बक्सरः कृषि वैज्ञानिकों ने भी स्वीकारा, 'बीमार' है धान की फसल - Agricultural scientists
ईटीवी भारत की खबर पर जिला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने मुहर लगा दी है. उन्होंने कहा है कि जिले में किसानों के धान की फसल वाकई में बीमार है. सितंबर माह में आए शाहीन तूफान के कारण तीन दिनों तक लगातार बारिश हुई थी. कीट पतंगों के बढ़ते प्रकोप ने अंतिम समय में किसानों की उम्मीद पर पानी फेर दिया. फसलों के साथ किसानों के चेहरे भी सूख गए हैं.
बक्सरः 'धान का कटोरा' के नाम से पूरे देश में विख्यात, बिहार के शाहाबाद के 4 जिलों में से एक बक्सर (Farmers of Bihar) के किसानों की परेशानियां शत-प्रतिशत सही हैं. धान की फसल (Unknown Disease In Crops) है. कीटों का प्रकोप बढ़ने से फसलें बर्बाद हो रही हैं. यह कहना है जिला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का. इस बारे में दो दिन पहले 15 अक्टूबर को ईटीवी भारत ने आपको सच से रू-ब-रू कराया था. प्रमुखता से एक खबर प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था 'धान बीमार'. इस खबर पर वैज्ञानिकों ने मुहर लगाते हुए कहा है कि धान वाकई में बीमार है.
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पहले यूरिया की किल्लत, उसके बाद सितंबर महीने में शाहीन तूफान की दस्तक और अब कीट पतंगों के बढ़ते प्रकोप ने खेतों में लगी धान की फसल पर ग्रहण लगा दिया है. जिसके कारण बाली आने से पहले ही खेतों में लगी धान की फसल सूखने लगी है. इससे किसानों के फौलादी हौसले भी टूटने लगे हैं.
मई महीने में आए यास चक्रवात ने खेतों में लगी सैकड़ों एकड़ सब्जी एवं मक्के की फसल को बर्बाद कर दिया था. सैकड़ों किसानों ने मुआवजे के लिए आवेदन भी दिया. लेकिन मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी 5 महीने का समय गुजर गया. मुआवजा अब तक नहीं मिला. किसान सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं. साथ ही अपने भाग्य को कोस भी रहे हैं. अगस्त महीने में बाढ़ आने से 8 प्रखंड के 56 पंचायत के लगभग 8 हजार हेक्टेयर भूमि में लगी धान एवं सब्जी की फसल बर्बाद हो गई. जबकी सितंबर महीने में शाहीन तूफान के दस्तक ने किसानों के कमर को तोड़ कर रख दिया.
90 हजार हेक्टेयर भूमि पर जिले के 1 लाख 42 हजार किसानों ने धान की फसल लगाई है. जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों की धान की फसल रोग से ग्रसित होकर बाली आने से पहले ही सूखने लगी है. ईटीवी भारत के द्वारा सितंबर महीने में इस खबर को प्रमुखता से दिखाया गया था. उसके बाद जिला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों कई गांवों का दौरा कर उपचार का उपाय बताया था. लेकिन 2 से 3 बार दवा का छिड़काव करने के बाद भी बीमारी दूर नही हुई. अब फसल में बाली आने से पहले ही फसल के साथ किसानों की उम्मीद भी सूखने लगी है.
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने ईटीवी भारत के 15 अक्टूबर को प्रकाशित किए गए खबर पर मुहर लगा दिया है. उन्होंने स्वीकार किया कि जिले में धान की फसल बीमारी की चपेट में है. जिले के सभी किसानों तक कृषि वैज्ञानिक अभी नही पहुंच पाए हैं. लेकिन प्रयास जारी है कि किसानों के फसल को नुकसान से बचाया जाए.
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'जिले के किसानों से यह आग्रह है कि वह बिना कृषि वैज्ञानिकों के सलाह के दुकानदारों से दवा ना खरीदें, क्योंकि रोग की पहचान नहीं हो पाई तो दवा फसल के लिए और नुकसानदायक होगा. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के द्वारा नंबर जारी किया गया है. उस नम्बर पर या मेरे नंबर 7903599212 पर फोन करें. फिर कृषि विज्ञान केंद्र में उपस्थित होकर या व्हाट्सएप ग्रुप में भी किसान अपनी समस्याओं को बता सकते हैं. वैज्ञानिक उनके खेतों पर पहुंचकर उनकी समस्याओं को दूर करेंगे.' -डॉ. मांधाता सिंह, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र
'बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने 2014 में ही यह कमिटमेंट किया था कि यदि मेरी सरकार बनी तो किसानों की दशा बदलेंगे. उन्होंने अपने चुनावी वादे को पूरा भी किया. किसानों को खेतों में से उठाकर सड़क पर ला दिया. एनडीए की सरकार किसानों को इतना मजबूर कर देगी कि किसान खुद पुंजिपतियों को अपनी भूमि बेचने के लिए मजबूर हो जाएंगे. हैरानी की बात है कि जिले में किसान परेशान हैं. कृषि विभाग के अधिकारी आदर्श आचार संहिता की दुहाई दे रहे हैं. यह आदर्श आचार संहिता क्यों और किसके लिए बनायी गयी है. इस बात की जानकारी भी विभागीय अधिकारियों को होनी चाहिए. मई महीने में ही जब यास चक्रवात के कारण किसानों की फसल को बर्बाद हुई थी, तो मुख्यमंत्री को मैने पत्र लिखकर अवगत कराया था. मुख्यमंत्री ने उस पत्र का जवाब भी दिया था कि तत्काल मुआवजे की राशि का भुगतान किया जाएगा. लेकिन 5 महीने का समय गुजर गया, अब तक किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया है.' -अजीत कुमार सिंह, भाकपा माले विधायक, डुमराव
गौरतलब है कि साल 2018-19 और 2019-20 में कृषि विभाग के अधिकारियों ने डीलरों की मिलीभगत से 350 क्विंटल अरहर की बीज और 750 क्विंटल ढईचा घास की बीज को बाजार में बेचकर किसानों की फर्जी सूची तैयार कर सरकार को रिपोर्ट भेज दी थी. जिसका खुलासा जब ईटीवी भारत के द्वारा किया गया तो विभाग के वरीय अधिकारी पटना से बक्सर पहुंच मामले की जांच में जुट गए थे.
जांच में पाया गया था कि किसानों को इस योजना का लाभ नहीं दिया गया है. जिले के तत्कालीन उप विकास आयुक्त को इस पूरे मामले की जांच की जिम्मेवारी दी गई. लेकिन 4 साल में भी जांच पूरी नही हुई. जांच करने वाले से लेकर आरोपी सभी अधिकारियों और कर्मचारियों का तबादला हो गया. फाइल भी गुम हो गई. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों को लेकर सरकार कितनी गंभीर है.
नोटः अगर आपके खेत की फसलों में भी इस तरह की बीमारी है, तो आप कृषि वैज्ञानिक डॉ. मांधाता सिंह से मोबाइल नंबर 7903599212 पर संपर्क कर सकते हैं.
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