दरभंगा: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की ओर से भगवान राम (Sri Ram) पर आए विवादास्पद बयान (Controversial Statement) पर राजनीतिक घमासान जारी है. मधुबनी के बिस्फी से भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचोल (BJP MLA Haribhushan Thakur Bachol) ने जीतन राम मांझी को खुली चुनौती दी है. उन्होंने मांझी पर हमला करते हुए कहा कि राम का अस्तित्व नहीं होता तो जीतन राम मांझी के माता-पिता ने उनके नाम में राम नहीं लगाया होता.
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बचोल ने कहा कि मांझी वोट बैंक की राजनीति के लिए अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर मांझी में हिम्मत है तो वे दूसरे धर्म के लिए यही बात बोलकर देखें. अगर मांझी दूसरे धर्म के लिए ऐसी बात बोलेंगे तो उनके खिलाफ फतवा निकल जाएगा और उनका घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाएगा. विधायक बचोल दरभंगा सर्किट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे.
"जीतन राम मांझी पर उम्र का असर हो गया है. मांझी मेरे साथ तिरुपति बालाजी और रामेश्वरम समेत देश के कई विख्यात मंदिरों में गए हैं. मांझी को किस मंदिर में रोका गया, उन्हें बताना चाहिए. मांझी दलित की राजनीति के नाम पर दिखावा करते हैं. जब सत्ता की बात आती है तो अपने परिवार के लोगों का नाम आगे बढ़ा देते हैं. जब मौका मिला तो मांझी ने अपने बेटे की जगह किसी दूसरे दलित को मंत्री क्यों नहीं बनाया."- हरिभूषण ठाकुर बचोल, भाजपा विधायक
इतना ही नहीं हरिभूषण ठाकुर ने कहा कि जब सिवान में विनोद मांझी पर हमला हुआ था तो जीतन राम मांझी कहां थे. उन्होंने सवाल किया कि पूर्णिया में दलित महिलाओं पर हमला हुआ तो जीतन राम मांझी वहां क्यों नहीं गए. बचोल ने कहा कि जिस मांझी को नीतीश कुमार ने अपनी कुर्सी सौंप दी, वे उनके साथ भी लड़ गए. बचोल ने कहा कि मांझी जिस वोट की राजनीति के लिए यह सब कर रहे हैं वह उन्हें हासिल नहीं होने वाला है. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि दलितों के लिए नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार सबसे ज़्यादा काम कर रहे हैं.
दरअसल, जीतन राम मांझी ने श्रीराम को काल्पनिक बताने वाली बातें मंगलवार को तब कहीं जब उनसे सवाल पूछा गया कि मध्य प्रदेश में जिस तरीके से रामायण को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है तो क्या बिहार में भी ऐसा होना चाहिए जैसा कि बीजेपी नेताओं की तरफ से मांग की जा रही है. जीतन राम मांझी ने श्रीराम को काल्पनिक बताने वाली बातें कहीं, वहीं दूसरी तरफ उनकी ओर से इस बात की भी वकालत की गई कि रामायण को बिहार के स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि लोग उससे अच्छी बातें सीख सकें.
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