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DMCH के DEIC वॉर्ड में इलाज के नाम पर खानापूर्ति, काउंसलर के सहारे रेंग रहा सेंटर - नोडल अधिकारी

डीईआईसी में तैनात कर्मी की मानें तो वर्तमान में अभी यहां कोई शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है जिससे काफी परेशानी होती है. सेंटर में सुविधा नहीं होने के कारण इलाज के लिये डीएमसीएच के विभिन्न विभागों में मरीजों को भेज दिया जाता है.

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Published : Oct 14, 2019, 1:22 PM IST

Updated : Oct 14, 2019, 2:37 PM IST

दरभंगा: राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत डीएमसीएच परिसर में संचालित डिस्ट्रिक अरली इंटरवेंशन सेंटर में सुविधाओं की घोर कमी है. इस कारण बीमार नवजातों का इलाज प्रभावित हो रहा है. वर्तमान में यह सेंटर ओपीडी के एक कमरे में चल रहा है. सरकारी उदासीनता के कारण यहां जरूरी उपकरण भी मौजूद नहीं हैं.

फिलहाल यह सेंटर तीन स्टाफ के सहारे चल रहा है जिसमें दो काउंसलर और एक लैब टेक्नीशियन हैं. दरअसल यहां ऐसे बच्चे इलाज के लिए आते हैं जिनके आंखों में दिक्कत होती है, कम सुनते हैं या फिर चलने में परेशानी होती है. इसके अलावा वैसे बच्चे भी आते हैं जो जन्म से ही विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होते हैं. जिन बच्चों को बोलने में परेशानी होती है उन्हें इलाज के लिये पटना रेफर कर दिया जाता है क्योंकि यहां स्पीच थेरेपी की सुविधा नहीं है.

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नवजातों का इलाज हो रहा प्रभावित

सुविधा के अभाव में नहीं होता इलाज
डीईआईसी में तैनात कर्मी की मानें तो वर्तमान में अभी यहां कोई शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है. जिससे काफी परेशानी होती है. सेंटर में इलाज की सुविधा नहीं होने के कारण डीएमसीएच के विभिन्न विभागों में मरीजों को भेज दिया जाता है. उन्होंने कहा कि स्पीच थैरेपिस्ट नहीं हैं. फिजियोथैरेपिस्ट नहीं हैं. जिस कारण बच्चों का सही ढंग से इलाज नहीं हो पाता है.

पेश है रिपोर्ट

स्टाफ की है कमी
डीईआईसी के नोडल अधिकारी सह शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. के एन मिश्रा ने कहा कि डीईआईसी सेंटर सुबह 9 बजे से दिन के 1 बजे तक आउटडोर के एक कमरे में चलता है. 1 बजे से 4 बजे तक वहां कार्यरत कर्मी शिशु वॉर्ड में घूम- घूमकर काउंसलिंग करने का काम करते हैं. बच्चे को जो भी समस्या होती है उसे संबंधित विभाग में भेज दिया जाता है. उन्होंने कहा कि यहां स्टाफ की भारी कमी है. लेकिन जो भी संसाधन मौजूद है उसमें बेहतर सुविधा मुहैया कराने की कोशिश रहती है.

दरभंगा: राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत डीएमसीएच परिसर में संचालित डिस्ट्रिक अरली इंटरवेंशन सेंटर में सुविधाओं की घोर कमी है. इस कारण बीमार नवजातों का इलाज प्रभावित हो रहा है. वर्तमान में यह सेंटर ओपीडी के एक कमरे में चल रहा है. सरकारी उदासीनता के कारण यहां जरूरी उपकरण भी मौजूद नहीं हैं.

फिलहाल यह सेंटर तीन स्टाफ के सहारे चल रहा है जिसमें दो काउंसलर और एक लैब टेक्नीशियन हैं. दरअसल यहां ऐसे बच्चे इलाज के लिए आते हैं जिनके आंखों में दिक्कत होती है, कम सुनते हैं या फिर चलने में परेशानी होती है. इसके अलावा वैसे बच्चे भी आते हैं जो जन्म से ही विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होते हैं. जिन बच्चों को बोलने में परेशानी होती है उन्हें इलाज के लिये पटना रेफर कर दिया जाता है क्योंकि यहां स्पीच थेरेपी की सुविधा नहीं है.

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नवजातों का इलाज हो रहा प्रभावित

सुविधा के अभाव में नहीं होता इलाज
डीईआईसी में तैनात कर्मी की मानें तो वर्तमान में अभी यहां कोई शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है. जिससे काफी परेशानी होती है. सेंटर में इलाज की सुविधा नहीं होने के कारण डीएमसीएच के विभिन्न विभागों में मरीजों को भेज दिया जाता है. उन्होंने कहा कि स्पीच थैरेपिस्ट नहीं हैं. फिजियोथैरेपिस्ट नहीं हैं. जिस कारण बच्चों का सही ढंग से इलाज नहीं हो पाता है.

पेश है रिपोर्ट

स्टाफ की है कमी
डीईआईसी के नोडल अधिकारी सह शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. के एन मिश्रा ने कहा कि डीईआईसी सेंटर सुबह 9 बजे से दिन के 1 बजे तक आउटडोर के एक कमरे में चलता है. 1 बजे से 4 बजे तक वहां कार्यरत कर्मी शिशु वॉर्ड में घूम- घूमकर काउंसलिंग करने का काम करते हैं. बच्चे को जो भी समस्या होती है उसे संबंधित विभाग में भेज दिया जाता है. उन्होंने कहा कि यहां स्टाफ की भारी कमी है. लेकिन जो भी संसाधन मौजूद है उसमें बेहतर सुविधा मुहैया कराने की कोशिश रहती है.

