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Gaya Pitru Paksha Mela में सातवें दिन खीर के पिंड से श्राद्ध का विधान, भीष्म ने यहां किया था पिंडदान - Gaya Pitru Paksha Mela

गया में आज पितृ पक्ष मेले का सातवां दिन है. आश्विन कृष्ण पंचमी को विष्णुपद मंदिर में रुद्र पद, ब्रह्म पद और विष्णु पद में खीर के पिंड से श्राद्ध का विधान, भीष्म पितामह ने अपने पिता शांतनु के लिए पिंडदान किया था. भगवान राम से भी जुड़ी है मान्यता.

गया पितृ पक्ष मेला
गया पितृ पक्ष मेला
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 4, 2023, 6:01 AM IST

गया : बिहार के गया पितृपक्ष मेला में देश के सभी राज्यों यहां तक कि विदेशों से लाखों तीर्थ यात्रियों का आना हुआ है. पितरों के निमित्त लाखों तीर्थ यात्री पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान करने पहुंचे हैं. विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले के आश्विन कृष्ण पंचमी को यानी सातवें दिन विष्णुपद मंदिर में रुद्र पद, ब्रह्म पद और विष्णु पद पर खीर से पिंड और श्राद्ध का विधान है. इन वेदियों पर भीष्म पितामह अपने पिता शांतनु को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान करने को आए थे.

ये भी पढ़ें- Bageshwar Baba : 'किसी भी श्रेणी के हों गया आना ही पड़ेगा, प्रभु श्री राम को भी पिता की आत्मशांति के लिए आना पड़ा'


विष्णुपद, रूद्रपद और ब्रह्म पद में खीर के पिंड से श्राद्ध का विधान : आश्विन कृष्ण पंचमी यानी कि पितृ पक्ष मेले के सातवें दिन विष्णु पद मंदिर में स्थित रूद्रपद, ब्रह्मपद और विष्णु पद पर खीर के पिंड से श्राद्ध करने का विधान है. त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले अश्विन कृष्ण पंचमी को इन वेदियों पर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं. इन वेदियों के संदर्भ में कई मान्यताएं हैं. यहां पिंडदान से विष्णु लोक, ब्रह्म लोक और रुद्र लोक की प्राप्ति होती है.

तीनों वेदियों पर करना चाहिए खीर के पिंड से श्राद्ध : आश्विन कृष्ण पंचमी को विष्णुपद मंदिर में श्राद्ध करते हैं. विष्णु पद मंदिर में स्थित विष्णु पद, रूद्र पद और ब्रह्म पद पर खीर के पिंड से श्राद्ध करना चाहिए. मान्यता है कि विष्णुपद के दर्शन मात्र से पापों का नाश हो जाता है, वहीं स्पर्श और पूजन से पितरों को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, ब्रह्म पद पर पिंडदान से ब्रह्म लोक और रूद्रप्रद पर पिंडदान से रूद्र लोग की प्राप्ति हो जाती है. विष्णुपद मंदिर में स्थित इन तीनों तीर्थ पर आश्विन कृष्ण पंचमी को पिंडदान करने का विधान है.

भीष्म पितामह भी आए थे गया श्राद्ध करने : धर्म पुराण में जिक्र मान्यताओं के अनुसार भीष्म पितामह जब गया जी श्राद्ध करने आए थे और पितरों का ध्यान कर पिंड देने के लिए उठे, तो वैसे ही उनके पिता शांतनु के दोनों हाथ सामने आए. किंतु भीष्म पितामह ने अपने पिता शांतनु के हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर पिंड दिया था. इससे शांतनु काफी प्रसन्न हुए थे और उन्होंने भीष्म पितामह को आशीर्वाद दिया था और मोक्ष लोक को प्राप्त किया था.

