दरभंगा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) समेत कई संस्थाओं ने भारत में सितंबर और अक्टूबर में तीसरी लहर आने की चेतावनी दे रखी है. कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave Of Corona Virus) में बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा होने की आशंका जताई गई है. इसे लेकर बिहार में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था को लेकर सलाह भी दी जा चुकी है. लेकिन इसके बावजूद भी स्वास्थ्य व्यवस्था लचर बनी हुई है. उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल डीएमसीएच (DMCH) में वायरल बुखार से पीड़ित बच्चों का इलाज जमीन पर लिटाकर किया जा रहा है.
इसे भी पढ़ें: मुजफ्फरपुर में तेजी से बढ़ रहे हैं वायरल फीवर और पीलिया के मामले, अब तक 2500 मरीज पहुंचे SKMCH
कोरोना वायरस की तीसरी लहर के अंदेशे से पहले ही देश के तमाम राज्य इस वक्त वायरल फीवर से जूझ रहा है. यूपी, एमपी और बिहार समेत कई राज्यों में वायरल फीवर से बच्चों का बुरा हाल हो रखा है. स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि बच्चों के इलाज के लिए अस्पतालों में बेड तक नहीं मिल रहा है. कुछ ऐसा ही नजारा डीएमसीएच अस्पताल में देखने को मिला है. जहां बड़ी संख्या में बुखार से ग्रसित बच्चे पहुंच रहे हैं. लेकिन डीएमसीएच के शिशु रोग विभाग और एनआईसीयू में बेड पूरी तरह से फुल हो चुका है.
ये भी पढ़ें: भागलपुर में वायरल फीवर का नहीं है असर, डॉक्टरों की सलाह- फिर भी रहें सावधान
इस अस्पताल में स्थिति यह हो गई है कि एक बेड पर तीन-तीन, चार-चार बच्चों को रख कर इलाज किया जा रहा है. इतना ही नहीं बेड न मिलने की स्थिति में कई अभिभावक अपने बच्चों को जमीन पर लेटाकर इलाज कराने को मजबूर हैं. जिससे लोग डरे और सहमे हुए हैं. अभिभावकों का कहना है कि अस्पताल की व्यवस्था से वे लोग काफी परेशान हो गए हैं.
बता दें कि डीएमसीएच में बुधवार को 165 बच्चों का इलाज किया गया. जिसमें से 14 बच्चों को गंभीर अवस्था में भर्ती किया गया. शेष बच्चों को इलाज कर घर वापस भेज दिया गया. अस्पताल के शिशु रोग विभाग में भर्ती बच्चों की बात करें, तो 111 बच्चे शिशु वार्ड के आईसीयू में भर्ती हैं. जबकि नीकू वार्ड, पीकू वार्ड और जनरल वार्ड फुल हो चुके हैं.
इन दिनों शिशु रोग विभाग के ओपीडी में प्रतिदिन 150 से 250 बच्चे और इमरजेंसी में 50 से 90 बच्चे पहुंच रहे हैं. मरीजो की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि के कारण वार्ड में बेड खाली न होने के कारण महिलाएं अपने नवजात को गोद में ही लेकर इलाज करवा रही हैं.
'दो दिनों तक बेड के इंतजार में अपने बच्चे को जमीन पर लेटाकर इलाज कराते रहे. उसके बाद जब बेड मिला भी, तो उस पर तीन-चार बच्चों को शेयर कर दिया गया. मेरा सवाल है कि जिस तरह से कोरोना की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है. ऐसे में अगर एक बेड पर 4-4 बच्चों का इलाज होगा, तो कोरोना कितना जानलेवा बन जाएगा. मेरी सरकार से डीएमसीएच की व्यवस्था सुधारने की गुजारिश है.' -मोहम्मद सलाउद्दीन, मरीज के परिजन
'अस्पताल में बेड पूरी तरह से फुल है. मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. वायरल फीवर और फ्लू की वजह से बच्चे बड़ी संख्या में अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं. लेकिन अस्पताल में बेड की कमी है. ऐसे में बच्चों का इलाज करने में परेशानी हो रही है. हालांकि हमलोग अपनी तरफ से बेहतर इलाज के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं.' -डॉ. सपा करो, मेडिकल ऑफिसर, शिशु रोग विभाग
'वायरल फीवर की वजह से बच्चे बीमार पड़ रहे हैं. इससे पैनिक होने की कोई बात नहीं है. इस बीमारी में हमारे यहां कोई मृत्यु नहीं हुई है. सभी बच्चे ठीक हो रहे हैं. वर्तमान में सारे बेड फुल हैं. हम लोगों ने अतिरिक्त बेड के लिए नया पीकू वार्ड बनाया है. उसे जल्द ही चालू करा दिया जाएगा. मरीजों की संख्या बढ़ेगी, तो हम और बेड बढ़ा देंगे. अस्पताल में जितने भी बच्चे हैं दो-तीन दिन में रिकवर हो जा रहे हैं.' -डॉ ओम प्रकाश, चिकित्सा पदाधिकारी, शिशु रोग विभाग
बताते चलें कि देशभर के तमाम राज्यों में वायरल फीवर (Viral Fever In India) ने तेजी से पैर पसारना शुरू कर दिया है. यूपी, एमपी, बिहार और अब दिल्ली में भी ये वायरस तेजी से फैलता जा रहा है. चिंता का विषय यह है कि इससे सबसे ज्यादा बच्चे पीड़ित हो रहे हैं. बिहार, यूपी समेत तमाम राज्यों में हालात ये हैं कि अस्पतालों में जगह नहीं बच रही है.
यूपी के फिरोजाबाद में इस बीमारी ने न जाने कितनों मासूमों की जिंदगी चली गई है. वहीं, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में भी यही हाल है. इसी बीच लोगों के चिंता ये भी है कि कहीं ये कोरोना की तीसरी लहर तो नहीं. मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, सीवान, छपरा, गोपालगंज, पश्चिमी चंपारण, हाजीपुर और पूर्वी चंपारण में मरीज भर्ती हैं. हर जगह स्थिति भयावह बना हुआ है.
बता दें कि वायरल बुखार एक एक्यूट वायरल संक्रमण है. इसमें संक्रमित विषाणु शरीर में तेजी से फैलते हैं और कुछ ही दिनों में पूरी तरह खत्म भी हो जाते हैं. वायरल होने पर रोगी का तांत्रिक तंत्र भी प्रभावित हो सकता है. शिशुओं के लिए वायरल और अधिक कष्टदायी होता है. जानकारों का मानना है कि वायरल बुखार कम से कम तीन दिन और अधिक से अधिक दो सप्ताह तक रह सकता है.
वायरल बुखार को किसी दवा से या एंटीबायोटिक से ठीक नहीं किया जा सकता है. ऐसे समय में बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता बहुत घट जाती है, जिस कारण ये जरुरी होता है की समय-समय पर डॉक्टर की सलाह और दवाई दी जाये. बच्चों को वायरल फीवर होने पर कुछ इस प्रकार के लक्षण दिखते हैं-
- बच्चे पीले और सुस्त पड़ जाते हैं.
- श्वसन और स्तनपान में कठिनाई के साथ ही उल्टी-दस्त भी हो सकती है.
- बच्चे के पूरे शरीर में अत्यधिक दर्द होता है.
- गले में खराश और खांसी आने लगती है.
- नाक से लगातार पानी बहता है.
- आंखें लाल हो जाती है और उसमें जलन का एहसास होने लगता है.
- तेज सिर दर्द के साथ त्वचा में धब्बे पड़ने लगते हैं.