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बारुण नरेश केशव सिंह के दो पोते मैदान में, गोह में RJD से भीम सिंह और JDU ने ओबरा से सुनील सिंह को दिया टिकट - जेडीयू प्रत्याशी सुनील सिंह

जिले की राजनीति में बारुण इस बार हॉट सीट बना हुआ है. दरअसल बारुण नरेश कहे जाने वाले स्वर्गीय केशव बाबू के दो पोते इन दिनों दो प्रमुख दलों के लिए अर्जुन साबित हो रहे हैं. एक तरफ 5 चुनाव से लगातार हार रहे गोह विधानसभा को जीतने के लिए भीम सिंह को राष्ट्रीय जनता दल ने उम्मीदवार बनाया है. वहीं, ओबरा विधानसभा क्षेत्र से कभी न जीतने वाली जनता दल यूनाइटेड ने बाबू केशव सिंह के दूसरे पुत्र सुनील सिंह पर दांव लगाया है.

औरंगाबाद
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Published : Oct 8, 2020, 10:57 PM IST

औरंगाबादः जिले के बारुण प्रखंड नवीनगर विधानसभा में आता है. यहां के केशव सिंह का घराना शुरू से ही जिले की राजनीति का केंद्र रहा है. केशव सिंह 1952 में गया जिला के जिला परिषद के उपाध्यक्ष चुने गए थे. केशव सिंह के पुत्र पूर्व विधायक नारायण सिंह कांग्रेस से ओबरा से विधायक चुने गए थे. उनके पोता भीम सिंह 2000 और 2005(फरवरी) में नवीनगर से विधायक चुने गए थे. यह घराना एक बार फिर चर्चा में है. इस बार चर्चा का कारण है दो प्रतिद्वंद्वी पार्टियों से इनके दो पोते चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों का क्षेत्र अलग-अलग है. सबसे खास बात ये है कि ये दोनों ही अपने गृह क्षेत्र के बदले दूसरे क्षेत्र से लड़ रहे हैं.

कौन हैं केशव सिंह?
बाबू केशव सिंह का नाम पुराने गया जिले(आज के गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल) में आदर के साथ लिया जाता है. वे समाज सुधारक थे और सोशलिस्ट पार्टी के कद्दावर नेता थे. 1952 में वे गया जिला के जिला परिषद उपाध्यक्ष के पद पर चुने गए थे. बाद में घर में घुस कर उनकी हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या के बाद उनके बड़े बेटे नारायण सिंह ने विरासत संभाली और ओबरा से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए. इनके छोटे बेटे देवा सिंह रेलवे में डीएसपी थे. रिटायरमेंट के बाद वे भी राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे. साल 2000 में जब नारायण सिंह के बेटे भीम सिंह राजद के टिकट पर विधायक चुने गए तो 2001 में देवा सिंह के दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़े पुत्र सुनील सिंह ने जिला परिषद का चुनाव जीता.

गोह सीट से आरजेडी प्रत्याशी भीम सिंह
गोह सीट से आरजेडी प्रत्याशी भीम सिंह

परिवार में फूट का कारण
परिवार में फूट साल 2000 में केशव सिंह के बड़े बेटे नारायण सिंह के पुत्र भीम कुमार सिंह को विधायक चुने जाने के बाद केशव सिंह के छोटे बेटे देवा सिंह ने भी अपने बेटे को विधायक बनाने की कोशिश शुरू कर दी. 2005 के चुनाव में नवीनगर से भीम सिंह की उम्मीदवारी थी तो ओबरा विधानसभा से सुनील सिंह ने राजद में दावेदारी पेश की. लेकिन राजद में सुनील सिंह की बात नहीं बनी और उनकी जगह सत्यनारायण सिंह को राजद ने सिंबल दे दिया. इससे आहत होकर सुनील सिंह जदयू के टिकट पर रफीगंज से विधानसभा का चुनाव लड़ा और मामूली अंतर से राजद प्रत्याशी से चुनाव हार गए. तभी से दोनों भाइयों की रास्ते अलग हो गए.

