ETV Bharat / state

11 साल बाद कलेजे के टुकड़े को देख फफक-फफक कर रो पड़ी मां, लोगों में बांटी मिठाईंयां - सतीश चौधरी

दरभंगा का रहने वाला सतीश चौधरी 2008 से ही अपने घर से लापता था. उसके परिवार वालों को 2012 में बांग्लादेश में उनके होने की खबर मिली. उसके भाई मुकेश ने बताया कि अपने भाई को वापस इंडिया लाने में न सरकार और न ही प्रशासन ने उसकी मदद की.

सतीश चौधरी
author img

By

Published : Sep 14, 2019, 5:34 PM IST

दरभंगा: बांग्लादेश की जेल से 11 साल के बाद रिहा होकर सतीश अपने गांव मनोरथा हवासा पहुंचा. उसके गांव पहुंचते ही लोग खुशी से झूम उठे. सतीश की मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को गले से लगा लिया और फफक-फफक कर रो पड़ी. ग्रामीणों ने ढोल नगाड़े के साथ सतीश का जोरदार स्वागत किया.

लोगों में खुशी का महौल
सतीश को देखते ही उसकी पत्नी अमोला और दोनों पुत्र आशिक और भोला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसके आने की खुशी में तरह-तरह के पकवान के साथ घर के बाहर टेंट और डीजे की भी व्यवस्था की गई. सतीश के आगमन को लेकर उसके दोस्तों और गांव वालों का उसके घर पर सुबह से ही तांता लगा हुआ है.

darbhanga
अपने कलेजे के टुकड़े से मिलती मां

गांव में बांटी गईं मिठाईंयां
दरअसल, सतीश जब गायब हुआ था तब उसके दूसरे पुत्र भोला का जन्म भी नहीं हुआ था और पहला पुत्र आशिक इतना छोटा था कि उसे अपने पिता याद भी नहीं थे. शनिवार को जैसे ही उन दोनों ने अपने पिता को देखा तो तुरंत उसे गले से लगा लिया. वहीं, सतीश के घर वापसी की खुशी में परिजनों ने पूरे गांव में मिठाईंयां बांटी.

2008 से ही था लापता
दरभंगा का रहने वाला सतीश चौधरी 2008 से ही अपने घर से लापता था. उसके परिवार वालों को 2012 में बांग्लादेश में उनके होने की खबर मिली. उसके भाई मुकेश ने बताया कि अपने भाई को वापस इंडिया लाने में न सरकार और न ही प्रशासन ने उसकी मदद की.

darbhanga
11 साल बाद गांव पहुंचा सतीश

शुक्रवार को पहुंचा था पटना
काफी मशक्कत के बाद सतीश को गुरुवार को दर्शना गेड़े बॉर्डर पर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश ने इंडियन बीएसएफ को सुपुर्द किया था. बांग्लादेशी कपड़ों में ही उसे शुक्रवार की रात पटना-हावड़ा जनशताब्दी एक्सप्रेस से पटना जंक्शन लाया गया. इस दौरान सतीश चौधरी का छोटा भाई मुकेश चौधरी भी उनके साथ था.

सतीश के गांव लौटने पर गांववालों ने मानाया जश्न

भटक कर पहुंचा था बांग्लादेश
दरभंगा जिला के मनोरथा गांव के रहने वाले सतीश चौधरी का मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता था. वह इलाज के लिए दरभंगा से पटना आया था. इसी दौरान भटककर बांग्लादेश पहुंच गया. उसके छोटे भाई मुकेश चौधरी ने उसे खोजने का काफी प्रयास किया. लेकिन नहीं मिलने के बाद वह निराश हो गया.

वहीं, 2012 में उसे जानकारी मिली की उसका भाई बांग्लादेश की जेल में बंद है. इसके बाद वह उसे वापस लाने का प्रयास करने लगा. उसने सरकार और प्रशासन से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई मदद नहीं मिली. वहीं, मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन ने उसकी मदद की, जिसके बाद उसे शुक्रवार की शाम सकुशल हंसते मुस्कुराते पटना जंक्शन लाया जा सका.

दरभंगा: बांग्लादेश की जेल से 11 साल के बाद रिहा होकर सतीश अपने गांव मनोरथा हवासा पहुंचा. उसके गांव पहुंचते ही लोग खुशी से झूम उठे. सतीश की मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को गले से लगा लिया और फफक-फफक कर रो पड़ी. ग्रामीणों ने ढोल नगाड़े के साथ सतीश का जोरदार स्वागत किया.

