बक्सरः चैत्र नवरात्रि के सांतवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की गई. आंठवें दिन महागौरी की पूजा-अर्चना की जाएगी. नवरात्रि को लेकर माहौल भक्तिमय बना हुआ है. बिहार के बक्सर में महिषासुर मर्दिनी (Mahishasura Mardini Temple in Buxar) की महिमा अपरंमपार है. यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. जिले के सिताबपुर गांव में स्थित माता महिषासुर मर्दिनी की षष्टभुजा वाली प्रतिमा स्थापित है. यहां 150 साल से माता की पूजा हो रही है. माता की प्रतिमा स्थापित होने के पीछे लंबी कहानी है, जिसे यहां के पुजारी और गांव के लोग चमत्कार मानते हैं.
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250 साल पूर्व प्रतिमा स्थापितः 250 साल पूर्व माता की प्रतिमा को स्थापित किया गया था. मान्यता है कि मां भगवती की स्वर्ण आभा साधु के सपने में आई थी. इसके बाद गांव के लोगों ने कीचड़ भरे गड्ढे से प्रतिमा निकाल कर स्थापित की. प्रतिमा 4 फीट ऊंची और 1500 किलो वजनी है. मान्यता है कि मां की शक्ति व इनके चमत्कार के कई चर्चे गांव में मशहूर हैं. खुदाई के दौरान तांबे के सिक्के और कई मूर्तियां मिल चुकीं है.
नवरात्रि में उमड़ती है भीड़ः मुख्यालय से 35 किमी दूर राजपुर थाना के सिताबपुर में यह मंदिर है. नवरात्रि में पूजा के लिए यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. छह भुजाओं वाली महिषासुर मर्दिनी बांए हाथ से महिषासुर का जबड़ा पकड़ी हैं और दाहिने में त्रिशूल से महिषासुर के पीठ पर वार कर रही हैं. माता की प्रतिमा ग्रेनाइट की है. छह भुजाओं में दाएं में शंख, खडग, त्रिशूल व बाएं भुजा में घंटी, पद्म व महिषासुर का जबड़ा है. 75 वर्षीय पुजारी हरिनारायण पांडे ने बताया कि 150 वर्षों से माता की पूजा मंदिर में हो रही है.
250 साल पहले सपने में आई थी मांः महिषासुर मर्दिनी की छह भुजाओं वाली प्रतिमा छत्तीसगढ़ में माता दंतेश्वरी की है. माता दंतेश्वरी राक्षस का कटा सिर धारण की हैं. ग्रामीण दिनेश पाण्डेय ने बताया कि तकरीबन 250 साल पहले मां साधु के सपने में आई, जिन्होंने पूछा कि क्या वे गड्ढे में रहेंगी? साधु ने लोगों को बताई तो यकीन नहीं हुआ. इसके बाद मां अन्य लोगों के सपने में आईं. इसके बाद गड्ढे से प्रतिमा को निकाला गया. 150 वर्ष पूर्व गांव के ही राजगोविन्द यादव को सपना आया तो 5 साल पहले मां को चांदी का मुकुट व मुखौटा पहनाया गया.
गूंगों को दे चुकी हैं जुबानः यह मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. मां की शक्ति के कई चर्चे मशहूर हैं. बुजुर्ग ग्रामीण बतातें हैं कि गोरोसीडीहरा की एक विवाहिता बचपन से मूकबधिर थी. दो वर्ष पूजा की तो बोलने लगी. उसकी शादी कोचाढी में हुई है. खरहना गांव के एक युवक दिनेश भी मानसिक रूप से विक्षिप्त था. बोल नहीं पाता था, कई वर्षों तक मंदिर के आसपास रहता था. देवी की कृपा से जुबान मिल गयी.