ओबरा सीट से जेडीयू प्रत्याशी सुनील सिंह
ओबरा सीट से जेडीयू प्रत्याशी सुनील सिंह

नीतीश कुमार के करीबी है सुनील सिंह
एक भाई राजद तो दूसरे भाई जदयू की राजनीति करने लगे. बाद में सुनील सिंह की जदयू में प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब कभी इस क्षेत्र में दौरे को आते तो विश्राम बारुण स्थित उन्हीं के घर में करते. जदयू प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं. सुनील सिंह बाबू केशव सिंह के पोते दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त सुनील सिंह वर्तमान में जनता दल यूनाइटेड के प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं. बीच में कई ऐसे मौके आए जब लगा कि सुनील सिंह को नीतीश कुमार एमएलसी बनाकर अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर सकते हैं. लोकसभा चुनाव में भी चर्चा चली थी कि काराकाट से नीतीश कुमार उन्हें उम्मीदवार बना सकते हैं. लेकिन 2005 में राजद के सामने ओबरा से लड़ने की जाहिर किए गए ख्वाहिश को आखिरकार नीतीश ने 2020 में पूरा किया और वे ओबरा विधानसभा से जदयू के प्रत्याशी के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ कांति सिंह के बेटे और राजद उम्मीदवार ऋषि कुमार को चुनौती देंगे. नवीनगर से दो बार विधायक रह चुके हैं. भीम सिंह बाबू केशव सिंह के पुत्र और पूर्व विधायक नारायण सिंह के बेटे भीम कुमार सिंह नवीनगर विधानसभा से दो बार विधायक चुने जा चुके हैं. वे साल 2000 और 2005(फरवरी) में राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. इस बार राष्ट्रीय जनता दल ने गोह विधानसभा से उन्हें उम्मीदवार बनाया है. गोह विधानसभा में पिछले 5 चुनाव से लगातार महागठबंधन को पराजय का सामना करना पड़ रहा है. जिस कारण राजद ने इस सीट को जीतने की चुनौती भीम सिंह को सौंपी है.

देखें वीडियो

मैदान में केशव सिंह के दोनों पोते
बाबू केशव सिंह के दोनों पोते भीम सिंह और सुनील सिंह बिहार के दोनों प्रमुख दलों के लिए योद्धा साबित हो रहे हैं. एक ओर जहां एनडीए के गढ़ को तोड़ने के लिए राष्ट्रीय जनता दल ने भीम सिंह पर दांव खेला है. वहीं ओबरा से महागठबंधन के गढ़ तोड़ने के लिए जनता दल यूनाइटेड ने सुनील सिंह को रवाना किया है. इन दोनों चुनाव क्षेत्रों से कोई भी जीते या कोई भी हारे लेकिन दोनों भाइयों ने मुकाबले को रोचक बना दिया है.

औरंगाबादः जिले के बारुण प्रखंड नवीनगर विधानसभा में आता है. यहां के केशव सिंह का घराना शुरू से ही जिले की राजनीति का केंद्र रहा है. केशव सिंह 1952 में गया जिला के जिला परिषद के उपाध्यक्ष चुने गए थे. केशव सिंह के पुत्र पूर्व विधायक नारायण सिंह कांग्रेस से ओबरा से विधायक चुने गए थे. उनके पोता भीम सिंह 2000 और 2005(फरवरी) में नवीनगर से विधायक चुने गए थे. यह घराना एक बार फिर चर्चा में है. इस बार चर्चा का कारण है दो प्रतिद्वंद्वी पार्टियों से इनके दो पोते चुनाव लड़ रहे हैं. दोनों का क्षेत्र अलग-अलग है. सबसे खास बात ये है कि ये दोनों ही अपने गृह क्षेत्र के बदले दूसरे क्षेत्र से लड़ रहे हैं.

कौन हैं केशव सिंह?
बाबू केशव सिंह का नाम पुराने गया जिले(आज के गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद और अरवल) में आदर के साथ लिया जाता है. वे समाज सुधारक थे और सोशलिस्ट पार्टी के कद्दावर नेता थे. 1952 में वे गया जिला के जिला परिषद उपाध्यक्ष के पद पर चुने गए थे. बाद में घर में घुस कर उनकी हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या के बाद उनके बड़े बेटे नारायण सिंह ने विरासत संभाली और ओबरा से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए. इनके छोटे बेटे देवा सिंह रेलवे में डीएसपी थे. रिटायरमेंट के बाद वे भी राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे. साल 2000 में जब नारायण सिंह के बेटे भीम सिंह राजद के टिकट पर विधायक चुने गए तो 2001 में देवा सिंह के दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़े पुत्र सुनील सिंह ने जिला परिषद का चुनाव जीता.

