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औरंगाबाद: सरकार से नहीं मिली मदद तो ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से बनाया बांध - बरसाती नदी

औरंगाबाद में सरकार से मदद नहीं मिलने पर ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से बांध बना लिया. इससे अब 10 हजार किसान सिंचाई कर रहे हैं.

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Published : Apr 12, 2020, 12:35 AM IST

औरंगाबाद: जिले के देव प्रखंड और गया जिले के डुमरिया प्रखंड के लगभग 100 गांव में पानी नहीं रहने के कारण लगभग 25 हजार एकड़ से अधिक जमीन बंजर पड़ी रहती थी. आखिरकार सरकार का इंतजार करने के बाद ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से पहाड़ को काटकर बांध बना दिया और उस से 2 किलोमीटर लंबी नहर भी निकाल दी. बांध की स्थिति यह है कि गर्मियों के समय भी वहां पानी भरा रहता है. वहीं अब 10 हजार किसान इस नहर से सिंचाई कर रहे हैं.

आपसी सहयोग से बनाया बांध
इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी कर सकता है. ऐसा ही कुछ 2011 में हुआ था. बिहार के औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के बूढ़ा-बूढ़ी बांध के पास जहां देव प्रखंड और गया जिले के डुमरिया प्रखंड के लगभग 100 गांव के 25 हजार एकड़ से अधिक जमीन थी. पानी के अभाव में यह बंजर पड़ा रहता था. उस जगह पर एक बरसाती नदी बहती थी, जिसे रामरेखा नदी के नाम से जाना जाता है.

जिसका पानी गर्मी के दिनों में सूख जाता था. ग्रामीणों ने आपसी सहयोग, चंदा और श्रमदान कर वहां पर बांध निर्माण का कार्य शुरू कर दिया. बांध निर्माण के कार्य शुरू करने के साथ ही आखिरकार उन्हें गोकुल सेना नाम के एक संगठन का साथ मिला और उनके द्वारा मंगाए गए फंड और किसानों की ओर से दिए गए चंदा से लगभग एक करोड़ रुपये से इस बांध को सुचारू रूप से तैयार कर दिया गया.

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औरंगाबाद का बूढ़ा-बूढ़ी बांध

बांध से बनाई 2 किलोमीटर लंबी नहर
इस बांध से 2 किलोमीटर लंबी नहर भी निकाली गई. जिसमें पानी रहता है. इसका परिणाम यह हुआ कि ना सिर्फ औरंगाबाद जिले बल्कि गया जिले के डुमरिया प्रखंड के कई गांव के किसान अपनी जमीन को सिंचित करने लगे. सिंचित करने का परिणाम यह रहा कि उनकी जमीन की उपज भी काफी बढ़ गई.

स्थानीय निवासी और दुलारे पंचायत के पैक्स अध्यक्ष बिजेंद्र कुमार यादव ने बताया कि यहां के किसान 1952 से ही सरकार से बांध बनाकर नहर निकालने की मांग कर रहे थे. लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्य नहीं किया जा रहा था. धीरे-धीरे ग्रामीणों और गोकुल परिवार ने लोगों से बात करने के बाद आपस में ही चंदा किया. जो चंदा देने की स्थिति में नहीं थे, उन्होंने श्रमदान कर अपना सहयोग दिया. इसके बाद उन्हें मुंबई की एक फर्म की ओर से भी आर्थिक सहायता मिली. जिसके बाद इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाया गया.

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बांध से बनाई 2 किलोमीटर लंबी नहर

अति नक्सल प्रभावित है क्षेत्र
यह बांध पूरी तरह से जंगल के बीचो-बीच अवस्थित है. यह क्षेत्र अति नक्सल प्रभावित है. लेकिन बांध बनाने के कार्य में नक्सलियों ने किसी तरह का कोई विरोध या अड़चन नहीं डाला. इस तरह काम सुचारू रूप से चलता रहा. जब इसे नहर से सिंचाई होने लगी तो सरकार की नींद खुली. जिसके बाद सरकार आसपास पानी निकालने का काम शुरू कर रही है.

