औरंगाबाद: जिले में चाइल्ड साइंटिस्ट के नाम से फेमस विनीत कुमार ने प्लास्टिक से पेट्रोल के बाद एक और आविष्कार किया है. इस बार विनीत ने ऐसी मशीन बनाई है, जो कोविड-19 महामारी से बचने के लिए प्रयोग में लायी जा सकती है. विनीत ने महज 1 हजार रुपये की लागत से इसका आविष्कार किया है. मशीन पूरी तरह ऑटोमेटिक है.
औरंगाबाद सदर प्रखंड के देवहरा गांव के रहने वाले विनीत कुमार ने इस बार 12वीं की परीक्षा पास की है. कोरोना वायरस को लेकर विनीत ने दरवाजे पर लगाने वाली एक ऐसी ऑटोमेटिक मशीन बनाई है, जिससे गुजरते ही आप खुद-ब-खुद सैनिटाइज हो जाएंगे. विनीत बताते हैं कि मशीन में कुल खर्च उसमें लगाए गए सिस्टम और मशीन मिलाकर एक हजार रुपया आया है. मशीन में 120 रुपये का सेंसर लगाया गया है.
कैसे काम करता है मशीन
विनीत ने इस मशीन का नाम विनीत इन्वेंशन वर्ल्ड रखा है. इस मशीन के चारों तरफ पाइप लगाये गए हैं. पाइप के सहारे इसे स्प्रेयर मोटर से कनेक्ट किया गया है. इस स्प्रेयर मोटर को 12 वोल्ट डीसी कनेक्शन से ऑपरेट किया जाता है. इसे बिजली और सोलर पैनल दोनों से चलाया जा सकता है. इस मशीन में लगाए गए सेंसर आहट पाते ही मशीन को चलाने लगते हैं.
प्लास्टिक से बना चुका पेट्रोल
इससे पहले विनीत प्लास्टिक के कचरे से पेट्रोल का निर्माण कर चुका है. इस पेट्रोल को विनीत ने देश-विदेश में प्रदर्शित भी किया और कई पुरस्कार भी जीते. इससे खुश होकर खनन मंत्री बृजकिशोर बिंद ने विनीत को पुरस्कृत भी किया था.
सरकारी मदद की आवश्यकता
विनीत के पिताजी धनेश प्रजापति जो एक फुटपाथ पर अपनी दुकान लगाकर गैस चूल्हा ठीक करने का काम करते हैं. वो अपनी सीमित आमदनी से उसे पढ़ा रहे हैं और इन्वेंशन के लिए फंड भी उपलब्ध कराते रहते हैं. धनेश प्रजापति का कहना है कि विनीत को मंत्री जी ने पुरस्कार की घोषणा तो की थी लेकिन जिला प्रशासन ने अभी तक एक लाख रुपये की राशि खाते में नहीं भेजी है.
ग्रामीण हैं खुश
विनीत के इन्वेंशन से ग्रामीण खुश हैं. उन्हें विनीत और उसकी टीम पर गर्व है. ग्रामीण अशोक कुमार चौधरी कहते हैं कि विनीत गांव में रहकर भी इस तरह का आविष्कार कर रहा है. इसे जरूर सरकारी सहायता मिलनी चाहिए. इस आविष्कार का जिला प्रशासन को प्रयोग में लाना चाहिए. इससे कोरोना के बचाव हो सकेगा. विनीत की टीम में अभिषेक, हर्ष पाठक, राकेश रंजन, ऋषभ और श्रेयश, दिवाकर पांडेय, नेहा और श्रुति शामिल हैं.
विनीत जैसे सैकड़ों प्रतिभाएं भारत देश में गरीबी के गुमनामी में गुम हो जाती हैं. विनीत के पिता धनेश प्रजापति अपना सब कुछ दांव पर लगाकर विनीत को फंड उपलब्ध कराते रहते हैं. लेकिन सरकार को ऐसे प्रतिभाशाली छात्रों की ओर ध्यान देने और उनके हुनर को प्रयोग में लाना चाहिए.