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अतिप्राचीन है इस मेले का इतिहास, हर साल लगता है 3 दिवसीय वसंत मेला

बनिया ग्राम पंचायत के उपमुखिया सरोज कुमार बताते हैं कि लोगों का अनुमान है कि यह मेला लगभग ढाई हजार साल पहले से लग रहा है. आज भी इस मेले में पारंपरिक खासियत कायम है. आज भी यहां लाठी बिकता है.

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Published : Feb 1, 2020, 11:11 AM IST

Updated : Feb 1, 2020, 12:23 PM IST

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औरंगाबाद: जिले के मदनपुर प्रखंड के उमगा पहाड़ी पर भगवान सूर्य का प्राचीन मंदिर है. बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग ढाई हजार साल पुरानी है. उसी समय से इस पहाड़ी पर बसंत पंचमी के अवसर पर मेले का भी प्रचलन है. वैसे तो यह मेला तीन दिवसीय होता है, लेकिन एक हफ्ते तक मेले की सरगर्मी बनी रहती है.

अति प्राचीन है यह मेला
उमगा की पहाड़ी में छोटे-बड़े लगभग 52 मंदिर हैं. लेकिन, उनमें एक ही मंदिर प्रमुख है, जो अति प्राचीन है. बताया जाता है कि यह मंदिर ढाई हजार साल पुरानी है, जिसे विभिन्न काल खंडों में विभिन्न आकार दिया गया. मंदिर के समय से ही यहां मेले की परंपरा है. यह मेला वसंत ऋतु और सरस्वती पूजा की शुरुआत से 3 दिनों तक चलता है.

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उमगा पहाड़ी पर स्थित सूर्य मंदिर

झारखण्ड से भी आते हैं श्रद्धालु
उमगा पहाड़ी पर लगने वाले वसंत मेले में प्रदेश के रोहतास, गया, अरवल और जहानाबाद सहित झारखण्ड के चतरा, हजारीबाग, पलामू और कोडरमा जिले से भी
लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

पेश है रिपोर्ट

प्राचीन है मेले की परंपरा
बनिया ग्राम पंचायत के उपमुखिया सरोज कुमार बताते हैं कि लोगों का अनुमान है कि यह मेला लगभग ढाई हजार साल पहले से लग रहा है. आज भी इस मेले में पारंपरिक खासियत कायम है. आज भी यहां लाठी बिकता है.

यह भी पढ़ें- रोहतास: ड्रिप इरिगेशन से टमाटर की खेती कर लाखों कमा रहे किसान

रहती है सरकारी उदासीनता
बिहार सरकार भले ही यहां उमगा महोत्सव पर लाखों रुपए खर्च करती है. लेकिन, महत्वपूर्ण समय में सरकारी उदासीनता देखने को मिल ही जाती है. मेले के दौरान पहाड़ी के आसपास कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं की गई थी. इस कारण श्रद्धालु प्यास से इधर-उधर भटकते देखे गए. हालांकि, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. जगह-जगह पुलिस बल तैनात किया गया था.

औरंगाबाद: जिले के मदनपुर प्रखंड के उमगा पहाड़ी पर भगवान सूर्य का प्राचीन मंदिर है. बताया जाता है कि यह मंदिर लगभग ढाई हजार साल पुरानी है. उसी समय से इस पहाड़ी पर बसंत पंचमी के अवसर पर मेले का भी प्रचलन है. वैसे तो यह मेला तीन दिवसीय होता है, लेकिन एक हफ्ते तक मेले की सरगर्मी बनी रहती है.

अति प्राचीन है यह मेला
उमगा की पहाड़ी में छोटे-बड़े लगभग 52 मंदिर हैं. लेकिन, उनमें एक ही मंदिर प्रमुख है, जो अति प्राचीन है. बताया जाता है कि यह मंदिर ढाई हजार साल पुरानी है, जिसे विभिन्न काल खंडों में विभिन्न आकार दिया गया. मंदिर के समय से ही यहां मेले की परंपरा है. यह मेला वसंत ऋतु और सरस्वती पूजा की शुरुआत से 3 दिनों तक चलता है.

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उमगा पहाड़ी पर स्थित सूर्य मंदिर

झारखण्ड से भी आते हैं श्रद्धालु
उमगा पहाड़ी पर लगने वाले वसंत मेले में प्रदेश के रोहतास, गया, अरवल और जहानाबाद सहित झारखण्ड के चतरा, हजारीबाग, पलामू और कोडरमा जिले से भी
लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

पेश है रिपोर्ट

प्राचीन है मेले की परंपरा
बनिया ग्राम पंचायत के उपमुखिया सरोज कुमार बताते हैं कि लोगों का अनुमान है कि यह मेला लगभग ढाई हजार साल पहले से लग रहा है. आज भी इस मेले में पारंपरिक खासियत कायम है. आज भी यहां लाठी बिकता है.

