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यहां आज तक नहीं जली उज्जवला योजना की 'लौ', चूल्हे के धुंए में ही पकता है खाना

लोगों को केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के बारे में पता नहीं है. लोगों का कहना है कि वो खाना पकाने के लिए जंगल में सूखी लकड़ी की तलाश में जाते हैं.

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Published : Apr 7, 2019, 2:46 PM IST

उज्जवला योजना

रोहतास: पीएम नरेंद्र मोदी ने गरीबों के घर को धुंआ रहित करने का वादा किया था. इसके लिए उन्होंने उज्ज्वला योजना की शुरूआत भी की. मगर पीएम मोदी की ये योजना अभी भी कई घरों की चौखट से दूर है. जिले के डेहरी प्रखंड में आज भी कई घर धुंए से भरे हैं. यही नहीं यहां की बहू-बेटियां खाना पकाने की जद्दोजहद में जंगले से लकड़ियां चुनने जाती हैं.

रोहतास जिला के डेहरी प्रखंड के पटनवा टोला की दलित बस्ती में आज भी लोग धुएं भरे चूल्हे में खाना बनाने के लिए मजबूर हैं. तकरीबन तीन सौ घरों की आबादी वाले इस गांव में एक भी परिवार को उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस नहीं मिली है. लिहाजा, यहां के दलित परिवार आज भी चूल्हे में लकड़ी झोंक कर खाना बनाने को मजबूर हैं.

समस्या बताती गृहणी

नहीं पता क्या है योजना
लोगों को केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के बारे में पता नहीं है. लोगों का कहना है कि वो खाना पकाने के लिए जंगल में सूखी लकड़ी की तलाश में जाते हैं. वहीं, गर्मी और बरसात के दिनों में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. गर्मी में लू के थपेड़े और बरसात में लकड़ियों के भींग जाने पर आम जीवन में काफी प्रभाव पड़ता है.

जमीनी स्तर पर है योजनाओं का अभाव
यहां सवाल यही उठता है कि आखिर क्यों सरकार की तमाम महात्वाकांक्षी योजनाओं की पहुंच निचले स्तर तक नहीं है. लिहाजा, ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यूं तो सरकार विज्ञापनों में पानी की तरह पैसे बहाती है, लेकिन योजनाओं के लिए सर्वे करा या कमेटी गठन कर जागरूक क्यों नहीं करती.

रोहतास: पीएम नरेंद्र मोदी ने गरीबों के घर को धुंआ रहित करने का वादा किया था. इसके लिए उन्होंने उज्ज्वला योजना की शुरूआत भी की. मगर पीएम मोदी की ये योजना अभी भी कई घरों की चौखट से दूर है. जिले के डेहरी प्रखंड में आज भी कई घर धुंए से भरे हैं. यही नहीं यहां की बहू-बेटियां खाना पकाने की जद्दोजहद में जंगले से लकड़ियां चुनने जाती हैं.

रोहतास जिला के डेहरी प्रखंड के पटनवा टोला की दलित बस्ती में आज भी लोग धुएं भरे चूल्हे में खाना बनाने के लिए मजबूर हैं. तकरीबन तीन सौ घरों की आबादी वाले इस गांव में एक भी परिवार को उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस नहीं मिली है. लिहाजा, यहां के दलित परिवार आज भी चूल्हे में लकड़ी झोंक कर खाना बनाने को मजबूर हैं.

समस्या बताती गृहणी

नहीं पता क्या है योजना
लोगों को केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के बारे में पता नहीं है. लोगों का कहना है कि वो खाना पकाने के लिए जंगल में सूखी लकड़ी की तलाश में जाते हैं. वहीं, गर्मी और बरसात के दिनों में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. गर्मी में लू के थपेड़े और बरसात में लकड़ियों के भींग जाने पर आम जीवन में काफी प्रभाव पड़ता है.

जमीनी स्तर पर है योजनाओं का अभाव
यहां सवाल यही उठता है कि आखिर क्यों सरकार की तमाम महात्वाकांक्षी योजनाओं की पहुंच निचले स्तर तक नहीं है. लिहाजा, ग्रामीणों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यूं तो सरकार विज्ञापनों में पानी की तरह पैसे बहाती है, लेकिन योजनाओं के लिए सर्वे करा या कमेटी गठन कर जागरूक क्यों नहीं करती.

Intro:रोहतास। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर गरीबों के घर को धुआ रहित करने का वादा किया था। जिसके तहत प्रधानमंत्री ने उज्जवला योजना जैसी सबसे अहम योजनाओं की शुरुआत की लेकिन इस योजना का लाभ आम लोगों के पहुंच से अभी भी कोसों दूर है।


Body:रोहतास जिला के डेहरी प्रखंड के पटनवा टोला के इस दलित बस्ती में आज भी लोग धुएं भरे चूल्हे में खाना बनाने के लिए मजबूर हैं। तकरीबन तीन सौ घरों की आबादी वाले इस गांव में एक भी परिवार को उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस नहीं मिला है। लिहाजा वहां के दलित परिवार आज भी चूल्हा में लकड़ी झोंक कर खाना बनाने को मजबूर है। वहीं ग्रामीण काफी दूर चल कर जंगलों तक पहुंचते हैं और फिर उस जंगल से चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां लाते हैं। सबसे अहम सवाल यह है कि इन दलित बस्ती के ग्रामीण लोगों को उज्जवला योजना का ज्ञान तक नहीं है। आखिर सरकार उज्जवला योजना के प्रचार प्रसार में इतने पैसे खर्च करती है। उसके बावजूद आज भी इसकी जानकारी लोगों के पहुंच से दूर है। सरकार जिस तरह से इस योजना की वाहवाही लूट रही है जमीनी स्तर पर इस योजना का लाभ अब भी सही मायने में उन गरीबों तक नहीं पहुंच रहा है। जिन्हें गैस सिलेंडरों की सख्त जरूरत है। जहीर है नेता जिस तरह से चुनाव में वादे करते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह वादे महज वादों का खोखला टीला बनकर ही रह जाता है। गांव की एक महिला ने बताया कि वह चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां जंगल से लाती है जो गांव से काफी दूर है। सबसे अधिक गर्मी और बरसात के दिनों में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जब अधिक बारिश हो जाती है तो लकड़ी भीग जाती है और वही जब अधिक गर्मियां पड़ती है तो लू के थपेड़े उन्हें रोड पर चलने पर मजबूर करती है। जाहिर है पिछले चार सालों में इस गांव में एक भी नेता चाहे वह सांसद हो या फिर विधायक हो वह आज तक इन गरीबों का पुरसानेहल जानने नहीं पहुंचे हैं।


Conclusion:जाहिर है सरकार ने तो कई योजनाएं चलाई है। लेकिन हकीकत में इन योजनाओं की जानकारी आज भी कई गांव तक नहीं पहुंच पाई है। लिहाजा वहां के लोग आज भी उन योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं जिसका लाभ उन गरीबों को जरूर मिलना चाहिए था।
बाइट। ग्रामीण
पीटीसी
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