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बक्सर के 5 वर्ष से कम करीब 39.6 प्रतिशत बच्चे हैं कुपोषण का शिकार - मानसिक विकास

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-20 ) के आंकड़ों के अनुसार बक्सर जिले में 5 साल तक के 39.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन के शिकार थे. जो पिछले चार सालों में सरकार, जिला प्रशासन और एकीकृत बाल विकास सेवा विभाग के प्रयासों की बदौलत कम हुआ था.

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Published : Feb 10, 2021, 10:59 AM IST

बक्सर: कुपोषण कम आयु के बच्चों के लिए एक गंभीर समस्या है. इससे बच्चों का विकास थम जाता है. सरकार की तरफ से देश को कुपोषण मुक्त करने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं. फिर भी जिले में 5 साल से कम आयु के 39.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. सरकार के लाख प्रयास के बाद भी आंकड़ों में गिरावट नहीं आ रही है.

कुपोषण की समस्या
बच्चों में कुपोषण की वजह से बौनापन (स्टंटिंग) और अल्पवजन (वेस्टिंग ) एक आम किन्तु गंभीर समस्या है. इसकी शुरुआत बच्चे के जन्म से ही नहीं बल्कि उसके जन्म से पहले उसकी माता के कुपोषित होने से होती है. आईसीडीएस की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी तरणि कुमारी ने बताया कि कुपोषण की समस्या का समाधान करना एक गंभीर चुनौती है.

क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-20 ) के आंकड़ों के अनुसार, बक्सर जिले में 5 साल तक के 39.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन के शिकार थे. जो पिछले चार सालों में सरकार, जिला प्रशासन और एकीकृत बाल विकास सेवा विभाग के प्रयासों की बदौलत कम हुआ था.

वर्ष 2015-16 में जो रिपोर्ट आई थी, उसके हिसाब से बच्चों में कुपोषण का आंकड़ा 43.9 प्रतिशत था. इसके अलावा पोषण की कमी के कारण अल्प वजन की गम्भीर समस्या से जूझ रहे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है. 2019-20 में यह संख्या 33.2 प्रतिशत तक पहुंच गयी, जो वर्ष 2015-16 में 19.6 प्रतिशत तक ही सीमित रहा था.

जागरूकता का आभाव है प्रमुख कारण
जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने बताया जागरूकता का आभाव और सही खानपान की जानकारी न होना इसका प्रमुख कारण है. माता के गर्भकाल की शुरुआत के साथ ही उसके उचित आहार को सुनिश्चित कर नाटापन और अल्पवजन की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. गर्भवती स्त्री का पूरा और उचित पोषण यह सुनिश्चित करता है कि उसका आनेवाला शिशु पूरी तरह स्वस्थ होगा.

संपूर्ण टीकाकरण बहुत जरूरी
तरणि कुमारी ने बताया कि जन्म के उपरान्त छह महीने तक नवजात को सिर्फ मांं का दूध देना शिशु के लिए सुरक्षा चक्र का काम करता है. यह उसे कई तरह की बीमारियों और संक्रमण से बचाता है. छह महीने के बाद शिशु को थोड़ी- थोड़ी मात्रा में सुपाच्य भोजन तीन से चार बार देने से उसके शारीरिक और मानसिक विकास की बढ़ती जरूरतों की पूर्ती होती है. साथ ही उसका कुपोषण से बचाव होता है. गर्भवती माता और शिशु का संपूर्ण टीकाकरण भी शिशु को स्वस्थ और सुपोषित रखने में अहम भूमिका निभाता है.

ये भी पढ़ेः बिहार के बोधगया में ग्लोवल लर्निंग सेंटर 'नालंदा इंस्टीट्यूट ऑफ दलाई लामा' की स्थापना

कुपोषण से बचाने के लिए बच्चों को ये खिलाएं-

• 6 महीने से ऊपर उपर के बच्चे को मां के दूध के साथ मसला हुआ भोजन दें

• दिन में 5-6 बार थोड़ा-थोड़ा खिलाएं

• भोजन में पोषण के आवश्यक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आयरन, विटामिन, कैल्सियम कैल्शियम आदि शामिल करें

• हरी साग सब्जियां, मौसमी फल, मांस, मछली, अंडे, बीन्स, दूध, पनीर दाल इत्यादि खिलाएं

• भोजन बनाने और खिलाने से पहले हाथ को अच्छी तरह साफ करें

• स्वच्छ स्वछ पानी का पर्याप्त मात्रा में सेवन कराएं

स्टंटिंग (बौनापन)-
स्टंटिंग या उम्र के अनुसार कम ऊंचाई भोजन में लंबे समय तक आवश्यक पोषक तत्वों तत्त्वों की कमी और बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण होती है.

• स्टंटिंग की समस्या दो साल की उम्र से पहले होती है और इसके प्रभाव काफी हद तक अपरिवर्तनीय होते हैं.

• इसके कारण बच्चों का विकास देर से होता है, बहुत से कार्य में अक्षम होते हैं है और स्कूल में उनका प्रदर्शन खराब होता है.

