दरभंगा: मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने जिस सिंघाड़े की नई किस्म को विकसित किया है, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी ब्रांडिंग की अपार संभावनाएं हैं. पहली बार इस सिंघाड़ा की खेती दरभंगा, मधुबनी और उसके आसपास के इलाकों के कुछ किसानों ने की है और इससे उन्हें काफी लाभ हुआ है. इसकी खूबियों को देखते हुए इसे वैज्ञानिकों ने 'मिरेकल नट' नाम दिया है.
'मिरेकल नट' की कई विशेषताएं
सिंघाड़ा के इस नई किस्म का विकास करने वाले मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. बी.आर जाना ने बताया कि ये सिंघाड़ा पारंपरिक तौर पर उपजाए जाने जाने वाले कांटे वाले सिंघाड़े से अलग है. उन्होंने कहा कि इस सिंघाड़े का साइज बड़ा होता है और सामान्य सिंघाड़े की तुलना में इसकी उपज भी दोगुनी होती है.
'इस सिंघाड़े की खेती से न सिर्फ किसानों को दोगुना फायदा हो रहा है बल्कि इसका इस्तेमाल औषधि बनाने में भी किया जा सकता है. अगर सरकार इस मखाने की मार्केटिंग और इससे औषधीय उत्पाद बनाने की व्यवस्था करे तो इसकी ब्रांडिंग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सकती है'- डॉ.बी.आर.जाना, वैज्ञानिक, मखाना अनुसंधान केंद्र
कुपोषण और मोटापे से रखे दूर
नए किस्म के सिंघाड़े की उपज सामान्य सिंघाड़े से दोगुनी होती है. केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. बी. आर. जाना और सीनियर टेक्निकल असिस्टेंट मुरारी महाराज ने दावा किया है कि इसमें कुपोषण और मोटापा भगाने की क्षमता है. साथ ही ये ब्लड प्रेशर और डायबिटिज को भी नियंत्रित करता है.
सिंघाड़ा खाने से होते हैं निरोग
नए किस्म के सिंघाड़े में मैग्नीशियम, विटामिन बी1, एडिबल फाइबर और एक तरह का एमिनो एसिड होता है जो मोटापा और कुपोषण दूर करता है. इसके अलावा इस सिंघाड़े में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने का गुण भी है.
सामान्य खेती की तुलना में दोगुनी उपज
नए तरह के सिंघाड़ा की खेती करने वाले सदर प्रखंड के रानीपुर गांव के किसान मिथुन कुमार यादव ने कहा कि उन्होंने इस बार ये सिंघाड़ा उगाया था. उन्होंने कहा कि इस सिंघाड़े की किस्म का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 10 से 12 क्विंटल हुआ है, जो पारंपरिक सिंघाड़े की खेती से दोगुना है. किसानों को इस सिंघाड़े की खेती करनी चाहिए.