लोगों में खुशी का महौल
सतीश को देखते ही उसकी पत्नी अमोला और दोनों पुत्र आशिक और भोला की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उसके आने की खुशी में तरह-तरह के पकवान के साथ घर के बाहर टेंट और डीजे की भी व्यवस्था की गई. सतीश के आगमन को लेकर उसके दोस्तों और गांव वालों का उसके घर पर सुबह से ही तांता लगा हुआ है.

darbhanga
अपने कलेजे के टुकड़े से मिलती मां

गांव में बांटी गईं मिठाईंयां
दरअसल, सतीश जब गायब हुआ था तब उसके दूसरे पुत्र भोला का जन्म भी नहीं हुआ था और पहला पुत्र आशिक इतना छोटा था कि उसे अपने पिता याद भी नहीं थे. शनिवार को जैसे ही उन दोनों ने अपने पिता को देखा तो तुरंत उसे गले से लगा लिया. वहीं, सतीश के घर वापसी की खुशी में परिजनों ने पूरे गांव में मिठाईंयां बांटी.

2008 से ही था लापता
दरभंगा का रहने वाला सतीश चौधरी 2008 से ही अपने घर से लापता था. उसके परिवार वालों को 2012 में बांग्लादेश में उनके होने की खबर मिली. उसके भाई मुकेश ने बताया कि अपने भाई को वापस इंडिया लाने में न सरकार और न ही प्रशासन ने उसकी मदद की.

darbhanga
11 साल बाद गांव पहुंचा सतीश

शुक्रवार को पहुंचा था पटना
काफी मशक्कत के बाद सतीश को गुरुवार को दर्शना गेड़े बॉर्डर पर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश ने इंडियन बीएसएफ को सुपुर्द किया था. बांग्लादेशी कपड़ों में ही उसे शुक्रवार की रात पटना-हावड़ा जनशताब्दी एक्सप्रेस से पटना जंक्शन लाया गया. इस दौरान सतीश चौधरी का छोटा भाई मुकेश चौधरी भी उनके साथ था.

सतीश के गांव लौटने पर गांववालों ने मानाया जश्न

भटक कर पहुंचा था बांग्लादेश
दरभंगा जिला के मनोरथा गांव के रहने वाले सतीश चौधरी का मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता था. वह इलाज के लिए दरभंगा से पटना आया था. इसी दौरान भटककर बांग्लादेश पहुंच गया. उसके छोटे भाई मुकेश चौधरी ने उसे खोजने का काफी प्रयास किया. लेकिन नहीं मिलने के बाद वह निराश हो गया.

वहीं, 2012 में उसे जानकारी मिली की उसका भाई बांग्लादेश की जेल में बंद है. इसके बाद वह उसे वापस लाने का प्रयास करने लगा. उसने सरकार और प्रशासन से मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई मदद नहीं मिली. वहीं, मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल रंजन ने उसकी मदद की, जिसके बाद उसे शुक्रवार की शाम सकुशल हंसते मुस्कुराते पटना जंक्शन लाया जा सका.

Intro:बांग्लादेश की जेल में पिछले 11 साल से कैद दरभंगा जिला के हायाघाट प्रखंड के मनोरथा हवासा गांव के सतीश के आने के बाद पूरे गांव में खुशियों का माहौल है। सतीश उसकी मां कला देवी ने अपने कलेजे के टुकड़े को बरसों बाद सीने से लगाकर फफक फफक कर रोने लगी और उनके आंसू की धार थमने का नाम नहीं ले रहा था। वही सतीश की पत्नी अमोला और उनके दोनों पुत्र आशिक व भोला के आंखों में अजब सी खुशी है। मानो अमोला देवी का 11 वर्षों का वनवास खत्म हुआ हो। इधर सतीश के आने की खुशी में तरह-तरह के पकवान के साथ ही घर के बाहर टेंट व डीजे की भी व्यवस्था की गई है। सतीश के आगमन को लेकर उसके शुभचिंतक दोस्तों व गांववाले का उसके घर पर सुबह से ही तांता लगा हुआ है।

