दरभंगा: पारंपरिक खेती से इतर जिले के किसानों ने अब नकदी फसल उगाना शुरू कर दिया है. किसान, स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभाकारी माने जाने वाला मिरेकल नट यानी सिंघाड़ा की खेती कर रहे हैं. वहीं, इस स्वास्थ्यवर्धक फल की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की अपार संभावनाएं हैं. जिससे किसानों की आय में इजाफा होने के साथ-साथ उनके दिन बहुतेरे होने की उम्मीद जगी है.
मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा की ओर से विकसित किए गए सिंघाड़ा के नए प्रभेद 'मिरेकल नट' की बंपर उपज हो रही है. इस बार दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों के कई इलाकों के किसानों ने इस सिंघाड़े की खेती की है. जिले के किसान मिरेकल नट की खेती मखाने के साथ कर रहे हैं. जिस कारण किसान एक बार में ही दो फसल की उपज एक साथ कर रहे हैं.
वहीं, इस बाबत किसानों का कहना है कि इससे प्रति हेक्टेयर कम से कम डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हो रहा है. वहीं, जाले स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों को मिरेकल नट की खेती में मदद कर रहा है. जिले में शुरू हुए इस प्रयोग पर ईटीवी भारत ने किसानों और कृषि वैज्ञानिक से जानकारी ली.
मिरेकल नट से डेढ़ लाख का हुआ मुनाफा- किसान
जाले के एक किसान धीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने 3 हेक्टेयर में मखाना की फसल लगाई थी. मखाना की उपज लेने के बाद उन्होंने उसी तालाब में सिंघाड़ा भी लगाया था. जिससे उन्हें करीब डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ. उन्होंने कहा कि कांटे वाले सिंघाड़े की उपज करीब 35 टन प्रति हेक्टेयर होती है. जबकि उन्होंने बिना कांटे वाले इस सिंघाड़े की उपज करीब 70 टन प्रति हेक्टेयर कर ली है. उन्होंने कहा कि बिना कांटे वाले इस नए सिंघाड़े की कीमत बाजार में करीब 30 रुपये किलो मिलती है. उन्होंने कहा इस सिंघाड़े को सुखा कर इसका नट निकाल कर भी वे बेच रहे हैं. जिससे मुनाफे में और भी वृद्धि हो रही है.
मखाना और मछली पालन के साथ-साथ भी किया जा सकता है सिंघाड़े की खेती- सीनियर टेक्निशियन
वहीं, मखाना अनुसंधान केंद्र के सीनियर टेक्निशियन मुरारी महाराज ने कहा कि इसकी फसल मूंग की फसल लेने के बाद भी की जा सकती है. साथ ही मखाना और मछली पालन के साथ-साथ भी इसे किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि नए प्रभेद को किसानों में प्रचारित करने के लिए केंद्र के वैज्ञानिकों और टेक्नीशियन ने काफी मेहनत की थी. उन्होंने कहा कि सरकार अगर किसानों को सब्सिडी देती है. तो किसान सिंघाड़े की इस प्रभेद को उपजा कर आर्थिक रूप से संपन्न बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि दरभंगा और उसके आसपास के जिलों के किसान सफलतापूर्वक सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं.