भागलपुर: बिहार में इसबार मानसून देरी से आने के कारण धान रोपनी भी देर से हुई. लेकिन फिर से मानसून की दगाबाजी के कारण अब किसानों की आस टूटने लगी है. किसानों के चेहरे पर मायूसी दिखने लगी है. जुलाई महीने में मानसून की औसतन बारिश के कारण खेतों में नमी आई थी. जिससे किसानों ने धान रोपनी का काम शुरू कर दिया.
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80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर
बीते एक सप्ताह से यहां बारिश नहीं हो रही है. धान का कटोरा कहे जाने वाले जिले की दक्षिणी छोर सनहौला प्रखंड की 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन इस क्षेत्र में फसल सिंचाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. किसान बारिश के पानी पर निर्भर हैं. बारिश होते ही नदी, तालाब, गड्ढे में पानी आ जाता है जिससे किसान पंपिंग सेट के सहारे पानी लिफ्ट कर अपने खेत की सिंचाई कर धान रोपनी करते हैं. इसमें खर्च इतनी ज्यादा है कि यह सामान्य किसानों के लिए संभव नहीं है. यहां के किसान कृषि के सहारे ही अपने बच्चों की पढ़ाई और घरेलू जरूरतों को पूरा करते हैं.
फसल सिंचाई के लिए दूसरी व्यवस्था नहीं
किसान नीलवरन महतो बताते हैं कि यहां की खेती बारिश के पानी पर निर्भर है. बारिश के पानी से ही वो लोग खेती कर पाते हैं. फसल सिंचाई के लिए यहां कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है. इसी कारण अगर फसल लगाने के बाद बारिश नहीं होती है तो बिना पानी के फसल बर्बाद हो जाता है. किसान नरेंद्र महतो बताते हैं कि इस बार धान रोपनी का काम 22 दिन देर से शुरू हुआ है, जिससे इसकी लागत भी बढ़ गई है. खाद, बीज, मजदूरी सभी की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है. खेतों में इस बार जो बीज लगाया गया है उसका जर्मिनेशन भी 50% ही हुआ है.
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नहीं मिला सरकारी योजना का लाभ
उन्हें किसी सरकारी योजना का भी कोई लाभ नहीं मिला है. 20 वर्ष पहले सरकार द्वारा क्षेत्र में खेत सिंचाई के लिए नहर बनाने की एक योजना आयी थी. जिसके लिए किसानों से जमीन भी लिया गया था. जमीन का पैसे भी किसानों को मिल चुके है. लेकिन नहर की खुदाई अभी तक शुरू नहीं हुई है .उन्होंने कहा कि हम लोग खेती पर ही निर्भर हैं. फसल अगर बर्बाद हो जाती है तो पैसे कमाने और जीवनयापन के लिए घर से बाहर दूसरे प्रदेश में काम के लिए जाना पड़ता है.