भागलपुर: खादी ग्राम उद्योग संघ द्वारा बनाए जा रहे तिरंगा झंडा पटना के गांधी मैदान सहित झारखंड, नागालैंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिला मुख्यालय के मैदानों में शान से लहराएगा. भागलपुर में बना झंडा गणतंत्र दिवस से लेकर स्वतंत्रता दिवस तक में राजकीय सम्मान समारोह की शान बढ़ाएगा. यहां के बने तिरंगों की मांग सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी है. इसलिए गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के समय मांग को पूरा करने के लिए झंडे पहले से ही बनाकर स्टॉक किए जाते हैं. हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के अवसर पर 7 से 8 लाख रुपए का कारोबार होता है. वहीं, पूरे सूबे के 20 जिला मुख्यालयों में भागलपुर में बने तिरंगे को फहराया जाएगा.
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'कारोबार में आया जबरदस्त उछाल'
बीते कुछ सालों से बिहार सरकार ने महादलित टोले में तिरंगा फहराने को अनिवार्य कर दिया है. इसके बाद से तिरंगे के बाजार में और उछाल आया है. लोगों का खादी के बने झंडे के प्रति रुझान बढ़ा है. खासकर पंचायत प्रतिनिधि द्वारा इसमें रुचि दिखाई गई. लेकिन धीरे-धीरे फिर बिक्री घटता चला गया. क्योंकि एक झंडे को दोबारा फराया जाने लगा. दूसरी वजह यह रही कि प्लास्टिक के बने झंडे भी बाजार में मिलने लगे. फिर उस पर रोक लगाई गई और दंड का प्रावधान किया गया. जिसके बाद फिर से खादी के बने झंडे की ओर लोगों का रुझान बढ़ गया.
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इस बार झंडे की बिक्री का लक्ष्य 8 लाख रुपए
खादी ग्राम उद्योग महासंघ के प्रबंधक मायाकांत झा ने बताया कि जिस वर्ष महादलित टोला में झंडा फहराने की परंपरा शुरू हुई. उस वर्ष से खादी के बने झंडे की मांग बढ़ी है. वर्तमान में हमारे यहां से बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नागालैंड में झंडे की सप्लाई हो रही है. उन्होंने कहा कि बिहार में 20 जिले में भागलपुर के झंडे फहराए जाएंगे. इस बार झंडे की बिक्री का लक्ष्य 8 लाख रूपये तक का रखा है. 3 लाख झंडे तैयार किए जा चुके हैं.
तिरंगा बनाने के हैं नियम
खादी ग्रामोद्योग महासंघ के प्रबंधक मायाकांत झा ने बताया कि तिरंगा बनाने के सख्त नियम हैं. इसके लिए फ्लैग कोड ऑफ इंडिया-2002 के प्रावधानों का पालन करना होता है. इसी नियम के मुताबिक झंडे की मैन्युफैक्चरिंग की जाती है. साइज या धागे को लेकर किसी तरह का डिफेक्ट एक गंभीर अपराध है. और ऐसा होने पर जुर्माना या जेल दोनों हो सकता है. इसलिए बहुत सावधानी पूर्वक झंडा तैयार किया जाता है.
वे कहते हैं कि, 'तिरंगे के लिए धागा बनाने से लेकर झंडे की पैकिंग तक में लगभग 28 लोग काम करते हैं. जिनमें लगभग 80 से 90 फ़ीसदी महिलाएं जुड़ी हैं. महिलाएं इस कारोबार में धागा बनाना, कपड़े की बुनाई, ब्लीचिंग और डाइंग, चक्र की छपाई, तीनों पट्टियों के सिलाई, आयरन करना और गुल्ली बांधने का काम करती हैं.