पूर्वी चंपारण: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक सामा चकेवा अब इतिहास बनने की कागार पर पहुंच गया है. अंधाधुंध शहरीकरण की चकाचौंध में लोग अपनी पौराणिक परंपराओं की बलि चढ़ा रहे हैं. इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों के लोग इसे जिंदा रखे हुए हैं. हालांकि शहर में रहने वाले कुछ लोग भी इस विलुप्त होती परंपरा को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं.
कैसे मनाते हैं सामा चकेवा
सामा चकेवा में महिलाएं बांस के बने डाले में मिट्टी का सामा, चकेवा, वृंदावन, सतभईया और चुगला सजा कर रखती है. इसके बीच एक जलता दीया रखा जाता है. बहनें सामा-चकेवा से संबंधित गीत गाती हैं. फिर चुगला और वृंदावन में आग लगाकर बुझाया जाता है. जिसके बाद खेत में इसे भाई घुटने से तोड़कर विसर्जित करते है. यह छठ के पारण के दिन से शुरु होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन खत्म होता है.
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मिथिलांचल का मुख्य त्यौहार
यह मुख्य रूप से मिथिलांचल में मनाया जाता है. यह भाई-बहन के आपसी प्रेम का त्यौहार है. जो अब ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गई है. जिससे सामा चकेवा से संबंधित सामान शहरो के बाजार से गायब हो चुके हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब यह बहुत कम बिकने लगे हैं.