बक्सर: बिहार के बक्सर में ऐसा पशु प्रेम देखने को मिला जो अब तक आपने ने कही नहीं देखा होगा. दरअसल, यहां एक बकरे के मर जाने पर शव यात्रा निकाली गई. जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए. 35 किलोमीटर की इस शव यात्रा में पूरा गांव शामिल हुआ और मातम मनाया. पूरे हिन्दू रीति रिवाज से ग्रामीणों ने बकरे का अंतिम संस्कार किया. गाजे-बाजे के साथ निकली यह अंतिम यात्रा को देखने लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. ये मामला डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत केसठ गांव का है. बकरे के मौत से पूरे गांव में मातम का माहौल है. जानवर और इंसानों के बीच इस अटूट प्रेम को देख हर कोई हैरान रहा.
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बकरे की अंतिम शव यात्रा में शामिल हुए सैकड़ों लोग : दरअसल दर्शल केसठ गांव के रहने वाले ग्रामीण पशु प्रेम का जो मिशल पेश किया है, उसे देखकर हर कोई हैरान है. ग्रामीण सामूहिक रूप से एक बकरे का पालन-पोषण कर रहे थे. उस गांव के रहने वाले हर लोग उससे पुत्रवत प्रेम कर रहे थे. पिछले 10 दिनों से वह बीमार था, जिसको बचाने के लिए ग्रामीणों ने हर स्तर पर उसका इलाज कराया. लेकिन आज उसकी मौत हो गई. बकरे के मौत की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. देखते ही देखते पूरे गांव में मातमी सन्नटा पसर गया. ग्रामीणों ने बड़े ही धूम-धाम से गाजे-बाजे के साथ उसका अंतिम शव यात्रा निकाली. राम नाम सत्य है कि गूंज से हर आंखें नम हो गई, इस शव यात्रा में सैकड़ो लोग शामिल हुए. 35 किलोमोटर के इस शव यात्रा के बाद बक्सर मुक्ति धाम में पहुंचकर लोगो ने गंगा नदी में उसका जल प्रवाह किया.
क्या कहते है स्थानीय लोग : इस शव यात्रा में शामिल होने वाले ग्रामीणों ने बताया कि यह बकरा जानवर जरूर था लेकिन हम ग्रामीणों के लिए पुत्र के समान था. हिन्दू रीति-रिवाज से आज उसका अन्तिम संस्कार किया गया. नियत समय पर ब्रह्मभोज का भी आयोजन किया जाएगा. वहीं ग्रामीणों के इस पशु प्रेम को देख वरीय चिकित्सक डाक्टर राजीव झा ने कहा कि- 'इन ग्रमीणों से बड़े -बड़े शहरों के ऊंची-ऊंची इमारतों में रहने वाले लोगों को सिख लेना चाहिए. जंहा अस्पताल के बेड पर लोग अपने मां- बाप को छोडकर भाग जाते हैं. और यहां ग्रामीण जानवर को पुत्र की तरह अंतिम विदाई दिए. इन ग्रमीणों को मैं झुककर सालम करता हूं. इनके इस पशु प्रेम को देख मेरी भी आंखे खुल गई है.'