दरभंगा: दरभंगा के केवटी के लोगों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया है. अब यहां के लोग रोजगार के लिए बाहर का रुख नहीं करते हैं. इन लोगों को अब इनके इलाके में ही काम मिल रहा है. दरअसल, केवटी ब्लॉक के रनवे गांव के मुकेश लाल ने गांव में ही रेडीमेड गारमेंट की फैक्ट्री लगाई है. इस फैक्ट्री में बने कपड़ों की डिमांड सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी है. ऐसे में मुकेश ने अपने साथ ही अपने गांव के लोगों की तकदीर भी बदल दी है.
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मुकेश लाल की कहानी
मुकेश ने दिल्ली और बेंगलुरु में फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई की है. पढ़ाई के बाद उन्होंने कई नामी-गिरामी कंपनियों के साथ काम किया. ब्रांडेड रेडीमेड गारमेंटस की कंपनियों में 7 साल तक उन्होंने नौकरी की. जब वहां के मजदूरों से उन्होंने बात की तो पता चला कि सभी बिहार के हैं और उनमें से कई दरभंगा के रहनेवाले हैं. मजदरों ने कहा कि अगर गांव में रोजगार होता तो बाहर नहीं रहते. इसके बाद मुकेश लाल ने नौकरी छोड़ दी और गांव लौट आए. यहां उन्होंने अपने परिवार की मदद से फैक्ट्री की शुरुआत की.
'जब मैं नामी-गिरामी कंपनियों में नौकरी करता था. उसी दौरान मैंने देखा कि इन कंपनियों में मजदूर के रुप में अधिकतर बिहार के लोग काम करते हैं. इन्हीं मजदूरों से मुझे प्रेरणा मिली कि अपने इलाके में इस तरह की फैक्ट्री अगर खोली जाए तो लोगों को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा.'- मुकेश लाल, गारमेंट फैक्ट्री के मालिक
शुरुआती दौर में हुई कठिनाई
मुकेश को फैक्ट्री स्टार्ट करने के लिए पूंजी चाहिए थी. लेकिन बैंकों से लोन नहीं मिल रहा था. ऐसे में परिवारवालों का साथ मिला. इस फैक्ट्री को शुरू करने में मुकेश ने करीब 22 लाख रुपए की पूंजी लगाई थी.
सालाना 1 करोड़ का टर्नओवर
22 लाख की पूंजी लगाकर शुरू की गई इस फैक्ट्री का शुरुआती टर्नओवर महज 7-8 लाख रुपए सालाना था, लेकिन आज की तारीख में मुकेश की कपड़ा फैक्ट्री का टर्नओवर 1 करोड़ रुपये के आसपास है. इस फैक्ट्री में हर तरह के डिजाइनर कपड़े बनाये जाते हैं
'अपने गांव लौटने के बाद फैक्ट्री लगाने की सोचा. अपनी नौकरी से बचाए कुछ पैसे और परिवार की मदद से 22 लाख रुपए की पूंजी लगाकर 2017 की जनवरी में इस फैक्ट्री की शुरुआत की. शुरुआत से ही अपने परिवार और समाज के लोगों का काफी सहयोग मिला है. चाचा लक्ष्मेश्वर लाल दास ने इस फैक्ट्री को शुरू करने में काफी मदद की. यहां बने कपड़ों के लिए मार्केट ढूंढने के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है बल्कि इनकी डिमांड बहुत है.'- मुकेश लाल, गारमेंट फैक्ट्री के मालिक
बदली ग्रामीणों की तकदीर
बिहार से लोग गुजरात, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की कपड़ा फैक्ट्रियों में मजदूरी करने जाते हैं. उसी बिहार के दरभंगा जिले के केवटी ब्लॉक के रनवे गांव के मुकेश लाल ने ऐसा काम किया जिसकी वजह से वे युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं. मुकेश ने अपने उस गांव में रेडीमेड गारमेंट की फैक्ट्री लगा दी, जहां तक पहुंचने के लिए रास्ता तक नहीं है.
'अपने घर का सारा कामकाज निपटा कर यहां काम करने आती हूं. रोजगार मिलने से काफी आराम हुआ है. घर की माली हालत सुधरी है. यहां काम करने से पहले तक घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. मुझे महीने का साढ़े चार हजार रुपये मिलता है.'- वंदना देवी, वर्कर, एसएमवी गारमेंट फैक्ट्री
मिल रहा रोजगार
मुकेश ने 2017 की जनवरी में महज 6 लोगों का साथ लेकर एसएमवी ब्रांड के रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री की शुरुआत की थी. आज की तारीख में इस फैक्ट्री में 58 लोग काम कर रहे हैं.
'पहले दिल्ली में गारमेंट एक्सपोर्ट कंपनी में काम करता था. उसके बाद जब गांव आया तो पता चला कि यहां भी एक रेडीमेड गारमेंट की फैक्ट्री खुली है. इस कंपनी में काम करने लगा, और पिछले 4 साल से यहां काम कर रहा हूं. गांव में ही फैक्ट्री खुल जाने से अब अपने गांव में रहकर ही परिवार का भरण पोषण कर रहा हूं. 9 हजार रुपये प्रति माह सैलरी मिलती है.'- राजा कुमार यादव, वर्कर, एसएमवी गारमेंट फैक्ट्री
दूसरे राज्यों में भी कपड़ों की डिमांड
मुकेश अपने कपड़ों की सप्लाई तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक तक करते हैं. उनकी बनाई शर्ट दरभंगा, मधुबनी और पटना के करीब 400 दुकानों में सप्लाई की जाती है.
हर कीमत के कपड़े उपलब्ध
मुकेश की फैक्ट्री में कपड़ों को बेहतरीन तरीके से बनाया जाता है. ताकि ये ब्रांडेड कपड़ों को टक्कर दे सके. यहां बनने वाली शर्ट की कीमत 599 रुपये से लेकर 1299 रुपये तक है. मुकेश ने 2019 में अपने कपड़ों का निर्यात दुबई में भी किया था. अब मुकेश की टी-शर्ट बनाने का काम भी शुरू करने जा रहे हैं, और इसके लिए वे मशीनें भी मंगवा चुके हैं.
प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत ऋण
आए दिन लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं अगर इस तरह की फैक्ट्रियां राज्य में खोली जाएं तो लोगों का पलायन रोका जा सकता है. मुकेश बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने बैंक से ऋण लेने का भी प्रयास किया था लेकिन बैंक ने उनके आवेदन को रिजेक्ट कर दिया था. लेकिन आज उसी बैंक ने उन्हें बुलाकर प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत 25 लाख रुपये का ऋण दिया है.
'मेरा भतीजा शुरू से ही व्यवसाय करने की सोच रखता था. शुरुआत में कुछ परेशानियां तो आई लेकिन अब यह फैक्ट्री चल रही है और आने वाले एक-दो साल में इसका और ज्यादा विस्तार होगा. मैं चाहता हूं कि इस इलाके में इस तरह की और फैक्ट्रियां लगें ताकि लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिले.'- लक्ष्मेश्वर लाल दास, मुकेश के चाचा
मुकेश का लक्ष्य
मुकेश अपनी फैक्ट्री को इस लायक बनाना चाहते हैं कि वह ब्रांडेड बड़ी कंपनियों को टक्कर दे सके. जिन कंपनियों में मुकेश नौकरी करते थे और जितने मजदूर वहां काम करते थे मुकेश चाहते हैं कि वैसा ही नजारा उनकी फैक्ट्री में भी देखने को मिले.
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