बक्सर: लॉकडाउन के दौरान जहां सभी उद्योग धंधों और व्यापार आर्थिक संकट की चपेट में हैं. वहीं, श्मशान घाट से जुड़े ऐसे लोग जो यहां लकड़ी बेंचकर या दाह संस्कार की रस्में पूरी करा अपनी जीविका चलाते थे. आज परेशान हो उठे हैं. इनपर लॉकडाउन का खासा असर पड़ा है.
मिनी काशी के नाम से प्रसिद्ध बक्सर के चरित्रवन स्थित मुक्तिधाम में दूरदराज से लोग अपने मृत परिजनों का दाह संस्कार करने के लिए पहुंचते थे. लेकिन लागू हुए लॉकडाउन के बाद यहां वीरानी छा गई. वजह लोगों का अपने-अपने इलाकों में ही दाह संस्कार कराना है.
मुक्तिधाम की मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेता युग में बक्सर ऋषि मुनियों की तपोभूमि रही है. कहा जाता है कि यहां ताड़का, सुबाहु, मारीच जैसे राक्षसों के वध के बाद उन्हें राक्षस योनि से मुक्ति दिलाने के लिए यज्ञ किया गया था. तभी से इसे 'मुक्तिधाम' कहकर पुकारा जाने लगा.
400 परिवारों की जीविका पर संकट
इस श्मशान घाट में लकड़ी बेचने वाले हों या दाह संस्कार कराने वाले, लगभग 400 लोगों के परिवार की जीविका इसी व्यवसाय से चलती थी. लेकिन जब यहां दाह संस्कार होगा नहीं, तो इनके घरों का चूल्हा कैसे जलेगा. यही कारण है कि आज सभी परेशान हो उठे हैं.
- आम दिनों में हर रोज यहां 150 से 200 शवों का दाह संस्कार होता था.
- लॉकडाउन के चलते यहां खाने-पीने की दुकाने भी बंद हैं.
- इस वजह से लोग यहां नहीं आ रहे हैं.
- राम रेखा घाट पर जाने के लिए लगी है रोक
क्या कहते श्मशान घाट कर्मी
श्मशान घाट पर दाह संस्कार कराने वाले पंडा और लकड़ी बेचने वालों ने बताया कि लॉकडाउन के कारण अब इस श्मशान घाट पर 90 प्रतिशत शवों का आना कम हो गया है, जिसके कारण हम आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं.
बता दें कि इस घाट पर लगभग 300 पंडा, 100 से अधिक लकड़ी और दाह संस्कार के समान बेच कर गुजारा करने वाले हैं. इन सभी के हालात खराब हैं. अनलॉक-1 लागू होते ही जहां परिवहन को शुरू किया गया है. ऐसे में यह श्मशान घाट भी इस आस में है कि जो लोग अपने इलाके में शवों का दाह संस्कार कर रहे हैं. वो यहां की मान्यता को लेकर यहां आएंगे.