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पुण्यतिथि विशेषः मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे नागार्जुन - जनकवि बाबा नागार्जुन

मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि बाबा नागार्जुन (Janakavi Baba Nagarjuna) की आज पुण्यतिथि है. बाबा नागार्जुन ने अपनी कालखंड में कई नेताओं की जमकर आलोचना की. वह सच्चे अर्थों में एक जनकवि थे. उनके लिए जनता की रोजी-रोटी ही प्रमुख थी. पढ़ें उनसे जुड़ी यादें...

बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि
बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि
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Published : Nov 5, 2022, 9:41 AM IST

दरभंगा: आज नागार्जुन की पुण्यतिथि (Baba Nagarjun Death anniversary) है. वैद्यनाथ मिश्र उर्फ बाबा नागार्जुन ने आज ही के दिन 1998 में बिहार के दरभंगा जिले के बड़ी तरौनी में आखिरी सांस ली थी. बाबा नागार्जुन ने 1945 के आस-पास लिखना शुरू किया. वह मैथली भाषा में 'यात्री' नाम से और हिन्दी भाषा में नागार्जुन नाम से लिखा करते थे.

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ऐसे बने थे वैद्यनाथ मिश्र से नागार्जुन: बाबा नागार्जुन ने कविता को छायावाद, रुमानियत, सौन्दर्यवाद से बाहर निकालकर समाज और आम आदमी से जोड़ने की महत्वपूर्ण कोशिश की. बाबा नागार्जुन प्रगतिशील धारा के उस वक्त के कवि हैं जब देश राजनीतिक उथल पुथल के साथ अन्य आंदोलनों से होकर गुजर रहा था. आजादी के बाद जनता की हालत जस की तस देखकर नागार्जुन को यह समझ आने लगा था कि आजादी महज सत्ता परिवर्तन है. जनता की हालत पहले भी वही थी और अब भी वही है. उनकी कविताओं में जनता का दर्द है, आम आदमी का संघर्ष है. छोटी-छोटी कविताओं और सरल भाषा में वह कितना कुछ कह जाते हैं. उनकी कविता 'अकाल के बाद'...

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त.

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पांखें कई दिनों के बाद.

बाबा नागार्जुन कविताओं में आजादी के बाद के उत्तर भारत का दर्शन मिलता है. नेहरू के समर्थक रहे बाबा नागार्जुन जब उनसे खिन्न हुए तो 1961 में रानी एलिजाबेथ द्वितीय के भारत आगमन पर उनका गुस्सा 'आओ रानी' कविता में झलकता है.

आओ रानी, हम ढोएंगे पालकी,
यही हुई है राय जवाहरलाल की
रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की
यही हुई है राय जवाहरलाल की
आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी.

बाबा नागार्जुन.. हिंदी साहित्य के आधुनिक कबीर: हिंदी साहित्य में बाबा नागार्जुन को आधुनिक कबीर कहा जाता है. कबीर की ही तरह बाबा नागार्जुन ने अपने समय की समस्याओं, कुरीतियों पर अपनी कविताओं से प्रहार किया. कभी वे कट्टरपंथी विचारधारा नक्सलवाद के साथ खड़े नजर आए तो कभी जय प्रकाश के आंदोलन में. इस कारण उनकी आलोचनाएं भी होती रहीं. एक तरफ जहां उन्होंने इंद्रा गांधी को बाघिन कहा और चिड़ियाघर में कैद हो जाने की बात कही.

इमरजेंसी के दौरान ही इंदिरा गांधी के लिए कविता: इंदुजी, इंदुजी क्या हुआ आपको?. तार दिया बेटे को, बोर दिया बाप को. कहते हैं - जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि. इसी कहावत को चरितार्थ करती उनकी यह लाइन जो उन्होंने इंदिरा शासन के वक्त कही थी. 'शेर के दांत, भालू के नाखून मर्कट का फोटा. हमेशा हमेशा राह करेगा मेरा पोता'.

नेहरू और शास्त्री पर तंज: आजादी के तुरंत बाद जब महारानी एलिजाबेथ भारत दौरे पर आई थी. इस दौरान बाबा नागार्जुन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर तंज कसा था. उन्होंने लिखा था, 'आओ रानी हम ढोएंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की.' इसके बाद जब लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने तो बाबा ने उन्हें भी नसीहत दी और कहा, 'लाल बहादुर, मत बनना तुम गाल बहादुर.'

शाशन की बंदूक कविता: इसके अलावा शाशन की बंदूक कविता में भी उन्होंने एक इंदिरा गांधी पर निशाना साधा और लिखा, 'जली ठूंठ पर बैठ कर गई कोयलिया कूक, बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक'. उन्होंने बाल ठाकरे के खिलाफ लिखा, 'बाल ठाकरे! बाल ठाकरे, कैसे फ़ासिस्टी प्रभुओं की, गला रहा है दाल ठाकरे'.

आपातकाल और बाबा नागार्जुन: 5 जून देश में आपातकाल लागू होने के लिए जाना जाता है. साल 1975 में 25 जून की रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की थी. आपातकाल देश में मार्च 1977 तक लगा रहा. बिहार के कई बड़े नेता भी उस वक्त जेल गए थे. उन्हीं में से एक हैं बीजेपी के कद्दावर नेता और पटना के कुम्हरार से विधायक अरुण सिन्हा. उन दिनों को याद कर वे कहते हैं बहुत मुश्किल दौर था वो, जब लोकतंत्र को बंधक बना लिया गया था. बीजेपी विधायक अरुण सिन्हा ने कहा कि वे सिवान जेल में महाकवि नागार्जुन के साथ बंद थे. उस दौरान नागार्जुन ने इंदिरा गांधी के खिलाफ कई कविताएं लिखी.

बाबा नागार्जुन की जीवनी: नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को हुआ था. उनकी निधन 5 नवम्बर 1998 को हुई. उनका जन्म मधुबनी जिले के सतलखा में हुआ था. यह उनका ननिहाल था. उनका पैतृक गांव दरभंगा जिले का बड़ी तरौनी था. इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र और माता का नाम उमा देवी था. नागार्जुन के बचपन का नाम 'ठक्कन मिसर' था. गोकुल मिश्र और उमा देवी को लगातार चार संताने हुईं और असमय ही वे सब चल बसीं.

बाबा नागार्जुन की बीमारी से हुई मौत: पहली बार नागार्जुन पर दमा ने परेशान किया था. उसके बाद भी वो कभी ठीक से इसका इलाज नहीं करा पाए. बीमारी बढ़ती चली गई. आजीवन वे समय-समय पर इससे पीड़ित रहते थे. उनके चार पुत्र और दो पुत्रियां थी. 5 नवंबर 1998 को उनकी मौत हो गई.

मिला सम्मान और पुरस्कार: बाबा नागार्जुन को 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था.

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