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'मिरेकल नट' सिंघाड़े की उपज से किसानों की दोगुनी कमाई का रास्ता साफ

मिरेकल नट (सिंघाड़ा) की बंपर उपज से किसानों का आर्थिक रूप से संपन्न होने का रास्ता नजर आने लगा है. वहीं इलाके के किसानों में ज्यादा से ज्यादा इस फसल को उगाने के प्रति रुझान बढ़े इसे लेकर कृषि विज्ञान केंद्र प्रोत्साहन दे रहा है.

दरभंगा में सिंघाड़े की फसल
सिंघाड़े की उपज से किसानों की दुगुणी कमाई
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Published : Jan 4, 2021, 11:53 AM IST

Updated : Jan 4, 2021, 12:02 PM IST

दरभंगा: पारंपरिक खेती से इतर जिले के किसानों ने अब नकदी फसल उगाना शुरू कर दिया है. किसान, स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभाकारी माने जाने वाला मिरेकल नट यानी सिंघाड़ा की खेती कर रहे हैं. वहीं, इस स्वास्थ्यवर्धक फल की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की अपार संभावनाएं हैं. जिससे किसानों की आय में इजाफा होने के साथ-साथ उनके दिन बहुतेरे होने की उम्मीद जगी है.

दरभंगा
सिंघाड़े की खेती करते किसान

मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा की ओर से विकसित किए गए सिंघाड़ा के नए प्रभेद 'मिरेकल नट' की बंपर उपज हो रही है. इस बार दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों के कई इलाकों के किसानों ने इस सिंघाड़े की खेती की है. जिले के किसान मिरेकल नट की खेती मखाने के साथ कर रहे हैं. जिस कारण किसान एक बार में ही दो फसल की उपज एक साथ कर रहे हैं.

दरभंगा
सिंघाड़ा का नया प्रभेद 'मिरेकल नट'

वहीं, इस बाबत किसानों का कहना है कि इससे प्रति हेक्टेयर कम से कम डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हो रहा है. वहीं, जाले स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों को मिरेकल नट की खेती में मदद कर रहा है. जिले में शुरू हुए इस प्रयोग पर ईटीवी भारत ने किसानों और कृषि वैज्ञानिक से जानकारी ली.

देखें रिपोर्ट

मिरेकल नट से डेढ़ लाख का हुआ मुनाफा- किसान
जाले के एक किसान धीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने 3 हेक्टेयर में मखाना की फसल लगाई थी. मखाना की उपज लेने के बाद उन्होंने उसी तालाब में सिंघाड़ा भी लगाया था. जिससे उन्हें करीब डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ. उन्होंने कहा कि कांटे वाले सिंघाड़े की उपज करीब 35 टन प्रति हेक्टेयर होती है. जबकि उन्होंने बिना कांटे वाले इस सिंघाड़े की उपज करीब 70 टन प्रति हेक्टेयर कर ली है. उन्होंने कहा कि बिना कांटे वाले इस नए सिंघाड़े की कीमत बाजार में करीब 30 रुपये किलो मिलती है. उन्होंने कहा इस सिंघाड़े को सुखा कर इसका नट निकाल कर भी वे बेच रहे हैं. जिससे मुनाफे में और भी वृद्धि हो रही है.

दरभंगा
सिंघाड़े की खेती

मखाना और मछली पालन के साथ-साथ भी किया जा सकता है सिंघाड़े की खेती- सीनियर टेक्निशियन
वहीं, मखाना अनुसंधान केंद्र के सीनियर टेक्निशियन मुरारी महाराज ने कहा कि इसकी फसल मूंग की फसल लेने के बाद भी की जा सकती है. साथ ही मखाना और मछली पालन के साथ-साथ भी इसे किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि नए प्रभेद को किसानों में प्रचारित करने के लिए केंद्र के वैज्ञानिकों और टेक्नीशियन ने काफी मेहनत की थी. उन्होंने कहा कि सरकार अगर किसानों को सब्सिडी देती है. तो किसान सिंघाड़े की इस प्रभेद को उपजा कर आर्थिक रूप से संपन्न बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि दरभंगा और उसके आसपास के जिलों के किसान सफलतापूर्वक सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं.

दरभंगा
जाले स्थित मखाना अनुसंधान केन्द्र
बाढ़ ग्रस्त इलाका होने के कारण है भरपूर संभावनाएं- डॉ दिव्यांशु शेखर वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र जाले के अध्यक्ष डॉ. दिव्यांशु शेखर ने कहा कि मिथिलांचल का इलाका बाढ़ ग्रस्त इलाका है. और यहां साल के कम से कम 4-5 महीने तक पानी रहता है. इसकी वजह से यहां खरीफ की फसल बर्बाद हो जाती है. उन्होंने कहा आगे कहा, 'ऐसी स्थिति में मखाना और सिंघाड़े की खेती इस इलाके के लिए वरदान साबित हो रही है'. उन्होंने कहा कि मखाना अनुसंधान केंद्र की ओर से विकसित इस नए प्रभेद की खेती को लेकर किसान काफी उत्साहित हैं. इस साल वे कोशिश कर रहे हैं कि नाबार्ड से ऐसे किसानों की सहायता की जाए, जो मिरेकल नट की उपज कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत सरकार भी मखाना के साथ सिंघाड़ा की ब्रांडिंग कर रही है. जिससे आने वाले दिनों में मिथिलांचल इलाके में मखानों के साथ-साथ व्यापक स्तर पर किसान मिरेकल नट की खेती करेंगे.

