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दरभंगा: 1942 से हर साल होती है कुश्ती प्रतियोगिता, हारने वाले भी होते हैं पुरस्कृत

मधुबनी से मुकाबले में भाग लेने आए पहलवान संजीव पासवान ने कहा कि उन्हें दुख है कि कुश्ती के लिए बिहार में कोई प्रोत्साहन योजना नहीं है. ऐसे में वे चाहते हैं कि उन लोगों को सरकार सुविधाएं दे और उन्हें कोच उपलब्ध कराए.

मनीगाछी में कुश्ती प्रतियोगिता
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Published : Nov 4, 2019, 12:02 PM IST

दरभंगा: जिले के मनीगाछी प्रखंड के जगदीशपुर गांव में कुश्ती को बढ़ावा देने की परंपरा पिछले 77 साल से चली आ रही है. यहां 1942 से हर साल कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. जिसमें उत्तर बिहार के कई जिलों के अलावा नेपाल से भी पहलवान भाग लेने आते हैं. इस प्रतियोगिता की सबसे अनोखी बात यह है कि इसमें जीतने वालों के साथ हारने वाले पहलवानों को भी पुरस्कृत किया जाता है.

10 जिलों के गांवों से आते हैं पहलवान
जगदीशपुर पंचायत के मुखिया कैलाश सहनी ने बताया कि इस प्रतियोगिता की शुरूआत देश की आजादी के पहले हुई थी. इसमें तकरीबन 10 जिलों से पहलवान शिरकत करने आते हैं. जहां 10 हजार से ज्यादा दर्शक जुटते हैं. उन्होंने कहा कि यहां आनेवाले हर पहलवान को प्रोत्साहित किया जाता है.

जगदीशपुर में 1942 से हर साल होती आ रही है कुश्ती प्रतियोगिता

'राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेलें पहलवान'
आयोजन समिति के सदस्य महाजन सहनी ने बताया कि पहले दरभंगा में पहलवानी की समृद्ध परंपरा थी. जहां पहलवान बंगाल, गोरखपुर और नेपाल तक पहलवानी करने जाते थे. धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होती गई. ऐसे में उन लोगों ने जगदीशपुर में पहलवानी को अभी भी जिंदा कर रखा है. उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि पहलवान यहां से निकलकर राज्य के साथ देश के लिए भी खेलें और ओलंपिक तक पहुंच कर पदक प्राप्त करें.

'सरकार मुहैया कराए सुविधा'
मधुबनी से मुकाबले में भाग लेने आए पहलवान संजीव पासवान ने कहा कि वे बहुत उत्साह से हर साल प्रतियोगिता में भाग लेते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें दुख है कि कुश्ती के लिए बिहार में कोई प्रोत्साहन योजना नहीं है. ऐसे में वे चाहते हैं कि उन लोगों को सरकार सुविधाएं दें और उन्हें कोच उपलब्ध कराए. ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर राज्य और देश का नाम रौशन कर सकें.

दरभंगा: जिले के मनीगाछी प्रखंड के जगदीशपुर गांव में कुश्ती को बढ़ावा देने की परंपरा पिछले 77 साल से चली आ रही है. यहां 1942 से हर साल कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. जिसमें उत्तर बिहार के कई जिलों के अलावा नेपाल से भी पहलवान भाग लेने आते हैं. इस प्रतियोगिता की सबसे अनोखी बात यह है कि इसमें जीतने वालों के साथ हारने वाले पहलवानों को भी पुरस्कृत किया जाता है.

10 जिलों के गांवों से आते हैं पहलवान
जगदीशपुर पंचायत के मुखिया कैलाश सहनी ने बताया कि इस प्रतियोगिता की शुरूआत देश की आजादी के पहले हुई थी. इसमें तकरीबन 10 जिलों से पहलवान शिरकत करने आते हैं. जहां 10 हजार से ज्यादा दर्शक जुटते हैं. उन्होंने कहा कि यहां आनेवाले हर पहलवान को प्रोत्साहित किया जाता है.