औरंगाबाद: जिले के देव प्रखंड और गया जिले के डुमरिया प्रखंड के लगभग 100 गांव में पानी नहीं रहने के कारण लगभग 25 हजार एकड़ से अधिक जमीन बंजर पड़ी रहती थी. आखिरकार सरकार का इंतजार करने के बाद ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से पहाड़ को काटकर बांध बना दिया और उस से 2 किलोमीटर लंबी नहर भी निकाल दी. बांध की स्थिति यह है कि गर्मियों के समय भी वहां पानी भरा रहता है. वहीं अब 10 हजार किसान इस नहर से सिंचाई कर रहे हैं.

आपसी सहयोग से बनाया बांध
इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी कर सकता है. ऐसा ही कुछ 2011 में हुआ था. बिहार के औरंगाबाद जिले के देव प्रखंड के बूढ़ा-बूढ़ी बांध के पास जहां देव प्रखंड और गया जिले के डुमरिया प्रखंड के लगभग 100 गांव के 25 हजार एकड़ से अधिक जमीन थी. पानी के अभाव में यह बंजर पड़ा रहता था. उस जगह पर एक बरसाती नदी बहती थी, जिसे रामरेखा नदी के नाम से जाना जाता है.

जिसका पानी गर्मी के दिनों में सूख जाता था. ग्रामीणों ने आपसी सहयोग, चंदा और श्रमदान कर वहां पर बांध निर्माण का कार्य शुरू कर दिया. बांध निर्माण के कार्य शुरू करने के साथ ही आखिरकार उन्हें गोकुल सेना नाम के एक संगठन का साथ मिला और उनके द्वारा मंगाए गए फंड और किसानों की ओर से दिए गए चंदा से लगभग एक करोड़ रुपये से इस बांध को सुचारू रूप से तैयार कर दिया गया.

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औरंगाबाद का बूढ़ा-बूढ़ी बांध

बांध से बनाई 2 किलोमीटर लंबी नहर
इस बांध से 2 किलोमीटर लंबी नहर भी निकाली गई. जिसमें पानी रहता है. इसका परिणाम यह हुआ कि ना सिर्फ औरंगाबाद जिले बल्कि गया जिले के डुमरिया प्रखंड के कई गांव के किसान अपनी जमीन को सिंचित करने लगे. सिंचित करने का परिणाम यह रहा कि उनकी जमीन की उपज भी काफी बढ़ गई.

स्थानीय निवासी और दुलारे पंचायत के पैक्स अध्यक्ष बिजेंद्र कुमार यादव ने बताया कि यहां के किसान 1952 से ही सरकार से बांध बनाकर नहर निकालने की मांग कर रहे थे. लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्य नहीं किया जा रहा था. धीरे-धीरे ग्रामीणों और गोकुल परिवार ने लोगों से बात करने के बाद आपस में ही चंदा किया. जो चंदा देने की स्थिति में नहीं थे, उन्होंने श्रमदान कर अपना सहयोग दिया. इसके बाद उन्हें मुंबई की एक फर्म की ओर से भी आर्थिक सहायता मिली. जिसके बाद इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाया गया.

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बांध से बनाई 2 किलोमीटर लंबी नहर

अति नक्सल प्रभावित है क्षेत्र
यह बांध पूरी तरह से जंगल के बीचो-बीच अवस्थित है. यह क्षेत्र अति नक्सल प्रभावित है. लेकिन बांध बनाने के कार्य में नक्सलियों ने किसी तरह का कोई विरोध या अड़चन नहीं डाला. इस तरह काम सुचारू रूप से चलता रहा. जब इसे नहर से सिंचाई होने लगी तो सरकार की नींद खुली. जिसके बाद सरकार आसपास पानी निकालने का काम शुरू कर रही है.

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