दरअसल सतीश जब गायब हुआ था तब भोला का जन्म भी नहीं हुआ था। आशिक के जेहन में अपने पिता की कोई याद भी नहीं था। दोनों ने तो अब तक बस अपने पिता के गम में रोते हुए, अपनी दादी वह मां को देखा, पर अपने पिता को नहीं देखा था। पर आज जैसे ही उन दोनों ने अपने पिता को देखा कि पिता के गले से लग गए और पूरा गांव भी गाने बाजे व पटाखों की आवाज से गूंज उठा। परिवार के लोगों की खुशी का आलम यह है कि पूरे गांव में मिठाई बांट रहे हैं। बता दें कि 11 वर्षों से बांग्लादेश की जेल में बंद सतीश को गुरुवार को दर्शना गेड़े बॉर्डर पर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश ने इंडियन बीएसएफ को सुपुर्द किया था।


Body:वही सतीश को आते ही गांव में उत्सवी माहौल बन गया। सतीश का स्वागत माला और मिठाई खिलाने के साथ ही ढोल नगाड़े के साथ उनका स्वागत किया गया। वही दूसरी तरफ सतीश की बहन ने सतीश को तिलक और आरती उतारकर उनका स्वागत किया। वही सतीश अभी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है कि आखिर वह बांग्लादेश कैसे पहुंच गया। वही सतीश की मां कला देवी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि 11 वर्षो के बाद मेरा बेटा लौट रहा है मैं कितनी खुश हूं इसका बयान नहीं कर सकती हूं। साथ ही उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने बेटे की मनपसंद भोजन भी बनाई है।

वही सतीश के छोटे भाई मुकेश ने बताया कि 12 अप्रैल 2008 को सतीश की मानसिक स्थिति सही नहीं रहने के कारण उसको इलाज के लिए पटना ले गए थे। लेकिन 15 अप्रैल 2008 को श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल के पास से सतीश अचानक गायब हो गया। काफी खोजबीन के बाद जब सतीश का कहीं पता नहीं चला तो उन्होंने गांधी मैदान थाने में गुमशुदगी का मामला दर्ज करा दिया। वही मुकेश ने बताया कि गुमशुदगी की घटना के लगभग 4 वर्षों के बाद 2012 में बांग्लादेश रेड क्रॉस सोसायटी की ओर से एक पत्र मिला। जिसमें सतीश का मैसेज लिखा था कि मैं ठीक हूं और लक्ष्मीपुर डिस्ट्रिक्ट ढाका जेल में बंद हूं। तब जाकर घर वालों को सतीश के ठिकानों का पता चला और एक उम्मीद भी जगी।

जिसके बाद सतीश को वापस लाने का भागरथी प्रयास शुरू हुआ। इस दौरान परिजनों सरकारी दफ्तरों के साथ ही 2012 में मुख्यमंत्री के जनता दरबार मे फरियाद भी लगाया, लेकिन किसी प्रकार करवाई नही होता देख मुकेश ने पासपोर्ट और वीजा बनाकर कोलकाता के रास्ते ढाका के लक्ष्मीपुर सेंट्रल जेल पहुंचा। वहां पहुंचने के बाद मुकेश को पता चला कि सतीश सजा पूरी होने की वजह से उसे यहां से छोड़ दिया गया है। जिस पर मुकेश को विश्वास नहीं हुआ और वह बांग्लादेश के कई जेलों में अपनी भाई की खोजबीन की, लेकिन जब उसका किसी प्रकार का पता नहीं चला तो, वह वहां से लौट आया। लेकिन जानकारी के अभाव में वह ढाका के एंबेसी में नहीं जा सका।


Conclusion:वही जब यह खबर मीडिया की सुखियाँ बनी तो इस खबर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं विशाल की नजर गई तो उन्होंने सतीश को मुल्क वापस लाने की ठान ली। इस दौरान उन्होंने कई विभागों में पत्राचार कर की, जिसके बाद सतीश को 12 सितंबर को बांग्लादेश के जेल से छोड़ा गया और उसकी मुल्क वापसी संभव हो सकी है। वही मीडिया से बात करते हुए आरटीआई कार्यकर्ता विशाल रंजन ने कहा कि यदि सरकार ने पहले पहल की होती तो यह कब का आजाद हो चुका होता। लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण मुकेश पिछले 11 वर्षों से बांग्लादेश के जेल में बंद था। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर जिला प्रशासन सही समय पर एड्रेस वेरीफिकेशन कर लिया होता तो मुकेश 15 अगस्त को ही रिहा हो जाता। लेकिन अब वह रिहा हो चुका है, जिसको लेकर हमलोगों काफी खुशी है।

Byte --------------
मुकेश कुमार चौधरी, भाई
कला देवी, मां
विशाल रंजन, आरटीआई कार्यकर्ता
पीटीसी
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.