दरभंगा: दुनिया भर में अपने दुर्लभ दस्तावेजों के लिए मशहूर 125 साल पुरानी ऐतिहासिक दरभंगा राज लाइब्रेरी के कई धरोहर नष्ट होने की कगार पर पहुंच गए हैं. दरअसल 'हेरिटेज कंसोर्टियम' नाम की जिस कंपनी को दुर्लभ दस्तावेजों, किताबों, फोटोग्राफ्स और पाण्डुलिपियों के संरक्षण का काम दिया गया था, उसने आधा-अधूरा काम किया. इसकी वजह से संरक्षण के बजाए कई दुर्लभ दस्तावेज और ज्यादा खराब हो गए.
महाराधिराज कामेश्वर सिंह शोध पुस्तकालय की पुस्तकों के संरक्षण की योजना पिछले साल शुरू हुई थी. इसके लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार, नई दिल्ली से 5 लाख की राशि मिली थी.
बिहार सरकार ने नहीं की अब तक कोई कार्रवाई
दरअसल यह कंपनीद दरभंगा राज लाइब्रेरी के अलावा लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, चंद्रधारी संग्रहालय और राजकीय अभिलेखागार के दस्तावेजों का भी संरक्षण कर रही थी. इस कंपनी को बिहार के कई जिलों में इसी तरह से करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट मिले थे. लेकिन, अधिकतर जगह इसके खराब परफॉर्मेंस की वजह से इसका भुगतान रोक कर इससे काम वापस ले लिया गया. उसके बाद से लाइब्रेरी में भी दस्तावेजों के संरक्षण का काम ठप है. दूसरी तरफ इस कंपनी पर बिहार सरकार ने कोई कार्रवाई अब तक नहीं की है.
'दस्तावेजों के संरक्षण में सुधार की जरूरत'
महाराजा कामेश्वर सिंह शोध पुस्तकालय के निदेशक प्रो. भवेश्वर सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय अभिलेखागार से जो राशि मिली थी,उससे काम तो शुरू हुआ लेकिन कंपनी ने काम सही ढंग से काम किया नहीं. इसके बाद विवि ने एक निगरानी समिति बनाई. समिति ने कंपनी का भुगतान रोकने की अनुशंसा की. इसके बाद से कंपनी को बार-बार पत्र लिखकर सही ढंग से काम पूरा करने को कहा जा रहा है. लेकिन कंपनी के लोग दोबारा लौट कर नही आये. वहीं, बनारस हिंदू विवि, वाराणसी की सेंट्रल लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन संजय कुमार सिंह ने कहा कि लाइब्रेरी में दस्तावेजों के संरक्षण में सुधार की जरूरत है.
बता दें कि दरभंगा राज लाइब्रेरी की स्थापना दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह ने वर्ष 1895 में की थी. यह बिहार में अपने तरह की लाखों अनूठी पुस्तकों, पांडुलिपियों और जर्नल्स का इकलौता संग्रह है. यहां देश-विदेश के शोधार्थी शोध के लिये आते हैं.