दरभंगा: पारंपरिक खेती से इतर जिले के किसानों ने अब नकदी फसल उगाना शुरू कर दिया है. किसान, स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभाकारी माने जाने वाला मिरेकल नट यानी सिंघाड़ा की खेती कर रहे हैं. वहीं, इस स्वास्थ्यवर्धक फल की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग की अपार संभावनाएं हैं. जिससे किसानों की आय में इजाफा होने के साथ-साथ उनके दिन बहुतेरे होने की उम्मीद जगी है.

दरभंगा
सिंघाड़े की खेती करते किसान

मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा की ओर से विकसित किए गए सिंघाड़ा के नए प्रभेद 'मिरेकल नट' की बंपर उपज हो रही है. इस बार दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों के कई इलाकों के किसानों ने इस सिंघाड़े की खेती की है. जिले के किसान मिरेकल नट की खेती मखाने के साथ कर रहे हैं. जिस कारण किसान एक बार में ही दो फसल की उपज एक साथ कर रहे हैं.

दरभंगा
सिंघाड़ा का नया प्रभेद 'मिरेकल नट'

वहीं, इस बाबत किसानों का कहना है कि इससे प्रति हेक्टेयर कम से कम डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हो रहा है. वहीं, जाले स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों को मिरेकल नट की खेती में मदद कर रहा है. जिले में शुरू हुए इस प्रयोग पर ईटीवी भारत ने किसानों और कृषि वैज्ञानिक से जानकारी ली.

देखें रिपोर्ट

मिरेकल नट से डेढ़ लाख का हुआ मुनाफा- किसान
जाले के एक किसान धीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने 3 हेक्टेयर में मखाना की फसल लगाई थी. मखाना की उपज लेने के बाद उन्होंने उसी तालाब में सिंघाड़ा भी लगाया था. जिससे उन्हें करीब डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ. उन्होंने कहा कि कांटे वाले सिंघाड़े की उपज करीब 35 टन प्रति हेक्टेयर होती है. जबकि उन्होंने बिना कांटे वाले इस सिंघाड़े की उपज करीब 70 टन प्रति हेक्टेयर कर ली है. उन्होंने कहा कि बिना कांटे वाले इस नए सिंघाड़े की कीमत बाजार में करीब 30 रुपये किलो मिलती है. उन्होंने कहा इस सिंघाड़े को सुखा कर इसका नट निकाल कर भी वे बेच रहे हैं. जिससे मुनाफे में और भी वृद्धि हो रही है.

दरभंगा
सिंघाड़े की खेती

मखाना और मछली पालन के साथ-साथ भी किया जा सकता है सिंघाड़े की खेती- सीनियर टेक्निशियन
वहीं, मखाना अनुसंधान केंद्र के सीनियर टेक्निशियन मुरारी महाराज ने कहा कि इसकी फसल मूंग की फसल लेने के बाद भी की जा सकती है. साथ ही मखाना और मछली पालन के साथ-साथ भी इसे किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि नए प्रभेद को किसानों में प्रचारित करने के लिए केंद्र के वैज्ञानिकों और टेक्नीशियन ने काफी मेहनत की थी. उन्होंने कहा कि सरकार अगर किसानों को सब्सिडी देती है. तो किसान सिंघाड़े की इस प्रभेद को उपजा कर आर्थिक रूप से संपन्न बन सकते हैं. उन्होंने कहा कि दरभंगा और उसके आसपास के जिलों के किसान सफलतापूर्वक सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं.

दरभंगा
जाले स्थित मखाना अनुसंधान केन्द्र
बाढ़ ग्रस्त इलाका होने के कारण है भरपूर संभावनाएं- डॉ दिव्यांशु शेखर वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र जाले के अध्यक्ष डॉ. दिव्यांशु शेखर ने कहा कि मिथिलांचल का इलाका बाढ़ ग्रस्त इलाका है. और यहां साल के कम से कम 4-5 महीने तक पानी रहता है. इसकी वजह से यहां खरीफ की फसल बर्बाद हो जाती है. उन्होंने कहा आगे कहा, 'ऐसी स्थिति में मखाना और सिंघाड़े की खेती इस इलाके के लिए वरदान साबित हो रही है'. उन्होंने कहा कि मखाना अनुसंधान केंद्र की ओर से विकसित इस नए प्रभेद की खेती को लेकर किसान काफी उत्साहित हैं. इस साल वे कोशिश कर रहे हैं कि नाबार्ड से ऐसे किसानों की सहायता की जाए, जो मिरेकल नट की उपज कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत सरकार भी मखाना के साथ सिंघाड़ा की ब्रांडिंग कर रही है. जिससे आने वाले दिनों में मिथिलांचल इलाके में मखानों के साथ-साथ व्यापक स्तर पर किसान मिरेकल नट की खेती करेंगे.
Last Updated : Jan 4, 2021, 12:02 PM IST
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