जगदीशपुर में 1942 से हर साल होती आ रही है कुश्ती प्रतियोगिता

'राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेलें पहलवान'
आयोजन समिति के सदस्य महाजन सहनी ने बताया कि पहले दरभंगा में पहलवानी की समृद्ध परंपरा थी. जहां पहलवान बंगाल, गोरखपुर और नेपाल तक पहलवानी करने जाते थे. धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होती गई. ऐसे में उन लोगों ने जगदीशपुर में पहलवानी को अभी भी जिंदा कर रखा है. उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि पहलवान यहां से निकलकर राज्य के साथ देश के लिए भी खेलें और ओलंपिक तक पहुंच कर पदक प्राप्त करें.

'सरकार मुहैया कराए सुविधा'
मधुबनी से मुकाबले में भाग लेने आए पहलवान संजीव पासवान ने कहा कि वे बहुत उत्साह से हर साल प्रतियोगिता में भाग लेते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें दुख है कि कुश्ती के लिए बिहार में कोई प्रोत्साहन योजना नहीं है. ऐसे में वे चाहते हैं कि उन लोगों को सरकार सुविधाएं दें और उन्हें कोच उपलब्ध कराए. ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर राज्य और देश का नाम रौशन कर सकें.

Intro:दरभंगा। क्रिकेट जैसे चकाचौंध वाले खेलों की वजह से अब कुश्ती जैसे बिहार के पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहन मिलना बंद हो रहा है। इसकी वजह से बिहार में कुश्ती हासिये पर जा रही है। लेकिन दरभंगा जिले् के मनीगाछी प्रखंड के जगदीशपुर गांव में कुश्ती को बढ़ावा देने की परंपरा पिछले 77 साल से चली आ रही है। यहां आजादी के पहले 1942 में कुश्ती प्रतियोगि्ता की शुरूआत हुई थी, जो हर साल आयोजित होती है। इसमें उत्तर बिहार के कई जिलों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से भी पहलवान आते हैं। गाजे-बाजे के साथ अखाड़े में पहलवान उतरते हैं। सबसे बड़ी बात ये कि यहां जीतने वालों के अलावा हारने वाले पहलवानों को भी पुरस्कार दिए जाते हैं। Body:जगदीशपुर पंचायत के मुखिया कैलाश सहनी ने बताया कि इस प्रतियोगिता की शुरूआत देश की आजादी के पहले 1942 में हुई थी। इसमें तकरीबन 10 जिलों से दूरदराज के गांवों के पहलवान शिरकत करने आते हैं। 10 हजार से ज्यादा दर्शक यहां जुटते हैं। उन्होंने कहा कि यहां आनेवाले हर पहलवान को प्रोत्साहित किया जाता है।

उधर, आयोजन समिति के सदस्य महाजन सहनी ने बताया कि पुराने समय में दरभंगा जिले में पहलवानी की समृद्ध परंपरा थी। इलाके के पहलवान बंगाल, गोरखपुर और नेपाल तक पहलवानी करने जाते थे। धीरे-धीरे जिले से ये परंपरा खत्म होती गयी। उन्होंने बताया कि इस पुरानी उत्कृष्ट परंपरा को उन लोगों ने जगदीशपुर में जिंदा रखा है। वे चाहते हैं कि यहां से निकलकर पहलवान राज्य और देश के लिए खेलें और ओलंपिक तक पहुंच कर पदक प्राप्त करें। Conclusion:वहीं मधुबनी से मुकाबले में शिरकत करने आये पहलवान संजीव पासवान ने कहा कि वे बहुत उत्साह से हर साल यहां आते हैं। इस बार उन्होंने एक मुकाबला जीता है जबकि दूसरा ड्रॉ रहा है। उन्होंने कहा कि उन्हें दुख होता है कि कुश्ती के लिए बिहार में कोई प्रोत्साहन योजना नहीं है। वे चाहते हैं कि उन लोगों के लिए सरकार सुविधाएं दे, उन्हें कोच उपलब्ध कराए ताकि वे भी बेहतर प्रदर्शन कर सकें और राज्य व देश के लिए खेल सकें। सरकार उन्हें भी नौकरियां दे।

बाइट 1- कैलाश सहनी, मुखिया, जगदीशपुर पंचायत
बाइट 2- महाजन सहनी, सदस्य, आयोजन समिति
बाइट 3- संजीव पासवान, पहलवान, मधुबनी

विजय कुमार श्रीवास्तव
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