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कोरोना काल में बनी थी साहस की निशानी, बीमार पिता को गुरुग्राम से ले आई थी दरभंगा

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Published : Dec 28, 2020, 8:00 PM IST

Updated : Dec 28, 2020, 8:42 PM IST

कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के चलते अप्रैल और मई माह में लाखों प्रवासी अपने घर लौटने को मजबूर हो गए थे. भूखों मरने से बचने के लिए कोई पैदल घर लौट रहा था तो कोई साइकिल, रिक्शा, ठेला या किसी अन्य वाहन से. खौफ और बेचारगी की दास्तानों के बीच दरभंगा की ज्योति कुमारी साहस की निशानी बनकर सामने आई थी.

Jyoti kumari
साइकिल गर्ल ज्योति कुमारी

दरभंगा: 2020 देश और दुनिया की तरह दरभंगा के लिए भी खट्टी-मीठी यादों का साल रहा. कोरोना महामारी की वजह से लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों की रोजी चली गई थी. कमाई न होने के चलते स्थिति भूखों मरने की हो गई थी.

ऐसे मुश्किल समय में लाखों प्रवासी मजदूरों ने घर का रुख किया था. ट्रक, रिक्शा, ठेला या साइकिल जिसे जो वाहन मिला वह उसके सहारे घर की ओर चल पड़ा. किसे कोई वाहन न मिला वह पैदल ही अपने घर के लिए निकल पड़ा. इस मुश्किल सफर में बहुत से मजदूरों ने रास्ते में ही जान गंवा दी थी.

देखें खास रिपोर्ट

आ गई थी भूखों मरने की नौबत
घर लौटने को मजबूर ऐसे ही लाखों मजदूरों में दरभंगा की ज्योति कुमारी और उसके पिता मोहन पासवान भी शामिल थे. मोहन हरियाणा के गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाते थे, लेकिन एक हादसे में पांव में चोट लगने के बाद वह घर बैठने को मजबूर हो गए थे. ऐसे ही समय में कोरोना महामारी ने दस्तक दी.

Jyoti kumari darbhanga
पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बिठाकर गुरुग्राम से दरभंगा लेकर आई ज्योति (फाइल फोटो)

मोहन पासवान और उनकी देखभाल के लिए साथ रहने वाली बेटी ज्योति को खाने के लाले पड़ गए. इन्हीं मुश्किल परिस्थितियों में ज्योति ने अपने पिता मोहन पासवान को एक पुरानी साइकिल पर बिठाकर दरभंगा लाने का निश्चय किया. ज्योति अपने पिता को साइकिल पर बिठाकर करीब 12-13 सौ किलोमीटर दूर दरभंगा ले आई.

ईटीवी भारत दुनिया के सामने लाया था ज्योति के साहस की कहानी
साइकिल गर्ल ज्योति के अदम्य साहस की कहानी ईटीवी भारत दुनिया के सामने लेकर आया था. ज्योति के साहस की तारीफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी की थी. इसके बाद ज्योति पूरी दुनिया में मशहूर हो गई थी.

ivanka trump tweet jyoti kumari darbhanga
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने ज्योति के साहस की तारीफ की थी.

देश-विदेश के लोगों ने ज्योति और उसके परिवार की पैसों से खूब मदद की थी. इससे ज्योति और उसके परिवार की जिंदगी बदल गई. ईटीवी भारत अलविदा 2020 श्रृंखला के तहत दरभंगा की साइकिल गर्ल ज्योति की कहानी फिर से याद कर रहा है. ईटीवी भारत संवाददाता विजय कुमार श्रीवास्तव ने ज्योति के गांव सिरहुल्ली पहुंचकर ज्योति और उसके पिता मोहन पासवान से बात की.

घर लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था
ज्योति ने कहा "बड़े कष्ट से मैं अपने पिता को साइकिल पर बिठाकर दरभंगा लाई थी. मेरे पिता के पैर में चोट लग गई थी. इस वजह से वह ई-रिक्शा नहीं चला पा रहे थे. हमलोगों को खाने के भी लाले पड़ गए थे. ऐसे ही समय में कोरोना महामारी का भीषण दौर आया और लॉकडाउन लग गया. मकान मालिक ने हमें घर से निकाल दिया था. हमारे पास दरभंगा लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था."

Jyoti kumari
ज्योति कुमारी

"मैंने लोगों को पैदल घर के लिए निकलते देखा तो हिम्मत आई. मैंने पिता को साइकिल पर बिठाकर दरभंगा लाने का फैसला किया. कई दिनों के कष्ट भरे सफर के बाद आखिरकार मैं पिता को घर लाने में सफर हुई थी. 2020 मेरी जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा. इस साल ने मेरे परिवार की जिंदगी बदल दी. आज मैं जहां जाती हूं लोग सम्मान देते हैं."- ज्योति कुमारी

ज्योति के पिता मोहन पासवान उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं "बेटी ने जब मुझे साइकिल पर बिठाकर घर ले चलने को कहा था तो मैंने इनकार कर दिया था. मुझे विश्वास नहीं था कि वह मुझे साइकिल पर बैठाकर दरभंगा जा पाएगी, लेकिन ज्योति ने हार नहीं मानी. आखिरकार मैंने बेटी की बात मान ली और साइकिल से घर लौटने को तैयार हो गया."

Mohan paswan
ज्योति कुमारी के पिता मोहन पासवान.

