भागलपुर: भागलपुर जिले का नवगछिया जो अपनी खास खेती केला के लिए प्रसिद्ध है, यहां के किसानों ने एक नयी प्रजाति के केले की खेती शुरू की है. किसानों ने जी9 टिश्यू कल्चर केले की खेती करनी शुरू की है. इस केले की खासियत यह है कि यह अन्यप्रजातियों से बिल्कुल अलग है. यह कम समय में ही ज्यादा मुनाफा देता है.
केला को कोल्ड स्टोरेज में रखने की जरूरत नहीं: इसके बारे में किसान श्री से सम्मानित नीरज कुमार ने बताया कि यह केला बौना किस्म का होता है, जो आंधी से प्रभावित नहीं होता. वहीं इसका फल पकता है, छिलका नहीं, जिसके कारण इस केला को कोल्ड स्टोरेज में रखने की जरुरत नहीं पड़ती है. दूसरे केले के मुकाबले ज्यादा दिन तक यह केला सुरक्षित रहता है.
स्वाद में भी दूसरे केले से बेहतर: बताया कि इस केले का स्वाद अन्य केले के मुकाबले ज्यादा अच्छा है. जो एक बार इस केले को खरीदता कर खाता है, वो बार-बार इसी केले की मांग करता है. हालांकि किसानों का यह भी कहना है कि इस केले की खेती की तकनीकि जानकारी पर्याप्त रूप से नहीं होने के कारण खेती करने में दिक्कत हो रही है.
केलांचल का नाम देश में चमकेगा: बता दें कि नौगछिया इलाका केलांचल नाम से जाना जाता है. यहां बड़े स्तर पर केले की खेती होती है. नौगछिया का केला पहले दिल्ली और नेपाल तक जाता था, लेकिन अब खरीदार खेतों में नहीं आते. दूसरी ओर नौगछिया का केला गलवा बीमारी से बर्बाद हो रहा है. लेकिन अब टिश्यू कल्चर केले का बोल बाला होगा और केलांचल का नाम पुरे देश में चमकेगा.
केले की खेती का तरीका: टिश्यू कल्चर तकनीक में पौधों के टिश्यू का छोटा टुकड़ा उसके बढ़ते हुए ऊपरी हिस्सी से लिया जाता है. इस टुकड़े को जैली में रखा जाता है, जिसमें पोषक तत्व व प्लांट हार्मोंस होते हैं. ये हार्मोन पौधे के टिश्यू में कोशिकाओं को तेजी से विभाजित करते हैं और इनसे कई कोशिकाओं का निर्माण होता है. इससे पौधे का विकास आम तकनीक से खेती करने से ज्यादा होता है.
9 से 10 महीने में केला होता है तैयार: बता दें कि केले की दूसरी प्रजाती जहां 14 से 15 महीने में तैयार होती है, वहीं जी-9 महज 9 से 10 महीने में ही तैयार हो जाता है. इस वैरायटी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पर पनामा बिल्ट बीमारी का प्रकोप भी कम होता है.
"टीश्यू कल्चर जी-9 प्रजाति का केला लैब में तैयार किया जाता है. इसके पौधे छोटे और मजबूत होते हैं, जिससे आंधी-तूफान में टूटकर नष्ट होने की संभावना कम होती है. फसल अच्छी होने के साथ गिरकर नष्ट नहीं होते. उत्पादन भी अपेक्षाकृत काफी अधिक होता है."- नीरज कुमार, कृषि जानकार
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