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Agriculture Sector News: खरीफ फसलों की कब और कैसे करें खेती, जानें कृषि वैज्ञानिक से टिप्स

उत्तम खेती कर कैसे आप अपनी आय बढ़ा सकते हैं? क्या करना चाहिए, कौन सी पद्धति अपनानी चाहिए? खरीफ की फसल की खेती के लिए किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए? इन तमाम सवालों का जवाब दे रहे हैं कृषि विज्ञान केंद्र बक्सर (Krishi Vigyan Kendra Buxar) के कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह.

Agriculture Sector News
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Published : Jul 9, 2021, 5:10 PM IST

बक्सर: किसान जागरूक होकर नई-नई तकनीक आधारित खेती (Agriculture Sector News) कर कम लागत में बेहतर उत्पादन और लाभ कमा सकते हैं. इसके लिए बस कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है. बक्सर के कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक इन सब बातों पर विस्तार से जानकारी (Tips Of Good Farming) देते हुए बता रहे हैं कि कैसे बुआई के समय खास ध्यान रखें और खरीफ के मौसम में अपनी फसलों को कैसे खरपतवार से बचाए.

यह भी पढ़ें- IFFCO द्वारा विकसित नैनो यूरिया लिक्विड की बिहार में लॉन्चिंग, कृषि मंत्री ने दिखाई हरी झंडी

करीब 17 लाख की आबादी वाले बक्सर जिले का मुख्य व्यवसाय कृषि है. कल कारखाने यहां ना के बराबर हैं. यहां की मुख्य फसल धान, गेहूं ,दलहन और मोटे अनाज हैं. खेती की दृष्टि से बक्सर को दो भागों में बांटा जा सकता है. पहला दक्षिणी भाग जहां धान की प्रचुर खेती होती है. बक्सर में 90,000 हेक्टेयर से लेकर 1 लाख हेक्टेयर तक धान की खेती होती है. दूसरा गंगा का तराई क्षेत्र जिसमें दलहन और मोटे अनाज की खेती की जाती है.यहां ढकाईच का क्षेत्र अरहर की दाल के लिए मशहूर रहा है.

धकाईच से अरहर की दाल देश के विभिन्न भागों में निर्यात की जाती थी. लेकिन अब स्थितियां बदल रहीं हैं. किसान अरहर की बुआई कम करने लगें हैं. ऐसे में चूंकि इसी समय खरीफ की फसलों की बुआई होती है. किसान खरीफ की बुआई कैसे करें? उर्वरक कितना हो? बीज कितनी हो? इन सारे सवालों को लेकर ईटीवी भारत पहुंचा कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह के पास.

देखें वीडियो

हिंदू पंचांग के अनुसार यह आषाढ़ का महीना और पुनर्वसु नक्षत्र (Punarvasu Nakshatra) चल रही है और अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें तो जुलाई है. खरीफ की बुआई के लिए आद्रा और पुनर्वसु दो नक्षत्रों को उपयुक्त माना गया है. इसी समय किसान भाई खरीफ की बुआई करते हैं. जिनकों दलहन, ज्वार, बाजरा और मक्का की खेती करनी है वे अच्छे किस्म के बीजों का प्रयोग करें.

कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह का कहना है कि बारिश हो गई है मौसम अनुकूल है. ऐसे में बुआई कर देनी चाहिए. इस समय बुआई होगी तो पौधे का विकास भी अच्छा होगा. बीज गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए. दूसरी बात कि इस समय खेतों में खरपतवार अधिक निकल आतें हैं, इसलिए खरपतवार नाशक का प्रयोग करना लाभदायक होता है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि बुआई करते समय पोषक प्रबंधन (Agriculture Advisory) का ध्यान दिया जाना चाहिए. आम तौर पर किसान इस पर ध्यान नहीं देते हैं. उचित उर्वरक का प्रयोग करते हुए बुआई करनी चाहिए. आगे मांधाता सिंह ने बताया कि चूंकि खरीफ की बुआई बरसात के मौसम में होती है इसलिए कभी कभी अत्यधिक वर्षा के कारण बीज नीचे दब जाती है इसलिए हमेशा थोड़ा अधिक बीज डालकर बुआई करनी चाहिए.

अरहर में अगर 4 से 5 किलोग्राम बीज प्रायः डाला जाता है तो 500 ग्राम अधिक डालना चाहिए. अर्थात 15 से 20 फीसद बीज का अधिक उपयोग करना चाहिए. कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि बक्सर में पहले अरहर की बहुत अधिक खेती होती थी और अरहर की दाल का यहां से निर्यात होता था. अब कई कारणों से इसकी खेती कम होने लगी है. अब मात्र 300 हेक्टेयर के करीब अरहर की खेती गंगा के किनारे वाले क्षेत्रों में हो रही है.

