भागलपुर: शहर के कहलगांव प्रखंड के आंतिचक पंचायत स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का खंडहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र बना हुआ है. इसे देखने के लिए लोग अपने परिवार और मित्र के साथ दूर-दूर से पहुंचते हैं. इसे एक प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में भी जाना जाता है.
वहीं, खुदाई स्थल को देखने पहुंचे कुछ पर्यटकों ने कहा कि जिस तरह नालंदा विश्वविद्यालय का विकास हुआ है. उसी तरह इस विश्वविद्यालय का भी होना चाहिए. राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण यहां का विकास रुका पड़ा है.
भूमि को लेकर फंसा है मामला
बता दें कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 9 वीं सदी की शुरुआत में की थी. ऐसी मान्यता है कि महाविहार की स्थापना राजा धर्मपाल को मिली उपाधि के कारण संभवत इसका नाम विक्रमशिला पड़ा. केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालय के नाम पर भागलपुर में केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा कर रखी है. लेकिन भूमि को लेकर मामला फंसा हुआ है.
विश्वविद्यालय का विकास सरकारी स्तर पर अवरुद्ध
पर्यटक मनोज कुमार ने बताया इस विश्वविद्यालय के बारे में इतिहास के किताब में पड़ चुका हूं. उन्होंने कहा कि किताब में पढ़ा है कि यह विश्वविद्यालय काफी प्राचीन रहा है, जिसे ध्वस्त कर दिया गया था. इसके खंडहर को और यहां पड़े स्टैचू को देखने के लिए जब भी समय मिलता वह आते हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय का विकास सरकारी स्तर पर अवरुद्ध है. जिस तरह से यहां पर विकास होना चाहिए था, वह अब तक नहीं हो पाया है. साथ ही कहा कि वह 5 साल से इस विश्वविद्यालय को देखते आ रहे हैं, लेकिन जैसा का तैसा है, कोई भी बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर विक्रमशिला विश्वविद्यालय कर दिया जाना चाहिए.
'खूबसूरती को देखकर आनंद आ रहा'
पर्यटक विरेंद्र कुमार ने बताया कि यह जगह काफी प्रसिद्ध है. उनके परिवार वाले यहां से कई बार घूम कर गए हैं. उन्होंने यहां के बारे में काफी कुछ बताया तो वह आज यहां पर अपने परिवार के साथ घूमने के लिए आए हैं, काफी अच्छा लग रहा है. वहीं, वैष्णवी पांडे ने बताया कि यहां की खूबसूरती को देखकर काफी आनंद आ रहा है. उन्होंने कहा कि वह अपने मित्र को भी यहां के बारे में बताएगी कि यहां काफी कुछ देखने और नॉलेज को बढ़ाने के लिए है.
राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण नहीं हुआ विकास
पर्यटक आर के पांडे ने बताया कि वह इसी प्रखंड के एकचारी पंचायत के रहने वाले हैं. वह जब बचपन मे यहां आए थे तो खुदाई के बाद निकली हुई स्टैचू और मूर्ति को देखा था, जो काफी क्षतिग्रस्त हो गया है. उसके बाद से खंडहर स्थल को जैसा का तैसा छोड़ दिया गया था. फिर हाल के दिनों में राष्ट्रपति का आगमन यहां हुआ था. उससे पहले यहां काफी कुछ काम हुआ है. लेकिन तब से आगे का कार्य नहीं हुआ, जिस तरह से यहां बदलाव होना चाहिए था, वैसा कुछ नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण यहां का विकास रुका हुआ है.
200 से 300 पर्यटक आते हैं घूमने
विक्रमशिला खुदाई स्थल के टिकट मास्टर त्रिदेव कुमार ने बताया कि यहां पर रोजाना 200 से 300 पर्यटक घूमने के लिए आते हैं. उन्होंने कहा कि त्योहार के मौके पर पर्यटक की संख्या बढ़ जाती है. जिससे टिकट की बिक्री भी बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि यहां पर पर्यटकों की सुविधा के लिए कैशलेस टिकट की व्यवस्था की गई है.