भागलपुर: लोक नृत्य और भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया. सोमवार को भागलपुर के घूरन पीरबाबा चौक स्थिति एक निजी भवन में ताल नृत्य संस्थान द्वारा रासबिहारी मिशन ट्रस्ट के सहयोग से 7 दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. कार्यशाला में भागलपुर, बांका और मुंगेर के बच्चों ने हिस्सा लिया. इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश से शास्त्रीय संगीत के जानकार राघवेंद्र प्रताप सिंह ने भाग लिया. उन्होंने बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में बारीकी से जानकारी दी गई.
कार्यशाला के बारे में जानकारी देते हुए ताल नृत्य संस्थान की संचालिका श्वेता भारती ने बताया कि अभी के दौर में बच्चे वेस्टर्न डांस की ओर दौड़ रहे हैं, उनका रुझान उस ओर बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि वेस्टर्न डांस की ओर बढ़ना ठीक है मगर अपने मूल संस्कृति को भूल कर उन चीजों को सीखना कतई सही नहीं कहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति पर ध्यान देने की जरूरत है. लोक संस्कृति और क्षेत्रीय संस्कृति को लोग भूल रहे हैं, अपने शास्त्रीय संगीत शास्त्रीय नृत्य को भूल रहे हैं और वेस्टर्न नृत्य सीख रहे हैं.
'लोक नृत्य को जानें और समझें'
श्वेता भारती ने कहा कि अलग-अलग स्टेट और अलग-अलग क्षेत्र के अपने फोक डांस हैं और उनकी अपनी विशेषता होती है, लोगों को उनके बारे में भी जानना चाहिए. बिहार के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि बिहार की लोक नृत्य झिझिया, जाट जटिन और गोदना है. सावन के महीने में कजरी गायी जाती है इसके बारे में आज कल के अभिभावक को पता नहीं है न ही बच्चे को इसकी जानकारी रहती है. उन्होंने कहा कि घर में वैसा माहौल होना चाहिए कि अपनी लोक नृत्य को जानें और समझें. बच्चे को जानकारी होना चाहिए कि अपने पैतृक गांव, वहां की क्या परिवेश है, वहां का कल्चर जानना चाहिए. गांव से लोक नृत्य को जुड़ा रहने देना चाहिए ताकि बच्चे आगे बढ़े अपनी संस्कृति को भी आगे बढ़ाएं.
बनारस से आए थे कत्थक नृत्यकार
वहीं कार्यक्रम में बतौर शास्त्रीय संगीत के प्रारंभिक शिक्षा देने पहुंचे बनारस से आए कत्थक नृत्यकार राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य है फोक डांस के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में भी बच्चे को जानकारी देना. इस कार्यशाला में भाग लेने वाले बच्चे को शास्त्रीय संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी जाएगी. जिससे कि बच्चे शास्त्रीय संगीत से परिचित हों और आगे चलकर शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ अपना भी नाम रोशन कर सकें.