दरभंगा: पटना हाईकोर्ट ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के 22 कॉलेजों के प्रधानाचार्यों की नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए इन्हें बर्खास्त करने का आदेश दिया. इस आदेश के बाद तत्कालीन कुलपति समेत कई अधिकारियों पर भी गाज गिरनी तय है. जानकारी के मुताबिक इन 22 प्रधानाचार्यों की नियुक्ति साल 2008 में हुई थी.
नियुक्ति के बाद से ही प्रक्रिया में धांधली किए जाने के आरोप लगने लगे थे. कई शिकायतें राजभवन और बिहार सरकार से की गयी. आखिरकार डॉ. रमेश झा और डॉ. दयानाथ ठाकुर ने पटना हाईकोर्ट में इसके खिलाफ साल 2011 में शिकायत दर्ज करायी. मामले पर संज्ञान लेते हुए आखिरकार अब कोर्ट ने इनकी सेवा समाप्त कर दी.
कोर्ट के आदेश के बाद विवि में हड़कंप
बता दें कि बर्खास्तगी के आदेश के बाद से विवि में हड़कंप मचा हुआ है. मामले के एक शिकायतकर्ता डॉ. दयानाथ ठाकुर ने कहा कि नियुक्ति में बड़े पैमाने पर धांधली हुई. अभ्यर्थियों की योग्यता और अनुभव प्रमाण पत्र में अनियमितता थी. जो लोग इंटरव्यू लेने आये उनके नाम की स्वीकृति राजभवन से नहीं मिली थी. अभ्यर्थियों के रिसर्च पेपर जिन जर्नल्स में छपे थे, वह या तो फर्जी थे या फिर उनकी मान्यता नहीं थी. साथ ही मेधा सूची बनाने में भी फर्जीवाड़ा हुआ.
RTI के तहत जुटाई गई जानकारी
शिकायतकर्ता ने बताया कि इस मामले की पूरी जानकारी आरटीआई यानी सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जुटाई गई. तब जाकर उन्होंने राजभवन और बिहार सरकार से भी इसकी शिकायत की. सुनवाई नहीं होने पर आखिरकार वे हाईकोर्ट गए. मामले पर संस्कृत विवि के कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा ने हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि विस्तृत आदेश आने की प्रतीक्षा की जा रही है. कोर्ट के आदेश का पालन होगा.
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कोर्ट ने दिया था यह आदेश
बता दें कि मंगलवार को पटना हाईकोर्ट ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के करीब 22 अंगीभूत कालेजों के प्राचार्य की सेवा समाप्त कर दी है. साथ ही कुलपति को 3 महीने के अंदर विधिसम्मत सफल उम्मीदवारों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया. प्राचार्यों की नियुक्ति को रद्द करते हुए अदालत ने कहा है कि हटाए गए प्राचार्य भी चयन में शामिल हो सकते हैं. यदि वह सफल घोषित होते हैं तो उन्हें हटाई गई अवधि का वेतन और अन्य सुविधाएं भी उन्हें दी जाएंगी.