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जिले के सदर अस्पताल में चिकित्सकों का अमानवीय चेहरा हुआ उजागर - bihar news update

बक्सर के सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों का अमानवीय चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है. 55 घंटे तक दौड़-भाग कराने के बावजूद डॉक्टरों ने एक महिला की डिलीवरी नहीं करायी. आखिरकार महिला को निजी अस्पताल ले जाना पड़ा.

बक्सर
सदर अस्पताल
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Published : Apr 9, 2021, 4:45 PM IST

बक्सर: केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के संसदीय क्षेत्र के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल का अमानवीय चेहरा आम लोगों के सामने आया है. महिला चिकित्सक ने प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिला को पहले जांच के नाम पर 55 घंटे तक इधर-उधर भाग-दौड़ कराने के बाद भी डिलीवरी नहीं करायी. उसके परिजोनों को निजी अस्पताल लेकर जाना पड़ा.

ये भी पढ़ें: सीएजी रिपोर्ट में खुलासा, बिहार में एक लाख की आबादी पर मात्र 20 डाॅक्टर-नर्स

मीडियाकर्मीयों को सूचना मिलने पर अस्पताल की खुली नींद
अस्पताल की नींद तब खुली जब इसकी सूचना मीडियाकर्मी को मिली और वे अस्पताल पहुंचे. अस्पताल प्रशासन एवं चिकित्सकों ने उसके बाद प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिला की खोजबीन भी की लेकिन तब तक वह जा चुकी थी.

मीडियाकर्मियों के सवालों के जवाब में अस्पताल के सिविल सर्जन जितेंद्र नाथ ने कहा कि कुछ स्वास्थ्यकर्मियो की इंसानियत मर चुकी है. हालांकि महिला के द्वारा अब तक किसी तरह शिकायत दर्ज नहीं की गई है. फोन के माध्यम से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन परिजनों ने अभी तक कुछ नही बताया है. अस्पताल प्रशासन ने इस मामले की जांच कर कर्रवाई का आश्वासन दिया है.

दूसरी बार जांच करवाने के बावजूद नहीं हुई डिलीवरी
मरीज के परिजनों की मानें, तो जब वो डिलीवरी के लिए महिला को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे तो ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर मधु ने अस्पताल में अल्ट्रासाउंड एवं अन्य जांच की सुविधा उपलब्ध न होने की बात कह कर उसे बाहर भेज दिया.

महिला जब जांच करा कर वापस अस्पताल पहुंची तब तक डॉक्टर मधु की जगह ड्यूटी पर निभा मोहन तैनात थी. निभा मोहन ने महिला को दोबारा जांच कराने के लिए भेज दिया. दूसरी बार जांच कराने के बावजूद डॉक्टर ने दर्द से तड़प रही प्रसूता की डिलीवरी नहीं करवाई. आखिर में परेशान होकर परिजन महिला को लेकर निजी अस्पताल में चले गए.

बक्सर: केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के संसदीय क्षेत्र के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल का अमानवीय चेहरा आम लोगों के सामने आया है. महिला चिकित्सक ने प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिला को पहले जांच के नाम पर 55 घंटे तक इधर-उधर भाग-दौड़ कराने के बाद भी डिलीवरी नहीं करायी. उसके परिजोनों को निजी अस्पताल लेकर जाना पड़ा.

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मीडियाकर्मीयों को सूचना मिलने पर अस्पताल की खुली नींद
अस्पताल की नींद तब खुली जब इसकी सूचना मीडियाकर्मी को मिली और वे अस्पताल पहुंचे. अस्पताल प्रशासन एवं चिकित्सकों ने उसके बाद प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिला की खोजबीन भी की लेकिन तब तक वह जा चुकी थी.

मीडियाकर्मियों के सवालों के जवाब में अस्पताल के सिविल सर्जन जितेंद्र नाथ ने कहा कि कुछ स्वास्थ्यकर्मियो की इंसानियत मर चुकी है. हालांकि महिला के द्वारा अब तक किसी तरह शिकायत दर्ज नहीं की गई है. फोन के माध्यम से भी बात करने की कोशिश की गई लेकिन परिजनों ने अभी तक कुछ नही बताया है. अस्पताल प्रशासन ने इस मामले की जांच कर कर्रवाई का आश्वासन दिया है.

दूसरी बार जांच करवाने के बावजूद नहीं हुई डिलीवरी
मरीज के परिजनों की मानें, तो जब वो डिलीवरी के लिए महिला को लेकर सदर अस्पताल पहुंचे तो ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर मधु ने अस्पताल में अल्ट्रासाउंड एवं अन्य जांच की सुविधा उपलब्ध न होने की बात कह कर उसे बाहर भेज दिया.

महिला जब जांच करा कर वापस अस्पताल पहुंची तब तक डॉक्टर मधु की जगह ड्यूटी पर निभा मोहन तैनात थी. निभा मोहन ने महिला को दोबारा जांच कराने के लिए भेज दिया. दूसरी बार जांच कराने के बावजूद डॉक्टर ने दर्द से तड़प रही प्रसूता की डिलीवरी नहीं करवाई. आखिर में परेशान होकर परिजन महिला को लेकर निजी अस्पताल में चले गए.

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