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चक्रवर्ती देवी ने 'मंजूषा' की बदली थी तकदीर, अब बदहाली का दंश झेल रहा परिवार

बिहार का इतिहास कला और संस्कृति से परिपूर्ण है. बिहार के अंग क्षेत्र की मंजूषा कला बिहुला विषहरी की गाथा से प्रेरित है.

मंजूषा
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Published : Mar 8, 2019, 7:27 PM IST

भागलपुरः जिले की प्रसिद्ध चित्रकला मंजूषा को पुनर्जन्म देने वाली स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी का नाम भला कौन नहीं जानता. अंग प्रदेश की मशहूर मंजूषा कला को विश्व की प्रथम कथा आधारित चित्रकला माना जाता है. लेकिन कुछ दशक पहले यह कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. उस वक्त इस प्राचीन लोककला को सिर्फ चक्रवर्ती देवी ने ही अपने रंगों से उकेरकर उभारा था.

चक्रवर्ती देवी ने अपने आसपास रहने वाली कई महिलाओं को मंजूषा चित्र कला से रूबरू कराया था. जिसका नतीजा था कि उस समय हजारों की तादाद में महिलाओं को मंजूषा कला का प्रशिक्षण चक्रवर्ती देवी से मिला था. आज मंजूषा कला को पूरे देश में लोग जानने लगे हैं और पसंद भी करते हैं.

नहीं मिला सरकार से सम्मान

अब मंजूषा चित्रकथा को भागलपुर के पारंपरिक रेशम के साथ में भी जोड़ दिया गया है. रेशम वस्त्र पर मंजूषा पेंटिंग की बात ही कुछ अलग है पूरे देश में इस कलाकृति को अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है. इन तमाम चीजों का श्रेय सभी चक्रवर्ती देवी को ही जाता है. अब चक्रवर्ती देवी इस दुनिया में नहीं है लेकिन सरकार को जो सम्मान चक्रवर्ती देवी को देना चाहिए उसकी उपेक्षा का अंदाजा उनके परिवार के देखकर लगाया सकता है.

मंजूषा कला से जुड़कर लाखों लोगों को मिला रोजगार

चक्रवर्ती देवी की बेटी पिंकी देवी को सरकार से काफी नाराजगी है. पिंकी देवी का कहना है कि इस कला को मेरी मां ने देश के कोने -कोने में फैलाया था. इसके बावजूद सरकार ने आज तक चक्रवर्ती देवी के उस योगदान पर कोई सम्मान नहीं दिया है. जबकि उनके द्वारा दिए गए प्रशिक्षण से आज दूसरे लोग मंजूषा कला से जुड़कर लाखों कमा रहे हैं. लेकिन हम गरीबी में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.

अपनी बदहाली का हाल बताता चक्रवर्ती देवी का परिवार

चक्रवर्ती देवी ने दिया अभूतपूर्व योगदान

बहरहाल, आज सरकार ने कुछ किया हो या ना किया हो लेकिन स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी के इस अभूतपूर्व योगदान को पूरा अंग प्रदेश भागलपुर हमेशा याद रखेगा. पूरा प्रदेश उनके उस योगदान कभी भूल नहीं सकता है.

भागलपुरः जिले की प्रसिद्ध चित्रकला मंजूषा को पुनर्जन्म देने वाली स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी का नाम भला कौन नहीं जानता. अंग प्रदेश की मशहूर मंजूषा कला को विश्व की प्रथम कथा आधारित चित्रकला माना जाता है. लेकिन कुछ दशक पहले यह कला विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी. उस वक्त इस प्राचीन लोककला को सिर्फ चक्रवर्ती देवी ने ही अपने रंगों से उकेरकर उभारा था.

चक्रवर्ती देवी ने अपने आसपास रहने वाली कई महिलाओं को मंजूषा चित्र कला से रूबरू कराया था. जिसका नतीजा था कि उस समय हजारों की तादाद में महिलाओं को मंजूषा कला का प्रशिक्षण चक्रवर्ती देवी से मिला था. आज मंजूषा कला को पूरे देश में लोग जानने लगे हैं और पसंद भी करते हैं.

नहीं मिला सरकार से सम्मान

अब मंजूषा चित्रकथा को भागलपुर के पारंपरिक रेशम के साथ में भी जोड़ दिया गया है. रेशम वस्त्र पर मंजूषा पेंटिंग की बात ही कुछ अलग है पूरे देश में इस कलाकृति को अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है. इन तमाम चीजों का श्रेय सभी चक्रवर्ती देवी को ही जाता है. अब चक्रवर्ती देवी इस दुनिया में नहीं है लेकिन सरकार को जो सम्मान चक्रवर्ती देवी को देना चाहिए उसकी उपेक्षा का अंदाजा उनके परिवार के देखकर लगाया सकता है.

मंजूषा कला से जुड़कर लाखों लोगों को मिला रोजगार

चक्रवर्ती देवी की बेटी पिंकी देवी को सरकार से काफी नाराजगी है. पिंकी देवी का कहना है कि इस कला को मेरी मां ने देश के कोने -कोने में फैलाया था. इसके बावजूद सरकार ने आज तक चक्रवर्ती देवी के उस योगदान पर कोई सम्मान नहीं दिया है. जबकि उनके द्वारा दिए गए प्रशिक्षण से आज दूसरे लोग मंजूषा कला से जुड़कर लाखों कमा रहे हैं. लेकिन हम गरीबी में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.