मोटे अनाज में सबसे अधिक खेती बाजरे की होती है. बक्सर में बाजरे की खेती लगभग 5000 हेक्टेयर में होती है. इसके लिए बक्सर ,सिमरी और चक्की प्रखंड प्रमुख हैं. वहीं 2000 हेक्टेयर में मक्का की खेती डुमरांव के क्षेत्रों में होती है.ज्वार की खेती करीब 500 हेक्टेयर में होती है जिसका उपयोग स्थानीय स्तर पर ही पशु चारे के रूप में किया जाता है.

बक्सर: किसान जागरूक होकर नई-नई तकनीक आधारित खेती (Agriculture Sector News) कर कम लागत में बेहतर उत्पादन और लाभ कमा सकते हैं. इसके लिए बस कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है. बक्सर के कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक इन सब बातों पर विस्तार से जानकारी (Tips Of Good Farming) देते हुए बता रहे हैं कि कैसे बुआई के समय खास ध्यान रखें और खरीफ के मौसम में अपनी फसलों को कैसे खरपतवार से बचाए.

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करीब 17 लाख की आबादी वाले बक्सर जिले का मुख्य व्यवसाय कृषि है. कल कारखाने यहां ना के बराबर हैं. यहां की मुख्य फसल धान, गेहूं ,दलहन और मोटे अनाज हैं. खेती की दृष्टि से बक्सर को दो भागों में बांटा जा सकता है. पहला दक्षिणी भाग जहां धान की प्रचुर खेती होती है. बक्सर में 90,000 हेक्टेयर से लेकर 1 लाख हेक्टेयर तक धान की खेती होती है. दूसरा गंगा का तराई क्षेत्र जिसमें दलहन और मोटे अनाज की खेती की जाती है.यहां ढकाईच का क्षेत्र अरहर की दाल के लिए मशहूर रहा है.

धकाईच से अरहर की दाल देश के विभिन्न भागों में निर्यात की जाती थी. लेकिन अब स्थितियां बदल रहीं हैं. किसान अरहर की बुआई कम करने लगें हैं. ऐसे में चूंकि इसी समय खरीफ की फसलों की बुआई होती है. किसान खरीफ की बुआई कैसे करें? उर्वरक कितना हो? बीज कितनी हो? इन सारे सवालों को लेकर ईटीवी भारत पहुंचा कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह के पास.

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हिंदू पंचांग के अनुसार यह आषाढ़ का महीना और पुनर्वसु नक्षत्र (Punarvasu Nakshatra) चल रही है और अंग्रेजी कैलेंडर की बात करें तो जुलाई है. खरीफ की बुआई के लिए आद्रा और पुनर्वसु दो नक्षत्रों को उपयुक्त माना गया है. इसी समय किसान भाई खरीफ की बुआई करते हैं. जिनकों दलहन, ज्वार, बाजरा और मक्का की खेती करनी है वे अच्छे किस्म के बीजों का प्रयोग करें.

कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह का कहना है कि बारिश हो गई है मौसम अनुकूल है. ऐसे में बुआई कर देनी चाहिए. इस समय बुआई होगी तो पौधे का विकास भी अच्छा होगा. बीज गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए. दूसरी बात कि इस समय खेतों में खरपतवार अधिक निकल आतें हैं, इसलिए खरपतवार नाशक का प्रयोग करना लाभदायक होता है.

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि बुआई करते समय पोषक प्रबंधन (Agriculture Advisory) का ध्यान दिया जाना चाहिए. आम तौर पर किसान इस पर ध्यान नहीं देते हैं. उचित उर्वरक का प्रयोग करते हुए बुआई करनी चाहिए. आगे मांधाता सिंह ने बताया कि चूंकि खरीफ की बुआई बरसात के मौसम में होती है इसलिए कभी कभी अत्यधिक वर्षा के कारण बीज नीचे दब जाती है इसलिए हमेशा थोड़ा अधिक बीज डालकर बुआई करनी चाहिए.

अरहर में अगर 4 से 5 किलोग्राम बीज प्रायः डाला जाता है तो 500 ग्राम अधिक डालना चाहिए. अर्थात 15 से 20 फीसद बीज का अधिक उपयोग करना चाहिए. कृषि वैज्ञानिक मांधाता सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि बक्सर में पहले अरहर की बहुत अधिक खेती होती थी और अरहर की दाल का यहां से निर्यात होता था. अब कई कारणों से इसकी खेती कम होने लगी है. अब मात्र 300 हेक्टेयर के करीब अरहर की खेती गंगा के किनारे वाले क्षेत्रों में हो रही है.

मोटे अनाज में सबसे अधिक खेती बाजरे की होती है. बक्सर में बाजरे की खेती लगभग 5000 हेक्टेयर में होती है. इसके लिए बक्सर ,सिमरी और चक्की प्रखंड प्रमुख हैं. वहीं 2000 हेक्टेयर में मक्का की खेती डुमरांव के क्षेत्रों में होती है.ज्वार की खेती करीब 500 हेक्टेयर में होती है जिसका उपयोग स्थानीय स्तर पर ही पशु चारे के रूप में किया जाता है.

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