दरभंगा: नौवीं सदी की कैथी लिपि (9th Century Kaithi Script) आज 21वीं सदी में बंपर रोजगार के अवसर पैदा कर रही है. दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान के मोहिम गांव के नीतीश कुमार कैथी से हिंदी ट्रांसलेशन का काम कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. नीतीश के पास अब तक बिहार के कई जिलों के अलावा झारखंड के रामगढ़, रांची, हजारीबाग और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से जमीन के दस्तावेजों का हिंदी में ट्रांसलेशन कराने के लिए लोग पहुंच चुके हैं.
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नीतीश मूल रूप से एक प्राइवेट अमीन हैं. वो कैथी के सामान्य दस्तावेज का एक पृष्ठ अनुवाद करने के 1000 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक चार्ज करते हैं. वे एक एनजीओ के माध्यम से अमानत का प्रशिक्षण देते हैं. साथ ही लोगों को कैथी मुफ्त में सिखाते हैं.
भारत के हर राज्य में भूमि के रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन किया जा रहा है. बिहार में भी फिलहाल जमीन के सर्वे और डिजिटाइजेशन का काम चल रहा है. जमीन के पुराने दस्तावेज कैथी लिपि और फारसी भाषा में लिखे हुए मिलते हैं, लेकिन अब इन रिकॉर्ड्स को पढ़ने वाले लोग नहीं के बराबर रह गए हैं. ऐसे में जमीन के वारिस तय करने से लेकर मुकदमे के फैसले देने तक में काफी दिक्कत आ रही है. इस वजह से कैथी से हिंदी में ट्रांसलेशन करने वाले लोगों की बहुत मांग है. लोग दूर-दूर से दस्तावेजों का ट्रांसलेशन कराने पहुंचते हैं और कैथी ट्रांसलेटर को मुंह मांगी कीमत देते हैं.
झारखंड के रामगढ़ जिले के रामदेव, बेदिया और दरभंगा में नीतीश कुमार से अपनी जमीन के दस्तावेज का हिंदी में ट्रांसलेशन कराने पहुंचे. उन्होंने बताया कि हजारीबाग सिविल कोर्ट में उनकी जमीन का मुकदमा चल रहा है. उनका दस्तावेज 1917 ई. का है जो कैथी में लिखा हुआ है. उन्होंने बताया कि जज साहेब ने कैथी के दस्तावेज का हिंदी में ट्रांसलेशन करा कर लाने का हुक्म दे दिया. उसके बाद वे कई महीनों तक परेशान रहे. आखिर में यूट्यूब पर नीतीश के चैनल को देखा तो इनसे संपर्क किया और यहां आए. उन्होंने कहा कि अब उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा.
नीतीश ने 2020 में दरभंगा के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय (Maharajadhiraj Laxmeshwar Singh Museum of Darbhanga) में भारतीय भाषा संस्थान मैसूर और मैथिली साहित्य संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रशिक्षण शिविर में कैथी का प्रशिक्षण लिया था. उसके बाद उन्होंने इसका लगातार अभ्यास किया और इस पर पकड़ बनाई. उन्होंने अपना एक यूट्यूब चैनल बनाया जिसके माध्यम से लोगों ने उनको जाना और उनके पास जमीन के दस्तावेजों का ट्रांसलेशन कराने पहुंचने लगे.
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''बिहार सरकार के भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग के मंत्री रामसूरत राय से राज्य में कैथी ट्रांसलेटर की बहाली को लेकर मुलाकात की थी. मंत्री जी ने आश्वासन तो दिया लेकिन अब तक इस दिशा में पहल नहीं हुई. अगर कैथी ट्रांसलेटर की बहाली होती है तो राज्य में बढ़ते भूमि विवाद सुलझाने में मदद मिलेगी. साथ ही इसमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा. इसके अलावा विलुप्त होती कैथी लिपि को भारत में पुनर्जीवित करने में मदद मिलेगी.''- नीतीश कुमार, कैथी से रोजगार पाने वाले प्राइवेट अमीन
कैथी लिपि नौवीं सदी में ज्यादा प्रचलन में आई. हालांकि, इसे छठी सदी की लिपि माना जाता है. नौवीं सदी में अफगान शासक शेरशाह ने इसे अपनी मुहर में जगह दी. कोर्ट ने स्क्रिप्ट के तौर पर मान्यता दी. इसकी वजह से जमीन की खरीद-बिक्री के दस्तावेज कैथी लिपि में लिखे जाने लगे. बाद में स्कूलों में भी इस लिपि की पढ़ाई शुरू हुई जो 1930 तक चली. बिहार के न्यायालयों में इसे 1970 के दशक तक जारी रखा गया.
बिहार में कैथी के विशेषज्ञ और विधान परिषद के अधिकारी भैरव लाल दास ने कहा कि वे लोग 2017 से कैथी की कार्यशालाएं चला रहे हैं. इन कार्यशालाओं के माध्यम से अब तक सैकड़ों लोग कैथी का प्रशिक्षण ले चुके हैं, जिनमें से कई लोग इसका व्यावसायिक उपयोग कर कमाई भी कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि अब भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. राज्य में कैथी के जानकारों की संख्या बहुत कम है. इसकी वजह से जमीन के झगड़े बढ़ रहे हैं और कोर्ट पर मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को कैथी के जानकारों की बहाली करनी चाहिए.
वहीं, महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय के क्यूरेटर डॉ. शिवकुमार मिश्र ने कहा कि कैथी का प्रशिक्षण देने का उद्देश्य एक तरफ विलुप्त होती इस लिपि को बचाना है. इसके माध्यम से भूमि विवाद सुलझाना और लोगों को इसमें रोजगार दिलाना भी मकसद है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में बिहार के कई जिलों में कैथी की कार्यशालाएं चलाने की योजना है.
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