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भागलपुर: बारिश की आंख मिचौली और सिंचाई का वैकल्पिक इंतजाम नहीं होने से अन्नदाता परेशान - सनहौला प्रखंड की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर

धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन यहां सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. जिससे बारिश ना होने से किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है.

बारिश के पानी पर निर्भर किसान
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Published : Aug 4, 2019, 1:09 PM IST

Updated : Aug 4, 2019, 1:19 PM IST

भागलपुर: बिहार में इसबार मानसून देरी से आने के कारण धान रोपनी भी देर से हुई. लेकिन फिर से मानसून की दगाबाजी के कारण अब किसानों की आस टूटने लगी है. किसानों के चेहरे पर मायूसी दिखने लगी है. जुलाई महीने में मानसून की औसतन बारिश के कारण खेतों में नमी आई थी. जिससे किसानों ने धान रोपनी का काम शुरू कर दिया.

Bhagalpur News
धान रोपनी करते किसान

80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर
बीते एक सप्ताह से यहां बारिश नहीं हो रही है. धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले की दक्षिणी छोर सनहौला प्रखंड की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन इस क्षेत्र में फसल सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. किसान बारिश के पानी पर निर्भर हैं. बारिश होते ही नदी, तालाब, गड्ढे में पानी आ जाता है जिससे किसान पंपिंग सेट के सहारे पानी लिफ्ट कर अपने खेत की सिंचाई कर धान रोपनी करते हैं. इसमें खर्च इतनी ज्यादा है कि यह सामान्य किसानों के लिए संभव नहीं है. यहां के किसान कृषि के सहारे ही अपने बच्चों की पढ़ाई और घरेलू जरूरतों को पूरा करते हैं.

बारिश के पानी पर निर्भर किसान

फसल सिंचाई के लिए दूसरी व्यवस्था नहीं
किसान नीलवरन महतो बताते हैं कि यहां की खेती बारिश के पानी पर निर्भर है. बारिश के पानी से ही वो लोग खेती कर पाते हैं. फसल सिंचाई के लिए यहां कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है. इसी कारण अगर फसल लगाने के बाद बारिश नहीं होती है तो बिना पानी के फसल बर्बाद हो जाता है. किसान नरेंद्र महतो बताते हैं कि इस बार धान रोपनी का काम 22 दिन देर से शुरू हुआ है, जिससे इसकी लागत भी बढ़ गई है. खाद, बीज, मजदूरी सभी की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. खेतों में इस बार जो बीज लगाया गया है उसका जर्मिनेशन भी 50% ही हुआ है.

Bhagalpur News
धान रोपनी करते किसान

नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ
उन्हें किसी सरकारी योजना का भी कोई लाभ नहीं मिला है. 20 वर्ष पहले सरकार द्वारा क्षेत्र में खेत सिंचाई के लिए नहर बनाने की एक योजना आयी थी. जिसके लिए किसानों से जमीन भी लिया गया था. जमीन का पैसे भी किसानों को मिल चुके है. लेकिन नहर की खुदाई अभी तक शुरू नहीं हुई है .उन्होंने कहा कि हम लोग खेती पर ही निर्भर हैं. फसल अगर बर्बाद हो जाती है तो पैसे कमाने और जीवनयापन के लिए घर से बाहर दूसरे प्रदेश में काम के लिए जाना पड़ता है.

भागलपुर: बिहार में इसबार मानसून देरी से आने के कारण धान रोपनी भी देर से हुई. लेकिन फिर से मानसून की दगाबाजी के कारण अब किसानों की आस टूटने लगी है. किसानों के चेहरे पर मायूसी दिखने लगी है. जुलाई महीने में मानसून की औसतन बारिश के कारण खेतों में नमी आई थी. जिससे किसानों ने धान रोपनी का काम शुरू कर दिया.

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धान रोपनी करते किसान

80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर
बीते एक सप्ताह से यहां बारिश नहीं हो रही है. धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले की दक्षिणी छोर सनहौला प्रखंड की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन इस क्षेत्र में फसल सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. किसान बारिश के पानी पर निर्भर हैं. बारिश होते ही नदी, तालाब, गड्ढे में पानी आ जाता है जिससे किसान पंपिंग सेट के सहारे पानी लिफ्ट कर अपने खेत की सिंचाई कर धान रोपनी करते हैं. इसमें खर्च इतनी ज्यादा है कि यह सामान्य किसानों के लिए संभव नहीं है. यहां के किसान कृषि के सहारे ही अपने बच्चों की पढ़ाई और घरेलू जरूरतों को पूरा करते हैं.

बारिश के पानी पर निर्भर किसान

फसल सिंचाई के लिए दूसरी व्यवस्था नहीं
किसान नीलवरन महतो बताते हैं कि यहां की खेती बारिश के पानी पर निर्भर है. बारिश के पानी से ही वो लोग खेती कर पाते हैं. फसल सिंचाई के लिए यहां कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है. इसी कारण अगर फसल लगाने के बाद बारिश नहीं होती है तो बिना पानी के फसल बर्बाद हो जाता है. किसान नरेंद्र महतो बताते हैं कि इस बार धान रोपनी का काम 22 दिन देर से शुरू हुआ है, जिससे इसकी लागत भी बढ़ गई है. खाद, बीज, मजदूरी सभी की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. खेतों में इस बार जो बीज लगाया गया है उसका जर्मिनेशन भी 50% ही हुआ है.

