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भागलपुरः डॉल्फिन के लिए संरक्षित किया गया यह इलाका, खतरनाक साबित हो रहा है गंगा का पानी - सुल्तानगंज

वन प्रमंडल पदाधिकारी ने बताया कि हम लोगों ने गंगा के पानी को दूषित होने से बचाने और डॉल्फिन के संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया है. नाले के पानी को कंट्रोल करने के लिए भी काम चल रहा है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर हैबिटेट इंप्रूवमेंट के लिए काम किया जा रहा है.

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Published : Dec 28, 2019, 11:50 PM IST

भागलपुरः जिले में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव के तीन पहाड़ी तक बह रही गंगा नदी को डॉल्फिन के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है. इसका नाम विक्रमशिला कैनेटिक डॉल्फिन सेंचुरी है. इस क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या बढ़ी है लेकिन फिर भी यह विलुप्त होने की कगार पर है. जिसका कारण गंगा का दूषित पानी है.

नाले के पानी से दूषित हो रही गंगा
वन प्रमंडल अधिकारी एस सुधाकर ने कहा कि भागलपुर में गंगा के पानी को डॉल्फिन के लिए खतरनाक घोषित किया गया है. पानी में प्लास्टिक, कचड़ा और नाले का पानी आने की वजह से यह डॉल्फिन के लिए खतरनाक हो रही है.

डॉल्फिन के लिए खतरनाक साबित हो रहा है गंगा का पानी

कम हो रही छोटी मछलियों की संख्या
एस सुधाकर ने कहा कि उन्होंने कहा कि डॉल्फिन छोटी-छोटी मछलियों को खाती है. डॉल्फिन के सेंचुरियन एरिया में मछली मारना सख्त मना है. फिर भी मछुआरे छोटी मछलियों को जाल में फंसा कर मार देते हैं. जिससे उनकी संख्या कम हो रही है.

चलाया जा रहा जागरूकता अभियान
वन प्रमंडल पदाधिकारी ने बताया कि हम लोगों ने गंगा के पानी को दूषित होने से बचाने और डॉल्फिन के संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया है. नाले के पानी को कंट्रोल करने के लिए भी काम चल रहा है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर हैबिटेट इंप्रूवमेंट के लिए काम किया जा रहा है.

भागलपुरः जिले में सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव के तीन पहाड़ी तक बह रही गंगा नदी को डॉल्फिन के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है. इसका नाम विक्रमशिला कैनेटिक डॉल्फिन सेंचुरी है. इस क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या बढ़ी है लेकिन फिर भी यह विलुप्त होने की कगार पर है. जिसका कारण गंगा का दूषित पानी है.

नाले के पानी से दूषित हो रही गंगा
वन प्रमंडल अधिकारी एस सुधाकर ने कहा कि भागलपुर में गंगा के पानी को डॉल्फिन के लिए खतरनाक घोषित किया गया है. पानी में प्लास्टिक, कचड़ा और नाले का पानी आने की वजह से यह डॉल्फिन के लिए खतरनाक हो रही है.

डॉल्फिन के लिए खतरनाक साबित हो रहा है गंगा का पानी

कम हो रही छोटी मछलियों की संख्या
एस सुधाकर ने कहा कि उन्होंने कहा कि डॉल्फिन छोटी-छोटी मछलियों को खाती है. डॉल्फिन के सेंचुरियन एरिया में मछली मारना सख्त मना है. फिर भी मछुआरे छोटी मछलियों को जाल में फंसा कर मार देते हैं. जिससे उनकी संख्या कम हो रही है.

चलाया जा रहा जागरूकता अभियान
वन प्रमंडल पदाधिकारी ने बताया कि हम लोगों ने गंगा के पानी को दूषित होने से बचाने और डॉल्फिन के संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया है. नाले के पानी को कंट्रोल करने के लिए भी काम चल रहा है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर हैबिटेट इंप्रूवमेंट के लिए काम किया जा रहा है.

Intro:भागलपुर जिला अंतर्गत सुल्तानगंज से लेकर कहलगांव के तीन पहाड़ी तक लगभग 60 किलोमीटर जो गंगा नदी बह रही है उसे आफरीन के रूप में घोषित किया गया है ।.इसे विक्रमशिला कैनेटिक डॉल्फिन सेंचुरी भी कहते हैं । डॉल्फिन सर्वे हर वर्ष कराया जाता है । इधर के 2 साल में जो सर्वे का रिपोर्ट आया है जिसमें पता चला है कि इस क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या बढ़ी है लेकिन फिर भी विलुप्त होने के कगार पर हैं ,इसका कारण है इस क्षेत्र में गंगा का पानी दूषित हो गया है ,जो डॉल्फिन के रहने योग्य नहीं है , दूषित पानी के कारण डॉल्फिन मर रहे हैं यह बातें ईटीवी भारत से बातचीत में वन प्रमंडल पदाधिकारी एस सुधाकर ने कही ।


Body:वन प्रमंडल अधिकारी ने कहा कि भागलपुर में गंगा के पानी को डॉल्फिन के लिए खतरनाक घोषित किया गया है । इस क्षेत्र में पानी का क्वालिटी खराब है ,पानी में प्लास्टिक, कचरा और नाले का पानी आ रहा है जिस कारण डॉल्फिन के लिए खतरनाक हो रही है ।

वन प्रमंडल पदाधिकारी एस सुधाकरण कहा कि हम लोगों ने गंगा के पानी को दूषित होने बचाने और डॉल्फिन को संरक्षण करने को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया है। लोगों को गंगा में गंदा पानी ना बहाने को लेकर जागरू किया है । स्वच्छता अभियान चलाया है । नाले के पानी को कंट्रोल करने के लिए भी काम चल रहा है । उन्होंने कहा कि इसको लेकर हैबिटेट इंप्रूवमेंट के लिए जो काम करना है वह हम लोग कर रहे हैं ।

वन प्रमंडल पदाधिकारी ने कहा कि डॉल्फिन के खाने वाली मछलियां भी क्षेत्र में कम हो रही है ,डॉल्फिन छोटी-छोटी मछलियों को खाती है और मछुआरे छोटी मछलियों को जाल में फंसा कर मार रही है । उन्होंने कहा कि डॉल्फिन के सेंचुरियन एरिया में मछली मारना सख्त मना है फिर भी यदा-कदा लोग मछली को पकड़ रहे हैं ।

वन प्रमंडल पदाधिकारी ने कहा कि डॉल्फिन के अलावा इस क्षेत्र में विदेश के पक्षी भी बहुत ज्यादा मात्रा में आती है । जनवरी-फरवरी माह में विदेशी पक्षी साइबेरिया और मंगोलिया से यहां आता है और गंगा के दियारा के आसपास रहता है ।.उसे भी बचाने के लिए एंटी कोचिंग स्टार्ट किया गया है ।.जिससे कि विदेशी पक्षी को बचाया जा सके ।


Conclusion:गंगा नदी के सुल्तानगंज से कहलगांव तीन पहाड़ी तक डॉल्फिन के लिए उपयुक्त क्षेत्र घोषित किया गया है । फिर भी इस क्षेत्र में पानी दूषित होने से रोकने के लिए लोग जागरूक नहीं है ।

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byte - एस सुधाकर ( वन प्रमंडल पदाधिकारी )
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