"- राजदेव राम, जिला शिक्षा पदाधिकारी
"इस स्कूल का अपना बड़ा सा भवन होना चाहिए, ना ब्लैक बोर्ड है, ना कुर्सी टेबल, बैठने के लिए बेंच भी नहीं है. हमलोग ऐसे ही पढ़ते हैं. खेलने भी नहीं दिया जाता. पानी बरसता है तो इसी में किसी तरह गुजारा करते हैं. हमलोग चाहते हैं कि बड़ा सा भवन हो और वहां हमलोग अच्छे से पढ़ाई कर सकें"- अमित, छात्र
आजादी के बाद से ही इसे उपेक्षितः वहीं, जब इस स्कूल के बच्चों से बात की गई, तो उनके मन में एक अच्छे और बड़े स्कूल भवन ना होने की कसक साफ महसूस हुई. बच्चे कहते हैं कि उन्हें एक बड़ा सा स्कूल चाहिए, जिसमें टेबल कुर्सी हो ब्लैक बोर्ड हो, टॉयलेट हो. आजादी के बाद से ही इसे उपेक्षित रखा गया है. स्कूल के शिक्षक बताते हैं कि ये आजादी के समय का स्कूल है, लेकिन यहां दिक्कतें ही दिक्कते हैं. यह विद्यालय भवनहीन और भूमिहीन दोनों है. बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं. कई दफा विभागीय अधिकारियों से इस संबंध में कदम उठाने की मांग की गई, लेकिन कुछ नहीं हुआ. विद्यालय की स्थिति बदतर बनी हुई है.