"जब ज्योति के साहस की कहानी चर्चा में आई तो लोगों ने पैसे से खूब मदद की. जो पैसे मिले थे उससे एक घर बनाया और बड़ी बेटी की शादी में लिया गया कर्च चुकाया. सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. कई लोगों ने घर और जमीन देने का वादा किया था, लेकिन नहीं मिला. अब पैसे खत्म हो गए हैं. अगर कोई रोजगार न मिला तो फिर से मजदूरी के लिए परदेश लौटना पड़ेगा. मैं अपनी बेटी को पढ़ाना चाहता हूं ताकि वह अपना भविष्य संवार सके."- मोहन पासवान

दरभंगा: 2020 देश और दुनिया की तरह दरभंगा के लिए भी खट्टी-मीठी यादों का साल रहा. कोरोना महामारी की वजह से लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण प्रवासी मजदूरों की रोजी चली गई थी. कमाई न होने के चलते स्थिति भूखों मरने की हो गई थी.

ऐसे मुश्किल समय में लाखों प्रवासी मजदूरों ने घर का रुख किया था. ट्रक, रिक्शा, ठेला या साइकिल जिसे जो वाहन मिला वह उसके सहारे घर की ओर चल पड़ा. किसे कोई वाहन न मिला वह पैदल ही अपने घर के लिए निकल पड़ा. इस मुश्किल सफर में बहुत से मजदूरों ने रास्ते में ही जान गंवा दी थी.

देखें खास रिपोर्ट

आ गई थी भूखों मरने की नौबत
घर लौटने को मजबूर ऐसे ही लाखों मजदूरों में दरभंगा की ज्योति कुमारी और उसके पिता मोहन पासवान भी शामिल थे. मोहन हरियाणा के गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाते थे, लेकिन एक हादसे में पांव में चोट लगने के बाद वह घर बैठने को मजबूर हो गए थे. ऐसे ही समय में कोरोना महामारी ने दस्तक दी.

Jyoti kumari darbhanga
पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बिठाकर गुरुग्राम से दरभंगा लेकर आई ज्योति (फाइल फोटो)

मोहन पासवान और उनकी देखभाल के लिए साथ रहने वाली बेटी ज्योति को खाने के लाले पड़ गए. इन्हीं मुश्किल परिस्थितियों में ज्योति ने अपने पिता मोहन पासवान को एक पुरानी साइकिल पर बिठाकर दरभंगा लाने का निश्चय किया. ज्योति अपने पिता को साइकिल पर बिठाकर करीब 12-13 सौ किलोमीटर दूर दरभंगा ले आई.

ईटीवी भारत दुनिया के सामने लाया था ज्योति के साहस की कहानी
साइकिल गर्ल ज्योति के अदम्य साहस की कहानी ईटीवी भारत दुनिया के सामने लेकर आया था. ज्योति के साहस की तारीफ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी की थी. इसके बाद ज्योति पूरी दुनिया में मशहूर हो गई थी.

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने ज्योति के साहस की तारीफ की थी.

देश-विदेश के लोगों ने ज्योति और उसके परिवार की पैसों से खूब मदद की थी. इससे ज्योति और उसके परिवार की जिंदगी बदल गई. ईटीवी भारत अलविदा 2020 श्रृंखला के तहत दरभंगा की साइकिल गर्ल ज्योति की कहानी फिर से याद कर रहा है. ईटीवी भारत संवाददाता विजय कुमार श्रीवास्तव ने ज्योति के गांव सिरहुल्ली पहुंचकर ज्योति और उसके पिता मोहन पासवान से बात की.

घर लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था
ज्योति ने कहा "बड़े कष्ट से मैं अपने पिता को साइकिल पर बिठाकर दरभंगा लाई थी. मेरे पिता के पैर में चोट लग गई थी. इस वजह से वह ई-रिक्शा नहीं चला पा रहे थे. हमलोगों को खाने के भी लाले पड़ गए थे. ऐसे ही समय में कोरोना महामारी का भीषण दौर आया और लॉकडाउन लग गया. मकान मालिक ने हमें घर से निकाल दिया था. हमारे पास दरभंगा लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था."

Jyoti kumari
ज्योति कुमारी

"मैंने लोगों को पैदल घर के लिए निकलते देखा तो हिम्मत आई. मैंने पिता को साइकिल पर बिठाकर दरभंगा लाने का फैसला किया. कई दिनों के कष्ट भरे सफर के बाद आखिरकार मैं पिता को घर लाने में सफर हुई थी. 2020 मेरी जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा. इस साल ने मेरे परिवार की जिंदगी बदल दी. आज मैं जहां जाती हूं लोग सम्मान देते हैं."- ज्योति कुमारी

ज्योति के पिता मोहन पासवान उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं "बेटी ने जब मुझे साइकिल पर बिठाकर घर ले चलने को कहा था तो मैंने इनकार कर दिया था. मुझे विश्वास नहीं था कि वह मुझे साइकिल पर बैठाकर दरभंगा जा पाएगी, लेकिन ज्योति ने हार नहीं मानी. आखिरकार मैंने बेटी की बात मान ली और साइकिल से घर लौटने को तैयार हो गया."

Mohan paswan
ज्योति कुमारी के पिता मोहन पासवान.

"जब ज्योति के साहस की कहानी चर्चा में आई तो लोगों ने पैसे से खूब मदद की. जो पैसे मिले थे उससे एक घर बनाया और बड़ी बेटी की शादी में लिया गया कर्च चुकाया. सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. कई लोगों ने घर और जमीन देने का वादा किया था, लेकिन नहीं मिला. अब पैसे खत्म हो गए हैं. अगर कोई रोजगार न मिला तो फिर से मजदूरी के लिए परदेश लौटना पड़ेगा. मैं अपनी बेटी को पढ़ाना चाहता हूं ताकि वह अपना भविष्य संवार सके."- मोहन पासवान

Last Updated : Dec 28, 2020, 8:42 PM IST
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