गया: मोक्षधाम गया जी में पिंडदानी अलग-अलग पिंडवेदी पर पिंडदान करने के बाद मंगलगौरी मंदिर माता का दर्शन करने जरूर जाते हैं. इस मंदिर के यश की वजह से इसे पालनपीठ मंदिर भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार यहां माता सती का स्तन गिरा था. सिद्ध पीठों में विख्यात माता के इस मंदिर में मंगलवार को अपार भीड़ लगती है. इस पितृपक्ष में हर रोज सुबह से शाम तक पिंडदानी दर्शन पाने के लिए लाइनों में लगे रहते हैं.
ऐसे बना शक्तिपीठ मंगलगौरी मंदिर
भस्मकूट पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ मंगलगौरी मंदिर को पालनहार पीठ या पालनपीठ कहा जाता है. इसके पीछे एक प्रचलित कथा है. कथा के अनुसार, भगवान शंकर जब अपनी पत्नी सती का जला हुआ शरीर लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटा था. इसी क्रम में मां सती के शरीर के टुकड़े देश के अलग-अलग स्थानों पर गिरे. इन्हीं स्थान को शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है. शरीर के गिरे हुए टुकड़ों में स्तन का एक टुकड़ा गया के पर्वत पर गिरा था. इसी स्थान को शक्तिपीठ मंगलगौरी मंदिर कहा जाता है.
मंगल की कामना करने आते हैं श्रद्धालु
इस भस्मकुट पर मंगलगौरी मंदिर के साथ ही कई पिंडवेदी हैं. इन पिंड वेदियों में गौ प्रचार वेदी और भीम गया वेदी प्रमुख है. यहां पिंड दान करने वाले श्रदालु अपने परिजनों के लिए मंगल की कामना करते हैं. इसलिए इस मंदिर में विरजमान देवी को मंगलदायिनी देवी कहा जाता है. यहां भक्तों की अपार भीड़ लगती है.
पितृपक्ष में होती हैं श्रद्धालुओं की भीड़
नवरात्र के मौके पर शक्ति पीठ और सिद्धि पीठ में भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन गया के पालनपीठ में विख्यात मंगलगौरी के मंदिर का पितृपक्ष में विशेष स्थान है. पितृपक्ष में सुबह से लेकर शाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है. गया जी में आए भक्त पिंडदान संपन्न करके माता के दरबार में हाजिरी लगाने जरूर आते हैं.
देश- विदेश से आते हैं श्रद्धालु
पंडितों के अनुसार ऐसी कोई मान्यता नहीं है कि यहां जरूर जाएं, लेकिन यहां आने की एक परंपरा चली आ रही है. इस वजह से लोग पिंडदान के कर्मकांड संपन्न करके माता के दरबार में दर्शन को आते हैं. मंदिर के प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां विदेशों से भी श्रद्धालु आकर दर्शन करते हैं. दर्शन के लिए यहां कतार लंबी हो जाती हैं क्योंकि मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत छोटा है.