प्रभु राम ने किया था श्रद्ध : इसी तरह की मान्यता ब्रह्मलोक के संदर्भ में है कि यहां पिंडदान से ब्रह्म लोक की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, एक मान्यता रूद्र पद से भगवान श्री राम से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि प्रभु श्री राम रुद्र पद पर पिंडदान कर रहे थे, तो महाराज दशक ने हाथ फैलाए. प्रभु श्री राम ने राजा दशरथ के हाथ के बजाय रूद्रपद पर पिंडदान किया था. इससे राजा दशरथ को रूद्र लोक की प्राप्ति हुई थी. गया में विभिन्न वेदियों पर पिंडदान की अपनी अपनी मान्यता है. यहां एक से लेकर 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन और 17 दिनों का श्राद्ध करने का विधान है, जो लोग 17 दिनों का श्राद्ध करते हैं, उसे त्रिपाक्षिक श्राद्ध कहा जाता है.

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विष्णुपद, रूद्रपद और ब्रह्म पद में खीर के पिंड से श्राद्ध का विधान : आश्विन कृष्ण पंचमी यानी कि पितृ पक्ष मेले के सातवें दिन विष्णु पद मंदिर में स्थित रूद्रपद, ब्रह्मपद और विष्णु पद पर खीर के पिंड से श्राद्ध करने का विधान है. त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने वाले अश्विन कृष्ण पंचमी को इन वेदियों पर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं. इन वेदियों के संदर्भ में कई मान्यताएं हैं. यहां पिंडदान से विष्णु लोक, ब्रह्म लोक और रुद्र लोक की प्राप्ति होती है.

तीनों वेदियों पर करना चाहिए खीर के पिंड से श्राद्ध : आश्विन कृष्ण पंचमी को विष्णुपद मंदिर में श्राद्ध करते हैं. विष्णु पद मंदिर में स्थित विष्णु पद, रूद्र पद और ब्रह्म पद पर खीर के पिंड से श्राद्ध करना चाहिए. मान्यता है कि विष्णुपद के दर्शन मात्र से पापों का नाश हो जाता है, वहीं स्पर्श और पूजन से पितरों को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, ब्रह्म पद पर पिंडदान से ब्रह्म लोक और रूद्रप्रद पर पिंडदान से रूद्र लोग की प्राप्ति हो जाती है. विष्णुपद मंदिर में स्थित इन तीनों तीर्थ पर आश्विन कृष्ण पंचमी को पिंडदान करने का विधान है.

भीष्म पितामह भी आए थे गया श्राद्ध करने : धर्म पुराण में जिक्र मान्यताओं के अनुसार भीष्म पितामह जब गया जी श्राद्ध करने आए थे और पितरों का ध्यान कर पिंड देने के लिए उठे, तो वैसे ही उनके पिता शांतनु के दोनों हाथ सामने आए. किंतु भीष्म पितामह ने अपने पिता शांतनु के हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर पिंड दिया था. इससे शांतनु काफी प्रसन्न हुए थे और उन्होंने भीष्म पितामह को आशीर्वाद दिया था और मोक्ष लोक को प्राप्त किया था.

प्रभु राम ने किया था श्रद्ध : इसी तरह की मान्यता ब्रह्मलोक के संदर्भ में है कि यहां पिंडदान से ब्रह्म लोक की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, एक मान्यता रूद्र पद से भगवान श्री राम से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि प्रभु श्री राम रुद्र पद पर पिंडदान कर रहे थे, तो महाराज दशक ने हाथ फैलाए. प्रभु श्री राम ने राजा दशरथ के हाथ के बजाय रूद्रपद पर पिंडदान किया था. इससे राजा दशरथ को रूद्र लोक की प्राप्ति हुई थी. गया में विभिन्न वेदियों पर पिंडदान की अपनी अपनी मान्यता है. यहां एक से लेकर 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन और 17 दिनों का श्राद्ध करने का विधान है, जो लोग 17 दिनों का श्राद्ध करते हैं, उसे त्रिपाक्षिक श्राद्ध कहा जाता है.

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