अपनी बदहाली का हाल बताता चक्रवर्ती देवी का परिवार

चक्रवर्ती देवी ने दिया अभूतपूर्व योगदान

बहरहाल, आज सरकार ने कुछ किया हो या ना किया हो लेकिन स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी के इस अभूतपूर्व योगदान को पूरा अंग प्रदेश भागलपुर हमेशा याद रखेगा. पूरा प्रदेश उनके उस योगदान कभी भूल नहीं सकता है.

Intro:WOMANS DAY SPECIAL FROM BHGALPUR
SANTOSH SRIVASTAVA


अंग प्रदेश भागलपुर की प्रसिद्ध चित्र कथा मंजूषा को पुनर्जन्म देने वाली स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी का नाम कौन नही जानता, अंग प्रदेश की मशहूर लोकगाथा बिहुला विषहरी जो कि नारी सशक्तिकरण का एक जीता जागता उदाहरण है वैसी कला कुछ दिनों पूर्व विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी उस वक्त इस मशहूर चित्र कथा मंजूषा को सिर्फ चक्रवर्ती देवी ही नीले पीले और लाल रंगों से उकेर कर बनाती थी, उन्होंने अपने आसपास रहने वाली कई महिलाओं को इस मंजूषा चित्र कथा को बताया और कई संस्थाओं के साथ जुड़कर हजारों की तादाद में महिलाओं को मंजूषा कला का प्रशिक्षण भी दिया आज मंजूषा कला को पूरे देश में लोग जानने लगे हैं और पसंद भी करते हैं अब मंजूषा चित्रकथा को भागलपुर के पारंपरिक रेशम के साथ में भी जोड़ दिया गया है रेशम वस्त्र पर मंजूषा पेंटिंग की बात ही कुछ अलग है पूरे देश में इस कलाकृति को अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है इन तमाम चीजों का श्रेय सभी चक्रवर्ती देवी को ही जाता है। अब चक्रवर्ती देवी इस दुनिया में नहीं है लेकिन सरकार को जो सम्मान चक्रवर्ती देवी को देना चाहिए उसकी उपेक्षा उनके परिवार के देखे लगाया सकता है ।


Body:चक्रवर्ती देवी की बेटी पिंकी देवी को सरकार से काफी नाराजगी है पिंकी देवी का कहना है कीज इस कला को आज मेरी मां ने देश के चारों कोने में फैला दिया लेकिन सरकार और कोई भी पदाधिकारी ने आज तक चक्रवर्ती देवी के उस योगदान पर नहीं मरना परांत कोई सम्मान दिया ना ही परिवार को कोई सरकारी सहायता आज दूसरे लोग मंजूषा कला से जुड़कर लाखों कमा रहे हैं लेकिन हम गरीबी में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं आज हमें खाने के लाले पड़े हुए हैं किसी तरह से एक कमरे में हम अपने पति और बच्चे के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं जब मेरी मां ने मंजूषा को फिर से जिंदगी देकर एक नई पहचान दी तो आखिर सरकार ने इस अभूतपूर्व योगदान की उपेक्षा क्यों की क्यों नहीं हमें किसी तरह की सरकारी सहायता दी गई ताकि हम लोग आज भी उसी मंजूषा का काम कर रहे हैं इसे मेरी मां ने आगे बढ़ाया था आज भी चंपानगर के बिहुला विषहरी मंदिर में मैं ही मंजूषा बना कर देती हूं यह परंपरा मेरी मां ने ही शुरू की थी जिसे आज भी मैं निभा रही हूं ।


Conclusion:सरकार ने कुछ किया या ना किया यह दिगर बात है लेकिन स्वर्गीय चक्रवर्ती देवी के इस अभूतपूर्व योगदान को पूरा अंग प्रदेश भागलपुर हमेशा याद रखेगा आज अगर मंजूषा जिंदा है तो उसे फिर से जन्म देने वाली चक्रवर्ती देवी ही हैं आज चक्रवर्ती देवी जिंदा नहीं है लेकिन इस योगदान को अंग प्रदेश कभी भूल नहीं सकता है इस अंग प्रदेश में नारी सशक्तिकरण की ना जाने कितने मिसाले हैं उसी में एक मशहूर लोक गाथा बिहुला विषहरी भी है जिसमें विषहरी ने स्वयं की पूजा करवाने के लिए चांद सौदागर के पूरे परिवार को डसकर मौत के घाट उतार दिया था लेकिन अंतिम पुत्र बाला लखंदर की पत्नी बिहुला के सतीत्व के आगे यमराज भी हार गए थे सती बिहुला ने इसी मंजूषा आकृति को उकेरकर अपने मृत पति के प्राण को वापस करने की मांग को देवताओं के सामने रखा था और बिहुला के पति बाला लखंदर के प्राण को वापस कर दिया था अंग प्रदेश की प्रसिद्ध लोक गाथा बिहुला विषहरी की इस घटना के बाद चांद सौदागर ने अपने बाएं हाथ से विषहरी की पूजा शुरू कर दी थी, जिसे लोग नारी सशक्तिकरण की दृष्टि से देखते हैं नारी ने अपनी पूजा करवाने के लिए कैसे एक पुरुष को विवश कर दिया था ।

बाइट:पिंकी देवी (स्व चक्रवर्ती देवी की बेटी )
बाइट:गौतम सरकार ,वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक मामलों के जानकार ।
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