ETV Bharat / state

पंचकोसी परिक्रमा मेला : विश्व प्रसिद्ध लिट्टी चोखा के साथ आज मेला का होगा समापन

बिहार के बक्सर (Buxar Latest News) जिले प्रसिद्ध पांच दिवसीय पंचकोसी परिक्रमा मेला का समापन (Buxar panchkoshi parikrama mela) आज लिट्टी चोखा महोत्सव के साथ संपन्न हो जाएगा. हांलाकि स्थानीय संत मेले की सरकारी उपेक्षा से नाराज है. पढ़ें पूरी खबर...

बक्सर में पंचकोसी परिक्रमा मेला का अंतिम दिन
बक्सर में पंचकोसी परिक्रमा मेला का अंतिम दिन
author img

By

Published : Nov 28, 2021, 7:56 AM IST

बक्सर: बिहार के बक्सर जिले के पहचान बन चुकी पांच दिवसीय पंचकोसी परिक्रमा मेला का समापन ( Buxar panchkoshi parikrama mela ) आज लिट्टी चोखा महोत्सव के साथ संपन्न होने जा रहा है. वहीं इन सब के बीच आज इस मेला के अंतिम पड़ाव स्थल बक्सर की धरती पर लिट्टी चोखा महोत्सव मना कर इस वर्ष की परिक्रमा यात्रा पूर्ण किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें : पंचकोसी परिक्रमा यात्रा के चौथे दिन उद्दालक ऋषि के आश्रम छोटका उन्नाव पहुंचा श्रद्धालुओं का जत्था

बता दें कि बीते 24 नवंबर से प्रारंभ पांच दिनों तक चलने वाला पंचकोशी परिक्रमा मेला का चरित्रवन में लिट्टी चोखा के भोग के साथ समापन हो रहा है. एक तरफ जहां ठंड होने के बावजूद भी पंचकोसी परिक्रमा मेला में आये श्रद्धालु और संत समाज जहां पांच दिनों तक भक्तिमय माहौल से आनंदित दिखे. वहीं दूसरी तरफ राम के देश में उपेक्षित हो रही राम की निशानी से नाखुश भी नजर आए.

संत गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी ने मेले की सरकारी उपेक्षा पर जतायी नाराजगी

ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने इस बाबत बात स्थानीय संत श्री गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी ( Gangaputra Tridandi Swami ) ने कहा कि बक्सर के इस पंचकोसी परिक्रमा मेला के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब बताई गई है.

'बक्सर की पहचान पंचकोसी परिक्रमा मेला की हर स्तर पर सरकारी उपेक्षा होती रही है. परिक्रमा करने आये श्रद्धालुओं के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं की गई. बात पीने के पानी की हो साफ सफाई की हो या शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है.' :- गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी, स्थानीय संत

ये भी पढ़ें : पंचकोसी परिक्रमा यात्रा: जिस भार्गव ऋषि सरोवर में डुबकी लगाएंगे श्रद्धालु, उसमें भरा है गंदा पानी और जलकुंभी

गौरतलब है कि पंचकोसी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम इनके अनुज लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आये थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण किया. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में अवस्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किये.

इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली पहुंचे, जहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया और उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुआ पकवान खाये. इस यात्रा के दूसरे पड़ाव में नारद मुनि के आश्रम नदवां पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चूड़ा दही, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में खिचड़ी और पांचवें एवं अंतिम पड़ाव चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं

प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है. जिसमें भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने कोने से बक्सर आते हैं. बता दें कि कि इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जिसके रजकण में अनन्त यज्ञ किये गये, जिस धरा पर यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम लक्ष्मण के कदम चले और उनके चरणों की पवित्रता उसमे समाहित हुई. इस मेला के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव और संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोसी यात्रा जो जीव के पांचो तत्वों को पवित्र करती है.

ये भी पढ़ें: धार्मिक और पर्यटन स्थलों की यात्रा के लिए स्पेशल ट्रेन, जान लें IRCTC का ये पैकेज

ऐसी ही विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

बक्सर: बिहार के बक्सर जिले के पहचान बन चुकी पांच दिवसीय पंचकोसी परिक्रमा मेला का समापन ( Buxar panchkoshi parikrama mela ) आज लिट्टी चोखा महोत्सव के साथ संपन्न होने जा रहा है. वहीं इन सब के बीच आज इस मेला के अंतिम पड़ाव स्थल बक्सर की धरती पर लिट्टी चोखा महोत्सव मना कर इस वर्ष की परिक्रमा यात्रा पूर्ण किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें : पंचकोसी परिक्रमा यात्रा के चौथे दिन उद्दालक ऋषि के आश्रम छोटका उन्नाव पहुंचा श्रद्धालुओं का जत्था

बता दें कि बीते 24 नवंबर से प्रारंभ पांच दिनों तक चलने वाला पंचकोशी परिक्रमा मेला का चरित्रवन में लिट्टी चोखा के भोग के साथ समापन हो रहा है. एक तरफ जहां ठंड होने के बावजूद भी पंचकोसी परिक्रमा मेला में आये श्रद्धालु और संत समाज जहां पांच दिनों तक भक्तिमय माहौल से आनंदित दिखे. वहीं दूसरी तरफ राम के देश में उपेक्षित हो रही राम की निशानी से नाखुश भी नजर आए.

संत गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी ने मेले की सरकारी उपेक्षा पर जतायी नाराजगी

ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने इस बाबत बात स्थानीय संत श्री गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी ( Gangaputra Tridandi Swami ) ने कहा कि बक्सर के इस पंचकोसी परिक्रमा मेला के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब बताई गई है.

'बक्सर की पहचान पंचकोसी परिक्रमा मेला की हर स्तर पर सरकारी उपेक्षा होती रही है. परिक्रमा करने आये श्रद्धालुओं के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं की गई. बात पीने के पानी की हो साफ सफाई की हो या शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है.' :- गंगापुत्र त्रिदंडी स्वामी, स्थानीय संत

ये भी पढ़ें : पंचकोसी परिक्रमा यात्रा: जिस भार्गव ऋषि सरोवर में डुबकी लगाएंगे श्रद्धालु, उसमें भरा है गंदा पानी और जलकुंभी

गौरतलब है कि पंचकोसी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम इनके अनुज लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आये थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण किया. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में अवस्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किये.

इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली पहुंचे, जहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया और उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुआ पकवान खाये. इस यात्रा के दूसरे पड़ाव में नारद मुनि के आश्रम नदवां पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चूड़ा दही, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में खिचड़ी और पांचवें एवं अंतिम पड़ाव चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं

प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है. जिसमें भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने कोने से बक्सर आते हैं. बता दें कि कि इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जिसके रजकण में अनन्त यज्ञ किये गये, जिस धरा पर यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम लक्ष्मण के कदम चले और उनके चरणों की पवित्रता उसमे समाहित हुई. इस मेला के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव और संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोसी यात्रा जो जीव के पांचो तत्वों को पवित्र करती है.

ये भी पढ़ें: धार्मिक और पर्यटन स्थलों की यात्रा के लिए स्पेशल ट्रेन, जान लें IRCTC का ये पैकेज

ऐसी ही विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ETV BHARAT APP

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.