बक्सरः जिला मुख्यालय से महज दो किलोमीटर दूर स्थित कतकौली मैदान आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहा है. 22 अक्टूबर 1764 में इसी मैदान में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो और नवाबों की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था, लेकिन प्रशासन की लापरवाही और देखरेख के अभाव में आसपास के लोगों ने मैदान में अतिक्रमण कर कब्जा जमा लिया है.
अतिक्रमण की वजह से 50 एकड़ से अधिक में फैला विश्व के मानचित्र पर बक्सर को पहचान दिलाने वाला कतकौली मैदान अब मात्र 2 एकड़ में ही रह गया है. इसके बावजूद इस पर जिला प्रशासन या पर्यटन विभाग कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है.
प्रशासन को नहीं है जानकारी
वहीं, मैदान की बदहाल स्थिति को लेकर जब राज्य सरकार के पर्यटन मंत्री सह बक्सर जिला प्रभारी कृष्ण कुमार ऋषि से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस मैदान के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि मामला संज्ञान में आने के बाद आज ही जिलाधिकारी को इस मैदान की रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया जाएगा. उसके बाद सरकार इसे विकसित करने पर काम करेगी.
मैदान का इतिहास
गौरतलब है कि 22 अक्टूबर 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो और बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब सुजाउदौला और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच इसी मैदान पर युद्ध हुआ था, जिसमें अंग्रेजों की जीत हुई और इसके परिणाम स्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश की दीवानी और राजस्व का अधिकार अंग्रेजों के हाथ में चला गया.
ज्ञान और आध्यात्म की भूमि
ज्ञान और आध्यात्म की भूमि बक्सर बिहार प्रदेश का एक ऐसा जिला है, जो त्रेता युग से लेकर अब तक की स्मृतियों को अपने दामन में समेटे है. इसके बाद भी विभागीय मंत्री को इस ऐतिहासिक मैदान के बारे में कोई जानकारी न होना कई सवाल खड़े करता है.