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विलुप्त होने के कगार पर भाई बहन के प्रेम का प्रतिक सामा चकेवा

सामा चकेवा मुख्य रूप से मिथिलांचल में मनाया जाता है. यह भाई-बहन के आपसी प्रेम का त्यौहार है. जो अंधाधुंध शहरीकरण की चकाचौंध में वुलुप्त होता जा रहा है.

विलुप्त होने की कगार पर भाई बहन के प्रेम का प्रतिक सामा चकेवा
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Published : Nov 12, 2019, 10:45 AM IST

पूर्वी चंपारण: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक सामा चकेवा अब इतिहास बनने की कागार पर पहुंच गया है. अंधाधुंध शहरीकरण की चकाचौंध में लोग अपनी पौराणिक परंपराओं की बलि चढ़ा रहे हैं. इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों के लोग इसे जिंदा रखे हुए हैं. हालांकि शहर में रहने वाले कुछ लोग भी इस विलुप्त होती परंपरा को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं.

कैसे मनाते हैं सामा चकेवा
सामा चकेवा में महिलाएं बांस के बने डाले में मिट्टी का सामा, चकेवा, वृंदावन, सतभईया और चुगला सजा कर रखती है. इसके बीच एक जलता दीया रखा जाता है. बहनें सामा-चकेवा से संबंधित गीत गाती हैं. फिर चुगला और वृंदावन में आग लगाकर बुझाया जाता है. जिसके बाद खेत में इसे भाई घुटने से तोड़कर विसर्जित करते है. यह छठ के पारण के दिन से शुरु होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन खत्म होता है.

विलुप्त होने की कगार पर भाई बहन के प्रेम का प्रतिक सामा चकेवा

ये भी पढ़ेः कार्तिक पूर्णिमा को लेकर उत्तरायणी गंगा के तट पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

मिथिलांचल का मुख्य त्यौहार
यह मुख्य रूप से मिथिलांचल में मनाया जाता है. यह भाई-बहन के आपसी प्रेम का त्यौहार है. जो अब ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गई है. जिससे सामा चकेवा से संबंधित सामान शहरो के बाजार से गायब हो चुके हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब यह बहुत कम बिकने लगे हैं.

east champaran
सामा चकेवा मनाती महिलाएं

पूर्वी चंपारण: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक सामा चकेवा अब इतिहास बनने की कागार पर पहुंच गया है. अंधाधुंध शहरीकरण की चकाचौंध में लोग अपनी पौराणिक परंपराओं की बलि चढ़ा रहे हैं. इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों के लोग इसे जिंदा रखे हुए हैं. हालांकि शहर में रहने वाले कुछ लोग भी इस विलुप्त होती परंपरा को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं.

कैसे मनाते हैं सामा चकेवा
सामा चकेवा में महिलाएं बांस के बने डाले में मिट्टी का सामा, चकेवा, वृंदावन, सतभईया और चुगला सजा कर रखती है. इसके बीच एक जलता दीया रखा जाता है. बहनें सामा-चकेवा से संबंधित गीत गाती हैं. फिर चुगला और वृंदावन में आग लगाकर बुझाया जाता है. जिसके बाद खेत में इसे भाई घुटने से तोड़कर विसर्जित करते है. यह छठ के पारण के दिन से शुरु होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन खत्म होता है.

विलुप्त होने की कगार पर भाई बहन के प्रेम का प्रतिक सामा चकेवा

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मिथिलांचल का मुख्य त्यौहार
यह मुख्य रूप से मिथिलांचल में मनाया जाता है. यह भाई-बहन के आपसी प्रेम का त्यौहार है. जो अब ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गई है. जिससे सामा चकेवा से संबंधित सामान शहरो के बाजार से गायब हो चुके हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब यह बहुत कम बिकने लगे हैं.

east champaran
सामा चकेवा मनाती महिलाएं
Intro:मोतिहारी।भाई बहन के प्रेम का प्रतीक समा चकवा अब इतिहास बनने के कागार पर पहुंच गया है।अंधाधुंध शहरीकरण के चकाचौंध में लोग अपने पौराणिक परम्पराओं की बलि चढ़ा रहे हैं और खुद को हाई सोसाईटी का आलम्बदार समझने की गलतफहमी में जी रहे हैं।बाबजूद इसके,ग्रामीण इलाको की झोपड़ियों में बसने वाली गरीबी ऐसी परम्पराओं को जिंदा रखे हुए है।हालांकि,शहर के महलों में रहने वाली गिनी चुनी महिलायें समा-चकेवा की विलुप्त होती परम्परा को एकबार फिर से स्थापित करने का प्रयास कर रही है।Body:वी.ओ.—1-----घासों के बीच बैठकर महिलाएं बांस के बने डाला में मिट्टी का बना शमा, चकेवा, वृंदावन, सतभईया,चुगला सजा कर रखती है।इस सबके बीच एक जलता दीप रखा होता है।बहनें शमा-चकेवा से संबंधित गीत गाती हैं।शमा खेलने के बाद चुगला और वृंदावन में गीत गाते हुए आग लगाकर फिर बुझाया जाता है।गाँव की एक जगह इकठ्ठा हुयी बहनें हंसी मजाक करते हुए शमा खेलती है।यह छठ के परना के दिन से शुरु होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन भाई शमा को अपनी जंघा पर फोड़ता है।फिर बहने गीत गाते हुए निकलती है और वृन्दावन को खेत में फेंककर शमा को भाई पानी में विसर्जित कर देता है।भाई-बहन के आपसी प्रेम का यह अनोखी परम्परा अब ग्रामीण क्षेत्रों तक हीं सिमट कर रह गई है।जिसकारण पहले बाजारों में बिकने वाला मिट्टी का बना समा चकेवा से संबंधित सामान शहरो के बाजार से गायब है।जबकि ग्रामीण क्षेत्रो में भी अब बहुत कम मात्र में बिकने आता है।लिहाजा,शहरों में गिनी चुनी महिलाओं को अपने हाथों से प्रतिकात्मक शमा चकेवा के समानों को बनाना पड़ता है।
बाइट-------------अनुपम कुमारी,शिक्षिका(चश्मा)
बाइट--------------पूनम सिंह,स्थानीय(लाल शॉल)Conclusion:वी.ओ.—2----गांव में पली बढ़ी बहनों को जब शहरों में आने के बाद उम्र के एक पड़ाव पर अपनी पौराणिक परम्पराओं का ख्याल आया।तो वह अपनी कुछ सहेलियों के साथ मिलकर भाई-बहन के प्रेम के प्रतिक इस अनोखे शमा चकेवा खेल को खेलना शुरु किया और स्थानीय महिलाओं को इस अनोखे परम्परा के बारे में बताना शुरु किया है।ताकि समाजिक परम्पराओं के बदौलत समाज के बिखराव को रोकने में मदद मिल सके।

बाइट--------सीमा सिंह,सामाजिक कार्यकर्ता

वी.ओ.एफ-----पौराणिक परम्परायें अब धीरे-धीरे गरीबों की झोपड़ियों तक की सीमित होती जा रही है।जरुरत है सामाजिक बंधनों को मजबूत बनाने वाली भाई बहन के प्रेम के प्रतिक समा-चकेवा जैसी परम्पराओं को जिंदा रखने की।ताकि अपसंस्कृति की दहलीज पर खड़े समाज को फिर एक सूत्र में बांधकर सभ्य और सुसंसकृत समाज का निर्माण किया जा सके।जहां रिश्तों की डोर और उसकी अहमियत बरकरार रह सके।
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