औरंगाबाद: आज चुनाव भले ही धनबल, बाहुबल, दिखावा और स्टेटस का सिंबल बन कर रह गया हो. लेकिन बिहार की धरती पर एक से बढ़कर एक ऐसे ईमानदार राजनीति के सितारे मौजूद हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी शालीनता और सादगी को नहीं छोड़ा और वे जीवन प्रयन्त गांधीवादी विचारों में लीन रहे.
ऐसी ही एक कहानी है, नवीनगर विधानसभा क्षेत्र से 15 वर्षों तक लगातार विधायक रहे रघुवंश प्रसाद सिंह का, जिन्होंने ना कभी बॉडीगार्ड लिया और ना ही कभी वाहन खरीदी.
एक तरफ जहां ग्राम पंचायत के मुखिया बनने के बाद लोग स्टेटस के लिए मरे जाते हैं. भूतपूर्व होने के बाद भी वाहनों पर मुखिया पूर्व मुखिया आदि लिखवा कर चलते हैं. हथियार बंद अंगरक्षक उनकी शोभा बढ़ाते हैं. वहीं दूसरी तरफ सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले नवीनगर विधानसभा के पूर्व विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह ने जीवन में कभी भी न वाहन खरीदा और न ही बॉडीगार्ड रखा. उनका मानना है कि जीवन में इन चीजों की आवश्यकता तो है लेकिन अनिवार्यता नहीं है. इनके बगैर भी जीवन जिया जा सकता है.
1980 से 1995 तक रहे विधायक
रघुवंश प्रसाद सिंह कांग्रेस के टिकट पर पहली बार 1980 में विधायक चुने गए थे. उसके बाद लगातार तीन बार नवीनगर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1995 में कांग्रेस से जगन्नाथ मिश्रा के अलग होने के बाद वे भी जगन्नाथ मिश्रा के साथ हो लिए और उन्हीं की पार्टी बिहार जन कांग्रेस से चुनाव लड़ा और चुनाव हार गए. 1995 के चुनाव हारने के बाद से ही रघुवंश प्रसाद सिंह ने राजनीति से संयास ले लिया और अब एक गुमनाम जीवन औरंगाबाद शहर में बिता रहे हैं.
औरंगाबाद में जी रहे हैं सामान्य जीवन
पूर्व विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह अब औरंगाबाद में बिल्कुल सामान्य नागरिक की तरह जीवन जी रहे हैं. वे अब धर्म-कर्म में लीन हो गए हैं और किसी धार्मिक गुरु से दीक्षा लेकर अपने हम उम्र बुजुर्गों के बीच रहकर खुशी से जीवन यापन कर रहे हैं. उनका जीवन बहुत ही सामान्य और सादा है. जब हम उनसे मिले तो वे औरंगाबाद महाराजगंज रोड में एक दुकान के बाहर बैठे हुए थे और ऐसा कोई दिखावा नहीं था जिससे लगे कि यह शख्स कभी 15 वर्षों तक लगातार विधायक रहे हैं.
किराये की जीप के सहारे बने तीन बार विधायक
पूर्व विधायक रघुवंश सिंह ने बताया कि उनके समय में धनबल का वर्चस्व नहीं था. पहली बार विधायक का चुनाव लड़े थे तो उनके पास सिर्फ एक मोटरसाइकिल थी और उसी से वे पहला चुनाव लड़े थे. दूसरे और तीसरे चुनाव में उन्होंने किराए पर एक जीप ली थी और इस तरह से किराए की जीप से ही उन्होंने दूसरा और तीसरा चुनाव भी निकाल लिया था.
जाति का नहीं था भेद
पूर्व विधायक ने अपने चुनाव समय को याद करते हुए बताया कि उनके समय में जाति पाती का भेद इस स्तर पर नहीं था कि लोग चुनाव में उसको भुनाने का प्रयास करते. चुनाव पूरी तरह से उम्मीदवार को देख कर होती थी. उम्मीदवारों की जाति नहीं देखी जाती थी. उन्होंने बताया कि उनके जमाने के चुनाव और आज के जमाने के चुनाव में फर्क आ गया है. पहले चुनाव लोग 1 लाख रुपए के अंदर ही खर्च कर जीत जाते थे. जनता खुद प्रत्याशियों के खाने और ठहरने की व्यवस्था करती थी.
प्रत्याशियों के साथ चल रहे कार्यकर्ताओं के खाने और ठहरने की व्यवस्था भी ग्रामीण जनता ही करती थी. कार्यकर्ता भी निशुल्क मदद करते थे और उम्मीदवार के साथ अपने खुद के खर्चे पर घूमते थे. उन्हें किसी तरह का दैनिक भत्ता नहीं देना पड़ता था. आज तो एक चुनाव लड़ने में लाखों की कौन कहे करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं.
बिना बॉडीगार्ड के रहे हमेशा
पूर्व विधायक रघुवंश प्रसाद सिंह हमेशा बिना बॉडीगार्ड के रहे हैं. जब वे विधायक थे तब भी वो बॉडीगार्ड् नहीं रखते थे. एक बार लालू प्रसाद यादव ने इनको जबरदस्ती बॉडीगार्ड दे दिया. पूर्व विधायक ने बॉडीगार्ड तो रखा लेकिन उसके हथियार को जमा करवा दिया. इस तरह से वे हमेशा सादगी पसंद और ताम झाम से दूर जीवन पर्यंत रहे. वे हथियारबन्द अंगरक्षक को झंझट मानते थे और अक्सर कहते थे कि ऐसा झंझट कौन पाले.
रघुवंश प्रसाद सिंह आज 83 वर्ष के हो गए हैं लेकिन वह आज भी भजन कीर्तन के अलावे अपने रोजमर्रा के कार्य भी खुद ही करते हैं. आज भी वे ज्यादातर दूरी पैदल ही तय करते हैं और किसी तरह का कोई तामझाम नहीं रखते हैं.