• वेस्टिंग या उम्र के अनुसार कम वजन पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है.

• यह उम्र के अनुरूप पोषक आहार की कमी या किसी घातक बीमारी से हो सकता है.

बक्सर: कुपोषण कम आयु के बच्चों के लिए एक गंभीर समस्या है. इससे बच्चों का विकास थम जाता है. सरकार की तरफ से देश को कुपोषण मुक्त करने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं. फिर भी जिले में 5 साल से कम आयु के 39.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. सरकार के लाख प्रयास के बाद भी आंकड़ों में गिरावट नहीं आ रही है.

कुपोषण की समस्या
बच्चों में कुपोषण की वजह से बौनापन (स्टंटिंग) और अल्पवजन (वेस्टिंग ) एक आम किन्तु गंभीर समस्या है. इसकी शुरुआत बच्चे के जन्म से ही नहीं बल्कि उसके जन्म से पहले उसकी माता के कुपोषित होने से होती है. आईसीडीएस की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी तरणि कुमारी ने बताया कि कुपोषण की समस्या का समाधान करना एक गंभीर चुनौती है.

क्या कहते हैं आंकड़े
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-20 ) के आंकड़ों के अनुसार, बक्सर जिले में 5 साल तक के 39.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन के शिकार थे. जो पिछले चार सालों में सरकार, जिला प्रशासन और एकीकृत बाल विकास सेवा विभाग के प्रयासों की बदौलत कम हुआ था.

वर्ष 2015-16 में जो रिपोर्ट आई थी, उसके हिसाब से बच्चों में कुपोषण का आंकड़ा 43.9 प्रतिशत था. इसके अलावा पोषण की कमी के कारण अल्प वजन की गम्भीर समस्या से जूझ रहे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है. 2019-20 में यह संख्या 33.2 प्रतिशत तक पहुंच गयी, जो वर्ष 2015-16 में 19.6 प्रतिशत तक ही सीमित रहा था.

जागरूकता का आभाव है प्रमुख कारण
जिला प्रोग्राम पदाधिकारी ने बताया जागरूकता का आभाव और सही खानपान की जानकारी न होना इसका प्रमुख कारण है. माता के गर्भकाल की शुरुआत के साथ ही उसके उचित आहार को सुनिश्चित कर नाटापन और अल्पवजन की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. गर्भवती स्त्री का पूरा और उचित पोषण यह सुनिश्चित करता है कि उसका आनेवाला शिशु पूरी तरह स्वस्थ होगा.

संपूर्ण टीकाकरण बहुत जरूरी
तरणि कुमारी ने बताया कि जन्म के उपरान्त छह महीने तक नवजात को सिर्फ मांं का दूध देना शिशु के लिए सुरक्षा चक्र का काम करता है. यह उसे कई तरह की बीमारियों और संक्रमण से बचाता है. छह महीने के बाद शिशु को थोड़ी- थोड़ी मात्रा में सुपाच्य भोजन तीन से चार बार देने से उसके शारीरिक और मानसिक विकास की बढ़ती जरूरतों की पूर्ती होती है. साथ ही उसका कुपोषण से बचाव होता है. गर्भवती माता और शिशु का संपूर्ण टीकाकरण भी शिशु को स्वस्थ और सुपोषित रखने में अहम भूमिका निभाता है.

ये भी पढ़ेः बिहार के बोधगया में ग्लोवल लर्निंग सेंटर 'नालंदा इंस्टीट्यूट ऑफ दलाई लामा' की स्थापना

कुपोषण से बचाने के लिए बच्चों को ये खिलाएं-

• 6 महीने से ऊपर उपर के बच्चे को मां के दूध के साथ मसला हुआ भोजन दें

• दिन में 5-6 बार थोड़ा-थोड़ा खिलाएं

• भोजन में पोषण के आवश्यक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आयरन, विटामिन, कैल्सियम कैल्शियम आदि शामिल करें

• हरी साग सब्जियां, मौसमी फल, मांस, मछली, अंडे, बीन्स, दूध, पनीर दाल इत्यादि खिलाएं

• भोजन बनाने और खिलाने से पहले हाथ को अच्छी तरह साफ करें

• स्वच्छ स्वछ पानी का पर्याप्त मात्रा में सेवन कराएं

स्टंटिंग (बौनापन)-
स्टंटिंग या उम्र के अनुसार कम ऊंचाई भोजन में लंबे समय तक आवश्यक पोषक तत्वों तत्त्वों की कमी और बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण होती है.

• स्टंटिंग की समस्या दो साल की उम्र से पहले होती है और इसके प्रभाव काफी हद तक अपरिवर्तनीय होते हैं.

• इसके कारण बच्चों का विकास देर से होता है, बहुत से कार्य में अक्षम होते हैं है और स्कूल में उनका प्रदर्शन खराब होता है.

• वेस्टिंग या उम्र के अनुसार कम वजन पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर का प्रमुख कारण है.

• यह उम्र के अनुरूप पोषक आहार की कमी या किसी घातक बीमारी से हो सकता है.

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