Intro:राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत डीएमसीएच परिसर में संचालित डिस्ट्रिक अरली इंटरवेंशन सेंटर में सुविधाओं की कमी के कारण जन्मजात से बीमार बच्चों का इलाज प्रभावित हो रहा है। वर्तमान में यह सेंटर ओपीडी के एक कमरे में ही चल रहा है।यहां पर एक भी डॉक्टर नहीं रहने के चलते, यहां पर इलाज करवाने पहुंचने वाले बच्चे को ओपीडी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। फिलहाल यह सेंटर तीन स्टाफ के सहारे चल रहा है। जिसमें दो काउंसलर तथा एक लैब टेक्नीशियन है। सरकारी उदासीनता के चलते अभी तक इस सेंटर में आवश्यक सामग्री की खरीदारी भी नहीं की जा सकी है।

दरअसल यहां ऐसे बच्चे इलाज के लिए आते हैं, जो आंख से कम देखते हैं। कम से कम सुनते हैं चलने में परेशानी और मंदबुद्धि के होते हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चे आते हैं जो विभिन्न तरह से जन्मजात बीमारी से ग्रसित होते हैं। इस सेंटर में स्पीच थेरेपी की सुविधा सेंटर में नहीं होने से बोलने में दिक्कत होने वाले बच्चे को पटना इलाज के लिए भेज दिया जाता है। आपको बताते चलें कि यहां भेजे जाने से पहले आंगनवाड़ी केंद्र, स्कूल व स्वास्थ्य केंद्रों पर जन्मजात विकृति वाले बच्चे का कार्ड बनता है। जिसके बाद डीईआईसी सेंटर में भेजा जाता है। चूंकि सेंटर में इलाज की सुविधा नहीं होने के कारण डीएमसीएच के विभिन्न विभागों में भेज दिया जाता है।


Body:वही डीईआईसी में तैनात कर्मी संगीत कुमार ने कहा कि वर्तमान में अभी यहां पर कोई शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है और हम दो लोग अभी यहां पर कार्यरत हैं। जो भी बच्चा यहां इलाज के लिए आता है उसे उस बीमारी से संबंधित डॉक्टर के पास ले जाकर उसका इलाज करवाते हैं। वहीं उन्होंने बताया कि यहां पर फिजियोथैरेपिस्ट रूम होना चाहिए। स्पीच थेरेपी रूम होना चाहिए और उसके लिए उपकरण होना चाहिए। शिशु रोग विशेषज्ञ होना चाहिए, फिजियोथैरेपिस्ट का यहां पर बहाली होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि स्पीच थैरेपिस्ट यहां पर हैं, लेकिन वे डिप्टेशन करवाकर पीएमसीएच में हैं। उनके कारण काफी दिक्कत होता है यहां पर।

वही डीईआईसी में ड्यूटी पर तैनात काउंसलर सुनीता कुमारी ने कहा कि परेशानी तो यहां बहुत होती है। जैसे कि बच्चा आया, पहले हमलोग उसे बच्चे के डॉक्टर से दिखवाते है। उसके बाद उसे जिस प्रकार की इलाज की आवश्यकता होती है, उसे उस रोग से संबंधित विभाग में ले जाते है और वहां पर दिखवाते हैं। वही उन्होंने कहा कि यहां पर स्पीच थैरेपिस्ट नहीं है, फिजियोथैरेपिस्ट नही है। इन सब कारणों से बच्चे का पूरा इलाज अच्छे ढंग से नहीं हो पाता है।


Conclusion:वही डीईआईसी के नोडल अधिकारी सह शिशु रोग विभाग के विभागध्यक्ष डॉ के एन मिश्रा ने कहा की डीईआईसी सेंटर सुबह के 9 बजे से दिन के 1 बजे तक आउटडोर के एक कमरे में चलता है। उसमें काउंसिलिग करते हुए बच्चे को क्या जरूरत है उसको हमलोग पूरा करने का काम करते हैं। जैसे मान लीजिए कि किसी को पैर से चलने में दिक्कत है तो उसे फिजियोथैरेपी में भेजते हैं। यदि किसी को सुनाई कम पड़ रहा है तो उसको ईएनटी में भेज देते हैं। किसी को आंख की समस्या है तो आंख विभाग में भेजते हैं। जिसे डेंटल की समस्या है तो उसे डेंटल के पास भेजते हैं। इस प्रकार जिस बच्चे को जिस प्रकार की जरूरत होती है। उसे उस बीमारी से संबंधित विभाग में भेजकर उसका इलाज करवाते है।

वहीं उन्होंने कहा कि यदि किसी के हर्ट में छेद है या हर्ट से संबंधित किसी अन्य प्रकार की समस्या है। ऐसे में उसे बाहर जाने की जरूरत है, तो उसके लिए हमलोग फॉर्म भर के सिविल सर्जन के यहां दिया जाता है और फिर मीटिंग में पास होकर, उसका सरकारी स्तर पर इलाज होता है। फिलहाल हमलोग इतना काम यहां कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि यहां स्टाफ की भारी कमी है। लेकिन जितना भी हमलोगों के पास संसाधन है, उससे हमलोग काम चला रहे हैं। फिलहाल सुबह के 9 बजे से दिन के 1 बजे तक ओपीडी स्थित डीईआईसी में चलता है तथा 1 बजे से 4 बजे तक वहां पर कार्यरत कर्मी शिशु वार्ड में घूम घूम कर काउंसलिंग करने का काम करते है।

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संगीत कुमार, कर्मी
सुनीता कुमारी, काउंसलर
डॉ के एन मिश्रा, नोडल अधिकारी डीईआईसी
Last Updated : Oct 14, 2019, 2:37 PM IST
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