यह भी पढ़ें- रोहतास: ड्रिप इरिगेशन से टमाटर की खेती कर लाखों कमा रहे किसान

रहती है सरकारी उदासीनता
बिहार सरकार भले ही यहां उमगा महोत्सव पर लाखों रुपए खर्च करती है. लेकिन, महत्वपूर्ण समय में सरकारी उदासीनता देखने को मिल ही जाती है. मेले के दौरान पहाड़ी के आसपास कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं की गई थी. इस कारण श्रद्धालु प्यास से इधर-उधर भटकते देखे गए. हालांकि, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. जगह-जगह पुलिस बल तैनात किया गया था.

Intro:संक्षिप्त- औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखण्ड में मौजूद उमगा पहाड़ी का मंदिर और मेला ढाई हजार वर्ष पुराने हैं। आज भी बसन्त पंचमी पर तीन दिवसीय मेले की परंपरा जारी है।

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औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड के उमगा पहाड़ी पर भगवान सूर्य का प्राचीन मंदिर है। बताया जाता है कि मंदिर लगभग ढाई हजार वर्ष पुरानी है। जितने समय से मंदिर है उतने समय से ही पहाड़ी पर बसंत पंचमी के अवसर पर मेले का प्रचलन है । यह मेला तीन दिवसीय होता है,हालांकि एक हफ्ते तक मेले की सरगर्मी बनी रहती है।


Body:उमगा की पहाड़ी में लगभग छोटे-बड़े 52 मंदिर हैं। लेकिन प्रमुख एक ही मंदिर है जो कि अति प्राचीन है । बताया जाता है कि यह मंदिर दो हजार वर्षों से वहां अवस्थित है। जिसे विभिन्न काल खंडों में विभिन्न आकार दिया गया। मंदिर के समय से ही यहां मेले की परंपरा है। यह मेला बसंत ऋतु की शुरुआत से तीन दिनों तक चलता है। अर्थात यह मेला सरस्वती पूजा से शुरू होकर अगले तीन दिनों तक चलता है ।

झारखण्ड समेत अन्य जिलों से भी आते हैं श्रद्धालु

उमगा पहाड़ी पर लगने वाले बसन्त मेले में ना सिर्फ आसपास से बल्कि झारखण्ड के चतरा, हजारीबाग, पलामू, कोडरमा और बिहार के रोहतास, गया, अरवल और जहानाबाद जिले से हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जहां कुल मिलाकर संख्या लाखों में हो जाती है।

प्राचीन है मेले की परंपरा
बनिया ग्राम पंचायत के उपमुखिया सरोज कुमार बताते हैं कि यह मेला कब से चला आ रहा है कोई भी नहीं बता सकता क्योंकि उनके दादा परदादा भी यही बताते हैं कि यह मेला पहले से ही चला आ रहा है। अनुमानतः यह कहा जाता है कि इसे लगभग दो हजार वर्ष हो गए होंगे। इतने समय बीत जाने के बाद भी मेले की खासियत खत्म नहीं हुई है यहां आज भी लाठी बिकता है। लोग मेले में तैयारी के साथ पहुंचते हैं।

रहती है सरकारी उदासीनता
बिहार सरकार यहां उमगा महोत्सव तो लाखों रुपए खर्च करके जरूर मनाती है । लेकिन महत्वपूर्ण समय में सरकारी उदासीनता देखने को मिल ही जाती है। मेले के दौरान पहाड़ी के आसपास कहीं भी पीने की पानी की व्यवस्था नहीं की गई थी जिस कारण श्रद्धालु प्यास से इधर-उधर भटकते देखे गए। हालांकि सुरक्षा की व्यवस्था की गई थी और जगह जगह पुलिस बल तैनात किया गया था।




Conclusion:सिमट रहे ग्रामीण संस्कृति को आज सहेजने की जरूरत है। बढ़ते कारपोरेट और मॉल कल्चर के बीच भी अगर प्राचीन मेले की परंपरा अभी भी जारी है तो सरकार को भी इन मेलों को सहेजने की जरूरत है।
Last Updated : Feb 1, 2020, 12:23 PM IST
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