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धान रोपनी करते किसान

नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ
उन्हें किसी सरकारी योजना का भी कोई लाभ नहीं मिला है. 20 वर्ष पहले सरकार द्वारा क्षेत्र में खेत सिंचाई के लिए नहर बनाने की एक योजना आयी थी. जिसके लिए किसानों से जमीन भी लिया गया था. जमीन का पैसे भी किसानों को मिल चुके है. लेकिन नहर की खुदाई अभी तक शुरू नहीं हुई है .उन्होंने कहा कि हम लोग खेती पर ही निर्भर हैं. फसल अगर बर्बाद हो जाती है तो पैसे कमाने और जीवनयापन के लिए घर से बाहर दूसरे प्रदेश में काम के लिए जाना पड़ता है.

Intro:बिहार में मानसून देर से आयी जिस वजह से धान रोपनी देर से शुरू हुआ है लेकिन फिर से मानसून की दगाबाजी के कारण अब किसानों की आस टूटने लगी है , किसानों चेहरे पर मायूसी दिखने लगी है । जुलाई महीने में मानसून की औसतन बारिश होने के कारण खेतों में पानी के साथ ही नमी आई । जिसके कारण किसानों ने धान रोपनी का काम शुरू किया । बीते 1 सप्ताह से बारिश भागलपुर जिले में नहीं हो रही है । धान का कटोरा कहा जाने वाला भागलपुर जिले का दक्षिणी छोर सनहौला प्रखंड 80 फ़ीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है लेकिन क्षेत्र में फसल सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है । किसान बारिश के पानी पर निर्भर हैं । बारिश होते ही नदी, तालाब, गड्ढे में पानी आ जाता है जिससे किसान पंपिंग सेट के द्वारा पानी लिफ्ट कर अपने खेत की सिंचाई कर धान रोपनी कर रहे हैं ।इसमें खर्च इतनी ज्यादा है कि यह सामान्य किसानों के लिए संभव नहीं है । यहां के किसान कृषि के सहारे ही अपने बच्चों की पढ़ाई और घरेलू जरूरत है पूरी करते हैं ।


Body:किसान नीलवरन महतो अपना दर्द बताते हुए कहते हैं कि यहां की खेती वर्षा के पानी पर निर्भर हैं ।बारिश होती है तो खेती कर पाते हैं ।फसल सिंचाई के लिए यहां कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है । जिस कारण फसल लगाने के बाद यदि बारिश नहीं होती है तो बिना पानी के फसल भी मर जाता है । किसान नरेंद्र महत्व बताते हैं कि इस बार धान बुवाई का काम 22 के दिन देरी से शुरू हुआ है ,जिसमें लागत भी बढ़ा है । उन्होंने कहा कि खाद ,बीज ,मजदूरी सभी चीजों में बढ़ोतरी हुई है । वह बताते हैं कि इस बार जो बीज लाकर खेत में लगाया है उसका जर्मनेशन भी 50% ही हुआ । सरकारी योजना का भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिला है । उन्होंने जानकारी दिया कि आज से 20 वर्ष पहले सरकार द्वारा क्षेत्र में खेत सिंचाई के लिए नहर बनाने की एक योजना आयी थी ,जमीन भी किसानों से लिया गया ,जमीन का पैसा भी उन किसानों को दिया जा चुका है ,लेकिन नहर की खुदाई अभी तक शुरू नहीं हुई है । उन्होंने कहा कि हम लोग खेती पर ही निर्भर हैं खेत की फसल यदि मर जाता है तो मजदूरी के लिए घर से बाहर दूसरे प्रदेशों में काम करने के लिए जाना पड़ता है तभी हमारा जीविकोपार्जन होता है ।


किसान सुनील दास बताते हैं कि यहां खेती करने के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है ,पानी की व्यवस्था नहीं है ,बिना पानी पर चल मर जाता है । उन्होंने कहा कि खेत सिंचाई के लिए ना बिजली की व्यवस्था है और ना ही सरकार कि कोई नहर की व्यवस्था है । उन्होंने कहा कि आज से 20 वर्ष पहले सरकारी नहर इस क्षेत्र में पास हुआ था लेकिन 20 बरस बीत गए अभी तक दूर-दूर तक नहर नजर नहीं आ रहा । नहर की खुदाई भी नहीं शुरू हुआ है । उन्होंने बताया कि उन्हें कोई सरकारी लाभ भी नहीं मिला है ।


Conclusion:visual
byte - नीलवरन महतो( किसान )
byte - सुनील दास ( किसान )
Last Updated : Aug 4, 2019, 1:19 PM IST
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