भागलपुर: भागलपुर के अंग प्रदेश में मशहूर लोक गाथा पर आधारित बिहुला विषहरी पूजा (Bihula Bishari Puja In Bhagalpur) को काफी ज्यादा धूमधाम से मनाई जा रही है. जिले के सारे बिहुला विषहरी मंदिर में पंडाल सजाए गए हैं. साज सज्जा के लिए हर जगह पर तोरण द्वार बनाए गए हैं. उसके साथ ही पूजा पंडालों में माता विषहरी की प्रतिमा स्थापित की गई है. बताया जाता है कि बिरला और बाला लखेंद्र के विवाह से पहले शहर में जगह-जगह भव्य बारात भी निकाली जाती है. जिसमें शहर के हर कोने से लोग शामिल होते हैं. जिला प्रशासन ने पूरी तरह से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किया. जिला प्रशासन के द्वारा भारी संख्या में अर्ध सैनिक बल और स्थानीय पुलिस फोर्स को सुरक्षा में लगाया गया.
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बिहुला और बाला लखेंद्र की शादी: इस पूजन के आयोजन में बारात आने के बाद रात्रि में 12 बजे बिहुला और बाला लखेंद्र की शादी हुई. जिसके बाद विषहरी माता को बाग के डलिया में फल और दूध चढ़ाकर पूजा करते हैं. इस पूजा को सारी परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है. इसकी तैयारी मंदिरों में पूरी कर ली गई है, साथ ही मंदिरों में प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. पूरे आयोजन स्थल पर सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की जा रही है. यह लोक गाथा पौराणिक मान्यताओं पर आधारित नारी के सती होने की परंपरा को दर्शाने वाला बिहुला विषहरी पूजा हर मंदिरों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस पूजा में माता विषहरी को प्रसन्न करने और नारियों को अपने पति की लंबी आयु की कामना को लेकर की जाती है. वहीं माता विषहरी को आज लोग दूध और लावा का प्रसाद चढ़ाया करते हैं. महिलाओं के द्वारा मंगल गीत मंदिरों में गाया जाता है.
महिला सशक्तिकरण की झलक: इस पूजन के कथाओं की मानें तो सती बिहुला और विषहरी दोनों के दंतकथाओं में महिला सशक्तिकरण की झलक मिलती है. बेला विषहरी लोकगाथा के अनुसार चांद सौदागर सिर्फ महादेव की पूजा करते हैं. वहीं माता विषहरी चांद सौदागर को खुद की पूजा करने के लिए विवश कर देती हैं. माना जाता है कि जब तक चांद सौदागर माता विषहरी की पूजा नहीं करते, तबतक उनके परिवार के लोगों को माता विषहरी सर्पदंश से मार देती है. कहानी के अनुसार रात में जब चांद सौदागर के सबसे छोटे पुत्र बाला लखेंद्र की शादी बिहुला से होती है. उस समय सुरक्षात्मक दृष्टि से चांद सौदागर एक लोहे और बांस का घर बनवाते हैं, जिसका निर्माण स्वयं विश्वकर्मा करते हैं.
कहानी में यह भी बताया गया है कि लोहे और बांस के घर में कहीं से हवा भी प्रवेश की संभावना नहीं हो ऐसा घर बाला लखेंद्र और बिहुला के लिए बनाया गया. वहीं माता विषहरी अपने क्षल से एक छोटा सा छिद्र कर देती हैं. उसी छिद्र से मच्छर के रुप में उस घर में प्रवेश कर बाला लखेंद्र को डस लेती है जिससे उसकी मौत हो जाती है. लेकिन बाला लखेंद्र की पत्नी अपने सतीत्व के दम पर प्रसिद्ध लोक चित्र गाथा मंजूषा के माध्यम से यमराज तक अपना संदेश पहुंचा कर अपने पति के प्राण को वापस ले आती है.
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उसके बाद कहा यह जाता है कि चांद सौदागर माता विषहरी से प्रार्थना कर अपने परिवार के सुरक्षा की गुहार करते हैं. उसी समय माता विषहरी चांद सौदागर को अपनी पूजा करने के लिए कहती हैं. अंततः चांद सौदागर माता विषहरी के प्रकोप से बचने के लिए विवश होकर अपने बाएं हाथ से माता विषहरी की पूजा करना शुरु कर देते हैं. जिसके बाद पूरे अंग प्रदेश में बिहुला विषहरी पूजा पूरे धूमधाम से मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि माता विषहरी की पूजा करने से पूरे परिवार की रक्षा करती हैं.