भोजपुरः बिहार के आरा में मोहर्रम के पांचवे दिन तमाम इमामबाड़ों में इमाम हुसैन की याद में मजलिस का आयोजन किया गया. जहां काफी संख्या में हुसैन के चाहने वालों ने शिरकत की और नौहेख्वानी की. इस मौके पर धर्मन चौक स्थित वक्फ के इमामबाड़े, महादेवा रोड स्थित बड़े इमामबाड़े में जिक्रे हुसैन किया गया. इस दौरान वहां मौजूद तमाम लोग काले लिबास में नजर आए. मजलिस का ये सिलसिला 9 दिनों तक चलेगा. आखिरि दिन यानी 10 तारीख को ताजिया पहलाम किया जाएगा.
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मजलिस में मौलाना का बयानः इससे पहले मोहर्रम के चौथे दिन भी तमाम इमामबाड़ों में मजलिस का आयोजन किया गया था. हादी मार्केट स्थित वक्फ़ इमामबाड़ा में 10 बजे सुबह मौलाना हाफिज हसन असग़र "शबीब" साहब ने मजलिस पढ़ी, जिसमें उन्होंने कर्बला मे हज़रत इमाम हुसैन (अ.) और उनके 72 साथियों द्वारा मानवता को बचाने के लिए दिए गए बेमिसाल बलिदान का ज़िक्र किया. मौलाना के बयान के बाद इस मजलिस में सैयद अली हुसैन ने नौहा पढ़ा, जिसके बोल थे ऐ अजादारों उठो मातमे शब्बीर करो, एक दुखयारी मां दे रही है सदा, हश्र तक देती रहूंगी तुमको मैं दुआ"-
"इमाम हुसैन की शहादत एक अज़ीम शहादत है और ज़ुल्म के खिलाफ आवाज उठना चाहिए कर्बला में जंग नहीं जुल्म हुआ था. जिसमें इमाम हुसैन के पूरे परिवार और उनके दोस्तों को तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था" इस बर्बरता को कभी भुलाया नहीं जा सकता" - हाफिज हसन असग़र, मौलाना
इमाम की याद में नौहाख्वानीः वहीं, इससे पहले मोहर्रम की दूसरी तारीख को महादेवा स्थित बड़े इमामबाड़ा मे एक मजलिस का आयोजन हुआ, जिसमें सैयद रज़ा ने पेशख्वानी की. सैयद कमर हुसैन बिलग्रामी ने मरसिया पढ़ा और फिर सैयद नासिर हसन ने नौहा पढ़ा. जिसकी पंक्तियां थीं- "जाओ मेरे लाल जाओ मेरे लाल, तुम पर हर कदम रहे दुआ मेरी". उसके बाद कर्बला के शहीदों का मातम किया गया. वहीं, देर रात डिप्टी शेर अली के इमामबाड़े में भी मजलिस हुई, जहां भारी संख्या में मुसलिम समुदाय के लोगों ने शिरकत की.
क्यों मनाया जाता है मोहर्रमः इमाम हुसैन की शहादत को याद करके मुसलमान मोहर्रम में गम मनाते हैं. मोहर्रम के महीने की शुरूआत होते ही मुसलमान शोक में डूब जाते हैं. ज्यादातर घरों में शादी और अन्य शुभ काम नहीं होते है. शिया समुदाय के लोग तो 2 महीने 8 दिन तक शोक मनाते हैं. इस दौरान इस समुदाय के लोग चमकदार कपड़ों से परहेज करते हैं. ज्यादातर लोग काले कपड़े पहनते हैं. 2 महीने 8 दिन तक अपने घरों में शादी-ब्याह सहित अन्य खुशियों वाला कोई आयोजन नहीं करते हैं. यही नहीं वे लोग किसी अन्य समुदाय की खुशियों में शरीक होने से भी बचते हैं. इसके अलावा शिया समुदाय की महिलाएं इस दौरान श्रृंगार से भी परहेज करती हैं.