गोह सीट से आरजेडी प्रत्याशी भीम सिंह
गोह सीट से आरजेडी प्रत्याशी भीम सिंह

परिवार में फूट का कारण
परिवार में फूट साल 2000 में केशव सिंह के बड़े बेटे नारायण सिंह के पुत्र भीम कुमार सिंह को विधायक चुने जाने के बाद केशव सिंह के छोटे बेटे देवा सिंह ने भी अपने बेटे को विधायक बनाने की कोशिश शुरू कर दी. 2005 के चुनाव में नवीनगर से भीम सिंह की उम्मीदवारी थी तो ओबरा विधानसभा से सुनील सिंह ने राजद में दावेदारी पेश की. लेकिन राजद में सुनील सिंह की बात नहीं बनी और उनकी जगह सत्यनारायण सिंह को राजद ने सिंबल दे दिया. इससे आहत होकर सुनील सिंह जदयू के टिकट पर रफीगंज से विधानसभा का चुनाव लड़ा और मामूली अंतर से राजद प्रत्याशी से चुनाव हार गए. तभी से दोनों भाइयों की रास्ते अलग हो गए.

ओबरा सीट से जेडीयू प्रत्याशी सुनील सिंह
ओबरा सीट से जेडीयू प्रत्याशी सुनील सिंह

नीतीश कुमार के करीबी है सुनील सिंह
एक भाई राजद तो दूसरे भाई जदयू की राजनीति करने लगे. बाद में सुनील सिंह की जदयू में प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब कभी इस क्षेत्र में दौरे को आते तो विश्राम बारुण स्थित उन्हीं के घर में करते. जदयू प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं. सुनील सिंह बाबू केशव सिंह के पोते दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त सुनील सिंह वर्तमान में जनता दल यूनाइटेड के प्रशिक्षण प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष हैं. बीच में कई ऐसे मौके आए जब लगा कि सुनील सिंह को नीतीश कुमार एमएलसी बनाकर अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर सकते हैं. लोकसभा चुनाव में भी चर्चा चली थी कि काराकाट से नीतीश कुमार उन्हें उम्मीदवार बना सकते हैं. लेकिन 2005 में राजद के सामने ओबरा से लड़ने की जाहिर किए गए ख्वाहिश को आखिरकार नीतीश ने 2020 में पूरा किया और वे ओबरा विधानसभा से जदयू के प्रत्याशी के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ कांति सिंह के बेटे और राजद उम्मीदवार ऋषि कुमार को चुनौती देंगे. नवीनगर से दो बार विधायक रह चुके हैं. भीम सिंह बाबू केशव सिंह के पुत्र और पूर्व विधायक नारायण सिंह के बेटे भीम कुमार सिंह नवीनगर विधानसभा से दो बार विधायक चुने जा चुके हैं. वे साल 2000 और 2005(फरवरी) में राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. इस बार राष्ट्रीय जनता दल ने गोह विधानसभा से उन्हें उम्मीदवार बनाया है. गोह विधानसभा में पिछले 5 चुनाव से लगातार महागठबंधन को पराजय का सामना करना पड़ रहा है. जिस कारण राजद ने इस सीट को जीतने की चुनौती भीम सिंह को सौंपी है.

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मैदान में केशव सिंह के दोनों पोते
बाबू केशव सिंह के दोनों पोते भीम सिंह और सुनील सिंह बिहार के दोनों प्रमुख दलों के लिए योद्धा साबित हो रहे हैं. एक ओर जहां एनडीए के गढ़ को तोड़ने के लिए राष्ट्रीय जनता दल ने भीम सिंह पर दांव खेला है. वहीं ओबरा से महागठबंधन के गढ़ तोड़ने के लिए जनता दल यूनाइटेड ने सुनील सिंह को रवाना किया है. इन दोनों चुनाव क्षेत्रों से कोई भी जीते या कोई भी हारे लेकिन दोनों भाइयों ने मुकाबले को रोचक बना दिया है.

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