दरभंगा: बिहार के सबसे बड़े लोक पर्व छठ व्रत की शुरुआत हो चुकी है. 4 दिनों के इस पर्व में व्रती कठिन तपस्या करते हैं. छठ पर्व को लेकर पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं. सूर्य की पूजा वाले इस व्रत को छठ व्रत भी कहते हैं. बिहार में इसे छठी मैया का व्रत भी कहा जाता है. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि सूर्य के आराधना वाले इस व्रत को छठी मइया की पूजा क्यों कहा जाता है. इसी सवाल का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के धर्म शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीपति त्रिपाठी से खास बात की.
सूर्य षष्ठी से छठी मइया का क्या है नाता
प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने छठ पूजा को छठी माई की पूजा कहने के बारे में कई मान्यताएं बताई. उन्होंने कहा कि भारतीय धर्म में जिस देवता की पूजा की जाती है उसकी शक्ति की भी आराधना की जाती है. उन्होंने कहा कि भगवान सूर्य की शक्ति षष्ठी देवी हैं. इस वजह से छठ व्रत में षष्ठी देवी की पूजा की जाती है. इसलिए इस व्रत को सूर्य षष्ठी व्रत कहा गया, जो अपभ्रंश होकर छठ व्रत हो गया. सूर्य षष्ठी व्रत में षष्ठी देवी की पूजा की जाती है इसलिए यह भी अपभ्रंश होकर छठी माई हो गया.
छठ व्रत को छठी माई की पूजा क्यों?
प्रो. श्रीपति त्रिपाठी ने कहा कि छठी माई कहने की कई और मान्यताएं भी हैं. उन्होंने बताया कि पुराणों में कार्तिकेय के जन्म का वर्णन है. कार्तिकेय को जन्म के बाद सरकंडा के वन में छोड़ दिया गया था. उस वन में 6 कृतिकाएं रहती थीं. उन्होंने उस बालक का पालन-पोषण किया और उसका नाम कार्तिकेय रखा. इस वजह से वे कृतिकाएं षष्ठी माता कहलाईं. बाद में यह अपभ्रंश होकर छठी माई हो गया. उन्होंने कहा कि इसी वजह से मास का नाम भी कार्तिक पड़ा जिसमें छठ व्रत होता है. उन्होंने कहा कि एक लोक पर्व है और इसका संबंध आम लोगों से ज्यादा है. इसलिए बिहार में छठ व्रत को छठी माई की पूजा के नाम से भी जाना जाता है.